शब्दों का फेर

आज दोपहर डेढ़ बजे ज़ी न्यूज़ ने एक ताजा खबर दिखाई जिसमे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी बी.जे.पी.के द्वारा की गयी कल की घोषणा पर बोल रहे थे कि बी.जे.पी.को मोदी से खतरा है इसीलिए बी.जे.पी.ने कल लाल कृष्ण अडवानी को प्रधानमंत्री के पद का उम्मीदवार घोषित किया ।

ज़ी न्यूज़ मे कुछ इस तरह की ताजा खबर दिखाई जा रही थी। जरा गौर फरमाएं।

















अब बेचारे अडवानी जी प्रधानमंत्री बनते-बनते पीए बन गए। :)


चलिए लगे हाथ एक और हिन्दी का नमूना दिखा देते है। ये बोर्ड बंगलोर के टीपू सुलतान के महल के बाहर बने बगीचे मे लगा है। यहां पर अगर हिन्दी गलत है तो एक बार को समझा भी जा सकता है पर ज़ी न्यूज़ पर गलती होना वो अभी ऐसी। पता नही अडवानी जी और बी.जे.पी के लोगों के दिलों पर क्या बीत रही होगी। :)

Comments

बड़ी तीखी और तेज नज़र है आपकी.
इसे और तेज करें. अच्छा है.
बहुत बढ़िया प्रस्तुति...बेचारे आडवानी जी....:-)
क्या बात है!!
बहुत सही पकड़ा आपने!!
G Vishwanath said…
अंग्रे़जी में भी ग़लत लिखा हुआ है।
यदि प्रवेश निषेध है, तो अंग्रेजी में "Entry prohibited", होना चाहिए। "Entry Restricted" ("प्रवेश परिमित") लिखने से कोई भी मतलब निकाला जा सकता है। किस चीज़ का restriction?
समय का? या कुछ लोगों का?

G विश्वनाथ, जे पी नगर, बेंगळूरु
रोचक लैप्सेज और रोचक प्रस्तुति! हम तो अंग्रेजी बीच में डालने से परहेज नहीं करते पर लिखा उच्चारण के अनुसार सही जाना चहिये।
अडवानी क्या होंगे - समय बतायेगा।
जी न्यूज़ वाला मुद्दा आप जितना बड़ा बनाकर पेश कर रही हैं, दरअसल वो उतना बड़ा है नहीं। हर जगह आदमी ही काम करता है। जबर्दस्त प्रेशर और खबर को जल्दी बताने की urgency में ऐसी गलती हो जाती है लेकिन तत्काल सुधार भी ली जाती है। यहां म शब्द छूट गया है लेकिन जाहिर है नज़र पड़ते ही तत्काल सुधार लिया गया होगा।
36solutions said…
आपके पारखी नजर को प्रणाम ।
पहले तो पारखी नज़र को सलाम....

अब बात आती है गलती की तो... ये वही लोग हैँ जो दिल से तो अँग्रेज़ हैँ और रोटी की खातिर हिन्दी को गले लगा इसे लिख बोल रहे हैँ...

इनके लिए ऐसी छोटी क्या ...

मोटी गल्तियाँ भी मायने नहीं रखती...
ghughutibasuti said…
ममता जी यह गलती बिल्कुल नहीं थी । आजकल राष्ट्र का प्रधानमंत्री किसी विशेष राजकुमार के बड़े होने तक महारानी का पी ए भी हो सकता है ।
घुघूती बासूती
दाद देनी पड़ेगी आपकी पारखी नजरों को , बहुत बढिया लिखा है , बधाईयाँ !
पूरी सहानुभूति है श्रीमान आडवाणी जी से. वैसे आप क्या टीवी देखते हुए भी कैमरा लेकर बैठती हैं? बड़ी त्वरित और पारखी नजर....
बिल्कुल सहमत,
हिंदी की टांग टूटने पर पीड़ा तो होनी ही है,
लेकिन वहां से हिंदी नदारत तो नहीं ही है, यह सभी मानेंगे । तो मंशा है, किंतु पारंगत नहीं हैं,
कम से कम मुझे तो यही दिख रहा है । हमारी ज़मात में कितने जन किसी भी दक्षिण भारतीय भाषा का 'द 'भी पढ़ पाते हैं ? आवश्यकता उनको करीब लाने की है और इतनी गलती तो मैं स्वयं छोटे क्लासों मे कर ही बैठता था । जो कुछ भी लिखा है उससे हिंदी अशुद्ध होकर भी लेखक की मंशा साफ़ होने की गवाही देता है । हम अपनी अंग्रेज़ी पर भले नाज़ करें किंतु विदेशों में अधिकांशतः
कैरिक्रेचर के रूप में उद्धृत की जाती है ।
आपकी पैनी दृष्टि एक सर्चलाइट की तरह सीमित दायरे पर ही प्रकाशित हो रही है ।

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