ये कैसे डाक्टर ?
आजकल हर तरफ डॉक्टरों के चर्चे हो रहे है। दिल्ली मे डाक्टर A.I.I.M.S.के डाक्टर वेणुगोपाल को लेकर हड़ताल करते है तो कहीं गाँवों मे उनकी नियुक्ति न हो इसको लेकर हड़ताल करते है।पर ये हड़ताली डाक्टर कभी नही सोचते है कि उनके इस तरह बार-बार हड़ताल करने से अगर किसी का नुकसान होता है तो वो मरीजों का होता है ।A.I.I.M.s.मे तो अब आये दिन हड़ताल होने लगी है । जहाँ पर ना केवल दिल्ली अपितु दूर-दराज के शहरों -गाँवों से मरीज आते है।कुछ मरीज जिन्होंने महीनों पहले डाक्टर से समय लिया हुआ होता है तो कुछ जिन्हें इलाज कि सख्त जरुरत होती है उन्हें इस तरह की हड़ताल से कितनी परेशानी होती है इसका ख़याल क्या इन डॉक्टरों को कभी आता है। आजकल हर दो-चार महीने मे डाक्टर हड़ताल करते रहते है। कभी दिल्ली तो कभी तमिल नाडू तो कभी आन्ध्र प्रदेश मे तो कभी यू.पी. तो कभी बिहार मे। हड़ताल का कारण भले ही अलग हो पर भुगतना तो मरीज को ही पड़ता है।
ये डाक्टर जिन्हें पढाई खत्म होने पर शपथ दिलाई जाती है कि वो निःस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करेंगे। उसका तो कोई अर्थ ही नही रह गया है। यूं तो इस शपथ को डॉक्टरों ने आज क्या काफी सालों पहले से भुला दिया है । पहले भी डॉक्टरों को गाँव मे जाकर काम करना बिल्कुल पसंद नही था पर सरकारी डॉक्टरों को जब भी गाँव मे पोस्ट किया जाता था तो शायद महीने मे दो-चार दिन ही वो गाँव मे जाकर मरीजों का इलाज करते थे पर हाजिरी पूरे महीने की लगी होती थी ।गाँव मे भले ही नियुक्ति हो पर वो शहर के हस्पताल मे काम करते थे ।
पहले तो डाक्टर गाँव की नियुक्ति मे लुका-छिपा का खेल खेलते थे पर अब समय बदल गया है डाक्टर इस बात के लिए हड़ताल कर देते है कि उन्हें गाँव मे काम करने को ना भेजा जाये।पर अगर सरकार उन्हें गाँव की जगह विदेश भेजे तो भी क्या ये डाक्टर नही जायेंगे। और इन हड़ताली डॉक्टरों की माँग है कि अगर उन्हें गाँव मे काम करने जाना ही है तो साढ़े पांच साल की पढाई के समय मे छे महीने उन्हें गाँव मे भेज देना चाहिऐ जिससे जब वो अपनी मेडिकल की पढाई ख़त्म करें तो सीधे विदेश जाकर नौकरी कर सकें औए धूम कर पैसा कमा सकें। ठीक है पैसा कमाने मे कोई हर्ज नही है पर अपने देश मे क्या कुछ दिन भी काम नही कर सकते है।
करीब तीस-चालीस साल पहले के डाक्टर सरकारी हस्पताल मे भी काम करते थे और अपनी प्राइवेट प्रक्टिस भी करते थे।प्राइवेट प्रक्टिस तो बहुत साल बाद बंद हुई ।पहले मरीज को हस्पताल मे देखते थे और फिर शाम को या अगले दिन उसे घर पर या अपने नर्सिंग होम मे देखने को बुलाते थे। पहले तो कहा जा सकता था कि डॉक्टरों को कुछ काम पैसा मिलता था पर आज के समय मे तो डॉक्टरों को हिन्दुस्तान मे भी अच्छा-खासा पैसा मिलता है।हाँ विदेशों की तुलना मे शायद कम हो सकता है।
अब मेडिकल प्रोफेशन नही बल्कि बिजनेस बन गया है।
