सबसे सस्ती जिंदगी
आजकल जिंदगी से सस्ती तो शायद ही कोई चीज है इस दुनिया मे।जब जो भी जिसकी भी चाहे जिंदगी ले सकता है। वजह कोई भी हो सकती है दोस्त से नही पटी तो मार दो ,तनाव है तो मार दो,छुट्टी न मिले तो मार दो,भाई से गुस्सा तो मार दो ,पत्नी से अनबन तो मार दो,बेटियों को तो लोग बेमोल ही मारते रहते है।मारना भी कितना आसान हो गया है। और सजा मिलते-मिलते तो सालों बीत जाते है।सजा मिली तो ठीक वरना .... । जीवन जो भगवान की दी हुई एक नियामत है पर जिसे छीनने मे मनुष्य ज़रा भी नही झिझकता है।हर दिन ऐसी बातें सुननें और पढ़ने को मिल जाती है। जहाँ मन के खिलाफ बात हुई वहीं झट से जान ले ली। अरे जान ना हुई मानो सब्जी भाजी हो गयी ।पर सब्जी भाजी भी अगर पसंद की नही होती है तो एक बार को लोग छोड़ देते है पर ..... ।
आज के अखबार मे भी ऐसी ही कुछ खबर छपी थी (जिसने हमे सोचने पर मजबूर किया )जिसमे एक पिता ने अपनी बेटी जो कि न बोल सकती थी और नाही कुछ समझती थी उसे नदी मे डूबाकर मार डाला ।क्यूंकि पिता का कहना था कि उसके चार बच्चे है और उसके पास कोई नौकरी नही है।
ये तो हम सभी जानते है कि हाल ही मे गुडगाँव के स्कूल मे किस तरह से दो बच्चों ने अपने ही क्लास के एक बच्चे की जान ले ली थी। और वो भी सिर्फ इसलिए क्यूंकि वो लड़का सबको तंग करता था।
कल ही कोई न्यूज़ चैनल एक और ऐसी ही खबर दिखा रहा था जिसमे पति ने अपनी पत्नी को मार दिया था और जिस निर्विकार भाव से वो सारी घटना को बता रहा था कि बस उनका आपस मे झगडा हुआ और बात-बात मे झगडा बढ़ता गया और चूँकि पत्नी जोर-जोर से बोल रही थी इसलिए उसने उसका मुँह बंद कर दिया और फिर कैसे वो मर गयी। और कैसे उसने अपनी पत्नी के शरीर को एक अटैची मे रक्खा ।
दहेज़ के लिए तो ना जाने कितनी लड़कियों की बलि होती है और भ्रूण हत्या के बारे मे तो हम सभी जानते है। प्यार मे असफल हुए तो भी लोग या तो अपनी जान दे देते है या दुसरे की जान ले लेते है।
ऐसे न जाने कितने ही उदाहरण हमे आये दिन देखने को मिलते है जिन्हें सुन कर और पढ़कर तो यही लगता है कि जिंदगी से सस्ती तो कोई चीज ही नही है।
क्या इस तरह से जान लेने वालों को ज़रा भी डर नही होता कि इस तरह से किसी की जान लेने के बाद उनका क्या होगा ?
जिसे आप जिंदगी दे नही सकते उसकी जिंदगी लेने का क्या हक है ?
आज के अखबार मे भी ऐसी ही कुछ खबर छपी थी (जिसने हमे सोचने पर मजबूर किया )जिसमे एक पिता ने अपनी बेटी जो कि न बोल सकती थी और नाही कुछ समझती थी उसे नदी मे डूबाकर मार डाला ।क्यूंकि पिता का कहना था कि उसके चार बच्चे है और उसके पास कोई नौकरी नही है।
ये तो हम सभी जानते है कि हाल ही मे गुडगाँव के स्कूल मे किस तरह से दो बच्चों ने अपने ही क्लास के एक बच्चे की जान ले ली थी। और वो भी सिर्फ इसलिए क्यूंकि वो लड़का सबको तंग करता था।
कल ही कोई न्यूज़ चैनल एक और ऐसी ही खबर दिखा रहा था जिसमे पति ने अपनी पत्नी को मार दिया था और जिस निर्विकार भाव से वो सारी घटना को बता रहा था कि बस उनका आपस मे झगडा हुआ और बात-बात मे झगडा बढ़ता गया और चूँकि पत्नी जोर-जोर से बोल रही थी इसलिए उसने उसका मुँह बंद कर दिया और फिर कैसे वो मर गयी। और कैसे उसने अपनी पत्नी के शरीर को एक अटैची मे रक्खा ।
दहेज़ के लिए तो ना जाने कितनी लड़कियों की बलि होती है और भ्रूण हत्या के बारे मे तो हम सभी जानते है। प्यार मे असफल हुए तो भी लोग या तो अपनी जान दे देते है या दुसरे की जान ले लेते है।
ऐसे न जाने कितने ही उदाहरण हमे आये दिन देखने को मिलते है जिन्हें सुन कर और पढ़कर तो यही लगता है कि जिंदगी से सस्ती तो कोई चीज ही नही है।
क्या इस तरह से जान लेने वालों को ज़रा भी डर नही होता कि इस तरह से किसी की जान लेने के बाद उनका क्या होगा ?
जिसे आप जिंदगी दे नही सकते उसकी जिंदगी लेने का क्या हक है ?
Comments
मैने भी पाया है कि मेरा तनाव जब हिंसक नहीं बन पाता - अपने दमन के चलते, तो वह अवसाद में तब्दील होने लगता है। इस लिये बेहतर है कि तनाव को ही मिटाया जाये।