किटटी पार्टी

किटटी पार्टी का मतलब मौज मस्ती ,हँसना बोलना ,खाना और खेलना । और उस दो- तीन घंटे के दौरान सभी समस्याओं और चिन्ताओं को भूलकर बस जी भर कर हँसना ,खाना और खेलना । आजकल तो किटटी पार्टी का बहुत चलन हो गया है। और ये पार्टी जो होम मेकर महिलायें होती है उनके लिए आपस में मिलने का एक ज़रिया भी होती है। क्योंकि वरना वो पति ,बच्चों और घर मे ही व्यस्त रहती है।

हालाँकि पहले मेरा मतलब है कि सत्तर के दशक में किटटी पार्टी को लोग बहुत ज़्यादा पसंद नहीं करते थे और बहुत ग़लत धारणा थी इसके बारे में, क्योंकि तब शायद यह माना जाता था कि घर की ग्रहणी घर से बाहर जाकर कहीं घर परिवार को अनदेखा ना करने लगे और ये भी कि ऐसी पार्टी में सिर्फ़ परपंच होता है मतलब लोगों के बारे में उलटी सीधी बातें होती है।

हमें याद है हम लोगों के पडोस में चंडीगढ़ से एक कपूर परिवार रहने आया था और कुछ दिन बाद कपूर आंटी ने मममी को अपने घर किटटी पार्टी में बुलाया । और कुछ और जो आंटी की जानने वाली थी उन्हें बुलाया था। और उस समय हम सब के लिए ये बिलकुल नयी बात थी और उन्होंने समय दोपहर बारह बजे का दिया था क्योंकि इस समय तक घर के काम निपट जाते थे। ख़ैर मममी गई और उनके लौटने पर हम सबने उनसे वहाँ क्या हुआ क्या खाया । ये सब सुना पर उसके बाद हमारी मममी किटटी पार्टी में नहीं गई । क्योंकि उन्हें ज़्यादा मज़ा नहीं आया था शायद । हालाँकि उसके बाद भी कई बार कपूर आंटी ने मममी बुलाया था ।

समय बीतता गया और हमारी दीदी की शादी हुई और कुछ समय बाद दीदी ने बताया कि उनके मोहल्ले में महिलाओं ने किटटी शुरू की है और इसमें बड़ा अच्छा रहता है कि हर महीने एक दिन किसी एक के घर दोपहर में जब पति और बच्चे अपने अपने ऑफ़िस और स्कूल होते है उस समय किटटी के लिए जाते है और सब लोग जो भी तय हुआ होता है उतने रूपये किटटी करने वाले को देते है । और इस तरह से ये बचत का एक तरीक़ा भी है।

शादी के बहुत साल बाद हम भी किटटी पार्टी के सदस्य बने हालाँकि पहले हम कुछ बहुत ज़्यादा उत्सुक नहीं थे पर हमारी पड़ोसन ने बहुत ज़ोर देकर कहा कि आप एक बार आइये हमारी गेस्ट की तरह अगर आपको अच्छा लगे तो आप किटटी ज्वाइन कर लीजियेगा वरना मत करियेगा। उसने किटटी का समय ग्यारह बजे का दिया।


हम भी तैयार होकर किटटी के लिए उसके घर तय समय पर पहुँचे और फिर धीरे धीरे बाक़ी लोग भी आ गये । कुछ को हम जानते थे पर कुछ हमारे लिये बिलकुल नये थे । चूँकि हम लोग बहुत साल बाहर रहे थे दिल्ली से और कॉलोनी में काफ़ी नये लोग आ गये थे जिन्हें हम जानते नहीं थे। पर किटटी की बदौलत हमारा दायरा बढ़ने लगा था।

सबसे पहले नाश्ता वग़ैरह खाया गया फिर तमबोला खेला गया उसके बाद दो- तीन गेम्स भी खेले गये और जो जीता उसे प्राइज़ भी मिला ,हम सभी का बिलकुल बच्चों की तरह प्राइज़ जीतने पर ख़ुश होना और हारने पर थोड़ा अफ़सोस करना । ऐसा लगा मानो ज़िन्दगी में दुबारा वो बचपन मिल गया हो। और फिर लंच हुआ और खा पीकर सब लोग किटटी होस्ट को धन्यवाद कर अपने अपने घर को चल दिये। कहना नहीं होगा कि हम भी इस किटटी पार्टी के सदस्य बन गये। 😀सबसे अच्छी बात हरेक के घर में कुछ नया और अलग तरह का खाना और गेम्स होते है।

हमारी दीदी ने बिलकुल सही कहा था कि किटटी की बदौलत हर महीने कुछ बचत हो जाती है और जब अपनी किटटी निकलती है तो एक साथ ख़ूब सारे पैसे मिलते है जिससे अपनी मनपसंद चीज़ ख़रीद सकते है या इसे जमा भी कर सकते है।

अब तो हर महीने किटटी के उस एक दिन का इन्तज़ार रहता है क्योंकि उस एक दिन के वो चार घंटे हम सबको अगली किटटी तक के लिए रिचार्ज कर देते है। 😀










Comments

Popular posts from this blog

क्या चमगादड़ सिर के बाल नोच सकता है ?

जीवन का कोई मूल्य नहीं

सूर्य ग्रहण तब और आज ( अनलॉक २.० ) चौदहवाँ दिन