ये डाक्टर जिन्हें पढाई खत्म होने पर शपथ दिलाई जाती है कि वो निःस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करेंगे। उसका तो कोई अर्थ ही नही रह गया है। यूं तो इस शपथ को डॉक्टरों ने आज क्या काफी सालों पहले से भुला दिया है । पहले भी डॉक्टरों को गाँव मे जाकर काम करना बिल्कुल पसंद नही था पर सरकारी डॉक्टरों को जब भी गाँव मे पोस्ट किया जाता था तो शायद महीने मे दो-चार दिन ही वो गाँव मे जाकर मरीजों का इलाज करते थे पर हाजिरी पूरे महीने की लगी होती थी ।गाँव मे भले ही नियुक्ति हो पर वो शहर के हस्पताल मे काम करते थे ।
पहले तो डाक्टर गाँव की नियुक्ति मे लुका-छिपा का खेल खेलते थे पर अब समय बदल गया है डाक्टर इस बात के लिए हड़ताल कर देते है कि उन्हें गाँव मे काम करने को ना भेजा जाये।पर अगर सरकार उन्हें गाँव की जगह विदेश भेजे तो भी क्या ये डाक्टर नही जायेंगे। और इन हड़ताली डॉक्टरों की माँग है कि अगर उन्हें गाँव मे काम करने जाना ही है तो साढ़े पांच साल की पढाई के समय मे छे महीने उन्हें गाँव मे भेज देना चाहिऐ जिससे जब वो अपनी मेडिकल की पढाई ख़त्म करें तो सीधे विदेश जाकर नौकरी कर सकें औए धूम कर पैसा कमा सकें। ठीक है पैसा कमाने मे कोई हर्ज नही है पर अपने देश मे क्या कुछ दिन भी काम नही कर सकते है।
करीब तीस-चालीस साल पहले के डाक्टर सरकारी हस्पताल मे भी काम करते थे और अपनी प्राइवेट प्रक्टिस भी करते थे।प्राइवेट प्रक्टिस तो बहुत साल बाद बंद हुई ।पहले मरीज को हस्पताल मे देखते थे और फिर शाम को या अगले दिन उसे घर पर या अपने नर्सिंग होम मे देखने को बुलाते थे। पहले तो कहा जा सकता था कि डॉक्टरों को कुछ काम पैसा मिलता था पर आज के समय मे तो डॉक्टरों को हिन्दुस्तान मे भी अच्छा-खासा पैसा मिलता है।हाँ विदेशों की तुलना मे शायद कम हो सकता है।
अब मेडिकल प्रोफेशन नही बल्कि बिजनेस बन गया है।
Comments
पर ऐसा शायद हर क्षेत्र में हो गया है।
आरंभ
जूनियर कांउसिल
कुछ मैं भी कहूँ ? यदि अपवादों की बहुतायत दिखे तो इसके मानी यह तो नहीं है कि उनको सार्वभौमिक ही माना जाये ।
मैं स्वयं ही डाक्टर हूँ और अपनी बिरादरी और समाज दोंनों पर नजर रखता हूँ ।
एक औसत डाक्टर लगभग तीस की आयु से अपना व्यवसायिक जीवन शुरु करता है, तमाम जिल्लत और परेशानियों के बीच भी उससे बिना थके बिना शिकन कार्य करने की अपेक्षा की जाती है । क्या न्यायसंगत है ?
अरे, डाक्टर खुदै बीमार हुई गये, कोई हमदर्दी नहीं बल्कि परिहास का पात्र !
गाँव में यदि आप 48 घंटे नहीं काट सकतीं, तो डाक्टर कैसे काटता है, यह सोच नहीं सकतीं । फिर सरकार के तुगलकी फ़रमान उस पर दबाच बनाये रखते हैं,यह उन्मूलन, वह लक्ष्य, फलाना अभियान, ढिकाना अवलोकन यानि गाँव में तैनात डाक्टर पीर,बावर्ची,भिश्ती,खर सभी कुछ के लिये बाध्य है ।
बच्चों को शिक्षा देनी ही देनी है, वह शहर में रहेंगे, पत्नी उनकी देखरेख के लिये वहीं हैं, तो दोहरा खर्च !
