महिला दिवस के अवसर पर ये विज्ञापन कुछ कहता है. ...

यहां गोवा मे लोग अखबार को माध्यम के तौर पर चुनते हैहर आम अखबार की तरह यहां के अखबार मे भी ना केवल बड़ी खबरें बल्कि छोटी खबरें भी छपती हैपर एक विशेष बात है की यहां के अखबार मे देश-विदेश की ख़बरों के साथ-साथ यहां बच्चों के जन्म की खबरें भी छपती है। जब भी किसी दंपत्ति को संतान होती है वो चाहे लड़का हो या लड़की उसकी ख़बर अखबार मे जरुर छपती है।

जहाँ हर रोज हर अखबार मे भ्रूण हत्या और पैदा होते ही लड़की को मारने की ख़बर छपती है वहीं यहां के अखबार मे बेटी पैदा होने की ख़बर छपती है।जो हमारे ख़्याल से बहुत ही अच्छी बात है।काश दूसरे लोग भी इनसे कुछ सबक सीखेंएक और बहुत अच्छा चलन है डॉक्टर को धन्यवाद देने का , जैसा की आप इन सभी विज्ञापनों मे देख सकते है

आज महिला दिवस है और इस अवसर पर हम गोवा के अखबार मे छपे कुछ विज्ञापनों को लगा रहे है। (माता-पिता और अन्य रिश्तेदारों के नाम हमने हटा दिए है। )


आप बस देखिये और अपनी राय दीजिये।
जब आप इन मे से किसी पर भी क्लिक करेंगे तो आप इन्हे आराम से देख और पढ़ सकेंगे

Comments

महिला दिवस पर एक बेहतर पोस्ट। इससे गोवा की आधुनिक सोच को भी दिखाई देती है।
Yunus Khan said…
बहुत सही । सबको सीखनी चाहिए ये बात ।
Manish Kumar said…
अच्छी चीज दिखाई आपने..
देश के अन्‍य क्षेत्रों के मीडिया को इससे कुछ सीखना चाहिए, ममता जी महिला दिवस की शुभकामनाएं
mahila diwas par yahee ummeed thee aapse , mahila diwas par ek saarthak prastuti
Pankaj Oudhia said…
एकदम नयी जानकारी। आभार।
ममता दी आज के दिन यह पोस्ट बहुत सही चुनी है आपने...आपको बहुत-बहुत बधाई महिला दिवस की...
यह ब्लोग पर तस्वीर किसकी है...
ममता जी, हमारे यहां भी यह वाली सेवा फ़्रि मे हे, बच्चे के जन्म पर ओर शादी पर अखबार वाले उपहार भी देते हे ओर फ़ोटो भी फ़्रि मे खीच कर ले जाते हे,शायाद गोवा मे अभी युरोप का असर हे
अच्छा लगा,अपने इर्द गिर्द के रिवाज़ों के अनोखे पहलू पर आपकी अनोखी पैनी दृष्टि !
मेरे लिये यह जानकारी नयी नहीं है, इस लिये आश्चर्य नहीं हुआ । राज भाटिया जी को मैं इंगित करना चाहूँगा कि यह यूरोप का प्रभाव नहीं बल्कि इसका सीधा संबन्ध साक्षरता एवं जागरूकता से है ।
धड़ियाली आँसू की तरह कन्याओं को लेकर नित्य नयी घोषणायें एक भद्दा मज़ाक है । कन्याधन, कन्याराशि, कन्या अनुदान वगैरह एक सतही लीपापोती है, गोया कन्या सरकारी खैरात पर आश्रित रहने को मज़बूर हो !
कल मन कचोट कर रह गया, बहुत सारे पहलू और सच बटोर कर रखे थे, इस दिन पोस्ट करने को । किंतु एक हालिया दुर्घटना के बाद फिर से दूसरा हैकरप्रूफ़ ब्लाग बनाने पर स्वाध्याय एवं जानकारियों की माँग-जाँच में व्यस्त हूँ ।
आपकी यह सामयिक पोस्ट बहुतेरे लिखे पढ़े ज़ाहिलों की विकृत सोच पर एक तमाचा है ।
आख़िर क्यों दिखता है यह..
कहीं ख़ुशी कहीं ग़म !
वाह भाई..हम देखने में ज़रा पिछड़ गए..!

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