मुझे बोलना आता है।

कहीं आप लोग ये तो नही सोच रहे है कि ये हम अपने बारे मे कह रहे है , अरे नही ये हमारे नही ये तो राहुल गाँधी के शब्द है जो उन्होने हाल ही मे अपने उत्तर प्रदेश के दौरे मे कहे थे।जहाँ उन्होने अपनी पार्टी को कैसे मजबूत करे और किस तरह से दुबारा से उत्तर प्रदेश मे तथा अन्य राज्यों मे कैसे उनकी पार्टी अपनी पकड़ बना सके।अब राहुल गाँधी को बोलना आता है या नही उससे भला किसी को क्या फर्क पड़ता है ।

जब राहुल गाँधी को वाकई मे बोलना नही आता था तब भी लोग उनके बिना कुछ कहे ही सब कुछ समझ लेते थे तो भाई अब तो माशा अल्लाह बोलना भी आ गया है। और इसका तो वो अब दावा भी कर रहे है।

जब से राहुल गाँधी की पदोन्नति हुई है तब से तो उनके मिजाज भी कुछ बदल गए है। और बदले भी क्यों न आख़िर इतनी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी का भार जो उनके कन्धों पर डाल दिया गया है।


पर भाई बोलने से ये बेहतर नही है कि आपका काम बोले।

Comments

अब यह तो समय ही बताएगा कि उनका काम बोलता है या उनकी बोलती ही बंद होती है!!
बोलने के बारे में तो गदहा भी यही बात कहेगा;

किन्तु देखना यह है कि रहुल को सोचना, विचारना आता है या नहीं। कभी बिना पर्ची पढ़े अपनी बात (गम्भीर बात) रख सकते हैं?
aapne sahi kahaa magar kash ki rahul apne pitaa rajiv ke sapno ka ek ansh bhi puraa kar pate.
मैं परिवारवाद के खिलाफ था। पर देखा कि जो परिवार के सहारे बढ़े हैं या जो वैसे बढ़े हैं; अंतत: व्यक्तिगत नेतृत्व की क्षमता ही काम आयी है।
देखें राहुल जी कैसा नेतृत्व दे पाते हैं।
Batangad said…
राहुल में नेतृत्व क्षमता होती तो, ये कहने की जरूरत नहीं पड़ती।
http://updiary.blogspot.com/
आप ने यह क्यों सोच लिया कि हम सोचेंगे कि यह आपने खुद के लिए कहा? हम जानते हैं कि आपको बोलने आत है और राजीव गांधी को नहीं।
अब देखना यह है कि वे क्या क्या बोलेंगे एवं उसका क्या असर भारतीय समाज पर होगा -- शास्त्री

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
इस काम के लिये मेरा और आपका योगदान कितना है?

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