रविवार कहो या इतवार कहो या कहो संडे

मतलब तो एक ही है छुट्टी ,आराम और फनडे । :)

पहले तो हफ़्ते में छ दिन का स्कूल और ऑफ़िस हुआ करता था। और रविवार का इन्तज़ार बड़ी बेसब्री से होता था क्योंकि रविवार को आराम से सोकर उठो और मंद मंद गति से सब काम करो। ना स्कूल जाने की जल्दी और ना ही सुबह सुबह उठने की जल्दी । हांलाकि मममी कभी कभी टोका करती थी पर उनकी बात उस एक छुट्टी के दिन अनसुनी कर देते थे ये कहकर कि सिर्फ़ एक दिन ही तो मिलता है । 🙂

हमने तो ख़ूब रविवार का मज़ा लिया है पर जब हमारे बेटे स्कूल जाने लगे थे तो संडे फनडे कम स्टडी डे हो गया था क्योंकि बेटों के हर सोमवार किसी ना किसी विषय का टेस्ट होता था । और चूँकि हर टेस्ट के नम्बर जोड़े जाते थे तो ज़ाहिर है कि संडे का वो मज़ा नहीं रह गया था ।

ख़ैर जब राजीव गांधी सत्ता में आये थे तो उन्होंने दिलली में हफ़्ते के पाँच दिन काम का चलन शुरू किया था जिससे शनिवार और रविवार सकूल और ऑफ़िस बंद होने लगे थे । इस तरह दो दिन की छुट्टी मिलने से एक बार फिर से छुट्टी का मज़ा आने लगा था क्योंकि शनिवार का दिन देर से सोकर उठने और आराम फ़रमाने में जाता था।

अब तो सब बड़े हो गये है और अब टेस्ट का भी कोई झंझट नहीं है तो अब फिर से रविवार का मज़ा आने लगा है वैसे अब तो कई बार सुबह सबेरे की वॉक के कारण संडे फ़ंडे नहीं रहता है पर ज़्यादातर फ़ंडे ही रहता है। 😋

अब आज की पोस्ट संडे आराम फ़रमाने के कारण देर से पोस्ट कर रहे है। अब पढ़ने वाले भी तो संडे मना रहे होते है।

तो अब आप लोग आराम फ़रमाते हुए हमारी पोस्ट पढ़िये और हम जा रहे है फ़ार्मूला वन रेस देखने । 😀

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