बचपन की कुछ पुरानी कविताएं

आज बस यूं ही मौसम को देख कर हमे भी एक बचपन की कुछ कविताएं याद आ गई।थोडी बेसिर पैर की है पर बचपन मे इन्हे जोर-जोर से बोलने मे बड़ा मजा आता था। वैसे ये पहली लाला जी वाली कविता तो हिन्दी की किताब मे सचित्र पढी थी।

लालाजी ने केला खाया
केला खाकर मुंह बिचकाया।
मुंह बिचकाकर तोंद फुलाई
तोंद फुलाकर छड़ी उठाई।
छड़ी उठाकर कदम बढ़ाया
कदम के नीचे छिलका आया ।
लालाजी गिरे धड़ाम से
बच्चों ने बजाई ताली।

चलिए एक और ऐसी ही छोटी सी मस्ती भरी कविता पढिये।

मोटू सेठ सड़क पर लेट
गाड़ी आई फट गया पेट
गाड़ी का नम्बर ट्वेन्टी एट (२८)
गाडी पहुँची इंडिया गेट
इंडिया गेट पर दो सिपाही
मोटू मल की करी पिटाई।

लगे हाथ इसे भी पढ़ लीजिये।

मोटे लाला पिलपिले
धम्म कुंयें मे गिर पडे
लुटिया हाथ से छूट गई
रस्सी खट से टूट गई।

Comments

काकेश said…
आप भी यही पढ़ते थे. यह तो हमारी वाली कविताऐं हैं जी.
"गाड़ी का नम्बर ट्वेन्टी एट"
पर मै तो 88 बोलत था|

अच्छा अब समझ आ गया। ये तो पुराने जमाने का था और तभि 28 से 88 हो गया।
मौसम का तकाजा और आपकी यादों की खुलती पिटारी. आनंद आ गया. इस श्रेणी में सर्वेश्वर दयाल जी ने अच्छे प्रयोग किये थे-
इब्न बतूता पहन के जूता
निकल पड़े तूफ़ान में
आधी हवा नाक में घुस गई
आधी घुस गई कान में

और

मंहगू ने मंहगाई में
पैसे फ़ूंके टाई में
बीस रुपे की टाई उनकी
बिकी नहीं दो पाई में
art said…
mera bachpan yaad aa gaya
Divine India said…
याद दिलाया बचपन का…
यह प्रस्तुति भी कोई करता है तो अहसास ही बदल जाता है…।
Udan Tashtari said…
क्या क्या न याद दिला दिया आपने...आप भी न!!!!
Ghost Buster said…
लालाजी फिर गिरे धडाम
मुंह से निकला हाय राम.
Manish Kumar said…
आज आपने मोटे लोगों पर क्यों निशाना साधा हुआ है?:)
mamta said…
ghost buster जी आखिरी लाइन हम भूल गए थे। शुक्रिया याद दिलाने का।

मनीष जी हमने मोटे लोगों पर बिल्कुल भी निशाना नही साधा है। ये तो बस कुछ पुरानी याद है। :)
अरे ममता जी मेने तो आप की कविता उसी तरह से नाच नाच के पढी, सच मे एक दम बचपन मे लोटा दिया,
लाला जी ने केला खाया...
आप का धन्यवाद
Neeraj said…
wo kya din the nana nani ke sath din bhar khelte khate bhgvan g please hme wo din phir se de dijiye

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