कैडबरीज़ बेचने वाला MBA, फौज़दारी सुलझाने वाला LLB,ज़ब ज़्यादा पैसा पीटता हुआ दिखता है तो उसे कुंठित होने के अधिकार से तो न वंचित करें !
कमीशनखोरी निश्चय ही बढ़ती जा रही है, इतना कि मेरा मन भी इस पेशे से घृणा करने को मज़बूर करता है, किंतु यदि उसे उसका देय सीधे तरीके से मिल जाया करे तो वह घुमा कर नाक क्यों पकड़े ? एक आभिजात्य परिवार में भी हर चीज के लिये बज़ट निर्धारित अवश्य की जाती है ,बोनस मिला तो लोग शापिंग पर भी निकल जाते हैं । किंतु यदि यह सुझाव दिया जाय कि इतना पैसा चिकित्सा मद में रख दो तो,’ राम-राम काहे ऎसी मनहूसियत की बात करते हो’ यानि उस समय डाक्टर मनहूस और जब उसकी क्लिनिक में खड़े हों तो भगवान ! और जब बिल मिला तो हैवान !!
तो यह समाज स्वयं ही दोहरी मानसिकता में जी रहा है फिर डाक्टर भी तो आप ही के समाज से निकल कर आता है ।
आप कदम कदम पर रिश्वत देकर अपना काम करवाने में फ़क़्र महसूस करते हों तो डाक्टर साहब की टेढी ऊँगली पर अपनी ऊँगली न ही उठायें ।
रही बात शपथ की, तो वह यह अब उतना ही प्रासंगिक रह गया है जितना कचहरी में खड़े होकर गीता पर हाथ रखना या संसद में शपथ लेना ।
डॉक्टर के कमाई पर शुरू से सबको आँख लगता है | लेकिन कोई यह ध्यान नहीं देता है की कया जो उनको मिल रहा है की वो पर्याप्त है की नहीं | कोई स्पेसिलिस्ट, जैसे की मेडीसिन या पेडियात्रिसियन, बनने का मतलब है की उसने कम से कम १२ साल का स्कूल, ५ साल एम् बी बी एस और ३ साल पोस्ट ग्राजुएत किया है| अगर सत्र में देरी हो, या तैयारी में कुछ साल लग गए , तो २ से ३ जोड़ दीजिये | अगर आगे डिग्री हो जैसे की सुपर स्पेसिअलिटी की, तो और ३ से ५ साल जोड़ दिजिया| कुल मिला कर अधिक से अधिक एक ही लीन में आप करीब २५ साल की पढाई पूरा करते हैं|
आजकल डॉक्टर के नौकरी पर शुरूआती वेतन १ से १.५ लाख तक होता है| और बहुत अधिक डिग्री हो, और प्राइवेट में हो, तब जाकर १२ से १५ लाख सालाना होता है| लेकिन दूसरे पढ़ाई से आप कहीं जल्दी और कहीं जयादा कमा सकते हैं | और इतना घिसने के बाद, अगर डॉक्टर लोग नाखुश हैं तो कया ग़लत है|
लोग ये ध्यान नहीं देते हैं की हड़ताल क्यों हुआ, किसी महिला डॉक्टर का छेड़खानी हुआ , किसे इमर्जेंसी डॉक्टर का पिटाई हुआ, या उच्च स्तर पर आरक्षण लगा दिया या वरिष्ट डॉक्टर को अकरान निलंबित किया गया या अन्य कोई कारन| हाँ लेकिन उनका इलाज नहीं हुआ, तो बहुत ग़लत हुआ | दुर्भाग्य से डॉक्टर का व्यवसाय ही ऐसा है की लोग दुःख-दर्द में ही उसके पास जाते हैं| और जहाँ ५०० रुपे कोई खुशी खुशी सिनेमा या खाने पर लुटा सकता है, वहाँ सरकारी हॉस्पिटल का सस्ता बिल भी भारी लगता है |
और अगर डॉक्टर को उनके पढाई के अनुपात वेतन और इज्जत मिले, तो यह सब क्यों हो| इज्जत तो अब बस तेल लेने गया है| और पैसा तो उतना ही मिलेगा, जितना मरीज देगा| अगर सबकुछ इमानदारी से होता, तो क्यों ऐसा प्रणाली क्यों बना की सबको उसमें हर चीज के लिए रिश्वत चाहिए, या रंगदारी टैक्स चाहिए, या अपहरण न होने का बीमा चाहिए, या फिर वकीलों क झूठ -फूस के मुकदमों के लिए | अगर समाज उन १९७० के दशक के डॉक्टर के जैसा इलाज का उम्मीद करते हैं, तो उनको आज भी १९७0 का इज्जत और पैसा देना होगा | रहा शपथ की बात, तो उसमें मरीजों के इलाज से कौन मना कर रहा है, लेकिन काम करने का जगह भी सुरक्षित और मन लायक होना चाहिए|
उदाहर्ण के लिए कुछ वेतन देखें - http://jobsearch.monsterindia.com/searchresult.html से लिया गया है -
* AREA SALES MANAGER, 6th Dec 2007, Datawise Consultants, MBA
2-5 years, 7.70-10.90 lacs, Ahmedabad
* Finance Manager (SAP), 6th Dec 2007,
0-2 years, 7.00-10.00 lacs, Bangalore, Hyderabad
* Windows /IIS Administrator, 6th Dec 2007, IP soft India Pvt. Ltd.
4-8 years, 7.00-12.00 lacs, Bangalore
और अब डॉक्टर के वेतन पर ध्यान दें
शुरूआती वेतन डॉक्टर का -
* Out Reach Medical Officer, 3rd Nov 2007
Durgabai Deshmukh Hospital, 0-5 years, 0.90-1.20 lacs, Chennai
Doctor with a flair for general practice and willing to serve the community
और सबसे अधिक पढाई करने पर -
* MSMCH CTVS, MDDM/DNB cardiologist, for andhra, 1st Dec 2007
Arcot Medical Placement , 0-10 years, 10.00-12.00 lacs, Hyderabad
Thanks
Ravi Mishra
http://hivcare.blogspot.com/
दीपक भारतदीप
आपसे एक आग्रह है,
यह सब आपने महज़ कमेंटियाने के लिये प्रकाशित किया है याकि गंभीरतापूर्वक ? पहले यह स्पष्ट करदें ताकि किसी को आपकी ईमानदारी पर सुबहा न रहे ।
यदि आप निश्चित ही गंभीर हैं तो आपको शपथ लेनी होगी कि आप हमेशा अपने घर से खाली ज़ेब ही निकलेंगे !
निगाह ज़ेब पर बोले तो हमारे लिये ज़ेबकतरे सरीखी तुलना ही हुई ।
तो अब मैं भी तुलना पर उतर ही आऊँ, आप अपने सब्ज़ीवाले के पसंगे पर एक फ़ालतू आलू डाल कर देखें उसकी प्रतिक्रिया ! लेकिन एक डाक्टर के यहाँ कुछपल ठहर कर देंखे, कितने लोग किसी एक बच्चे को या कि घरबैठी बीबी का हवाला दे कर फ़रमाईश करते हैं, ज़रा एक खाँसी की सिरप लिख दीज़िये या गैस की दवाई !
यदि ऎसा नहीं हो तो यह तो आम है कि आप घुसते हैं अपनी ख़ाज़ के ईलाज़ को और टट्टी साफ़ होने की दवा बिना लिखवाये उठने का नाम नहीं लेते । गोया डाक्टर न हुआ चाटवाले को डील कर रहें हों और आपका नुस्ख़ा चाट का दोना !
कृपया निगाह ज़ेब पर रहती है को स्पष्ट करें मैं यह बिना मिर्ची लगे बयान कर रहा हूँ, किसी को मिर्ची लगे तो मैं क्या करूँ ?
कुछ कहना नहीं चाहेंगे आप ?
प्रतीक्षा है !