गोवा का मखरोत्सव ( आरती )
वैसे हम ३-४ दिन पहले ये पोस्ट लिखने वाले थे पर लिख नही पाये क्यूंकि हमारा बेटा छुट्टियों मे घर आया हुआ है । और अब वैसे तो नवरात्र और दशहरा ख़त्म हो गया है पर फ़िर भी हमने सोचा कि इस मखरोत्सव आरती की बात कर ही ली जाए क्यूंकि ये आरती कुछ अलग तरह से होती है
।
गोवा के मंदिरों मे नवरात्रों के नौ दिन तक ये मखरोत्सव मनाया जाता है । और जगहों का तो पता नही पर हमने यहाँ पर ही इस तरह की आरती देखी है ।(पिछले ३ साल से ) मखर यानी की लकड़ी का बना हुआ मन्दिर जिसमे हर रोज एक नए देवी या देवता को बैठाया जाता है । इस मखर को खूब सजाया जाता है । और फ़िर उस देवी-देवता की आरती की जाती है।
खैर अष्टमी के दिन हम लोग भी इस आरती को देखने के लिए महालसा मन्दिर गए थे । आरती रात मे नौ -साढ़े नौ के आस-पास शुरू होती है ।और ये आरती तकरीबन एक घंटे तक चलती है। और यहाँ पर एक तरफ महिलायें और दूसरी तरफ पुरूष बैठते है । आरती शुरू होने के पहले वहां पर प्रवचन होता है और फ़िर ढोल शहनाई और ताशे के साथ आरती शुरू होती है । मन्दिर मे तो लोग बहुत पहले पहुँच कर बैठ जाते है क्यूंकि बाद मे जगह नही मिलती है और एक बार आरती शुरू होने के बाद तो जगह मिलने का सवाल ही नही रहता है ।एक ख़ास बात है कि आरती सिर्फ़ सामने बैठे लोग ही नही बल्कि दोनों तरफ़ साइड मे बैठे लोग भी आरती ठीक से देख पाते है क्यूंकि देवी का झूला बारी-बारी से हर तरफ़ घुमाया जाता है और हर तरफ़ आरती की जाती है ।इसलिए कोई फर्क नही पड़ता है कि आप सामने बैठे है या साइड मे । पूरी आरती के दौरान लोग बैठे रहते है ।
खैर हम लोग वहां सवा नौ बजे पहुंचे और जैसा की होना ही था सामने की तरफ़ जगह नही मिली तो हम लोग साइड मे बैठ गए ।इस आरती के लिए देवी एक विशेष रूप से सज्जित झूले (मखर )पर बैठाई गई थी जिसे खूब सारे फूलों और लाईट से सजाया गया था। जब आरती शुरू हुई तो ताशे के आवाज के साथ ही देवी की जय कार हुई और देवी के झूले को झुलाना शुरू हुआ (देवी के झूले को मन्दिर के पुजारी और (यहाँ की भाषा मे कहें तो )महाजन लोग झुलाते है थोडी-थोडी देर के लिए ।)और फ़िर एक घंटे तक आरती होती रही , पहले धूप से फ़िर अलग-अलग तरह के दीपक से आरती की गई ।बाद मे पुष्प चढाये गए । एक और बात इसमे आरती करते समय पुजारी एक -एक आरती करने के बाद थाली को कुछ इस तरह से सरकाता है की वो देवी के झूले के नीचे से जाती है और वहां खड़े पुजारी या मन्दिर के लोग उसे उठाकर बाहर करते है । इसमे सबसे बड़ी बात समय, झूले की गति और बैलेंस की होती है जरा सी चूक होने पर कोई भी घटना हो सकती है ।
आरती पूरी ख़त्म होने के बाद भी यथा स्थान सभी लोग शान्ति पूर्वक बैठे रहते है और फ़िर प्रसाद वितरण होता है (नारियल और गुड का और फल का ) और जब तक प्रसाद बंटता होता है कोई भी उठाकर नही जाता है सब लोग बैठे रहते है ।इसी बीच मन्दिर का ही कोई व्यक्ति देवी पर चड़े हुए फूलों के एक गुलदस्ते (प्रसाद)की बोली लगाने को लोगों को कहता है और लोग अपनी अपनी बोली लगाते है और जिसकी बोली ज्यादा उसे देवी का वो प्रसाद मिल जाता है ।और अब
इस आरती का एक छोटा सा वीडियो भी देखिये ।
।
गोवा के मंदिरों मे नवरात्रों के नौ दिन तक ये मखरोत्सव मनाया जाता है । और जगहों का तो पता नही पर हमने यहाँ पर ही इस तरह की आरती देखी है ।(पिछले ३ साल से ) मखर यानी की लकड़ी का बना हुआ मन्दिर जिसमे हर रोज एक नए देवी या देवता को बैठाया जाता है । इस मखर को खूब सजाया जाता है । और फ़िर उस देवी-देवता की आरती की जाती है।
खैर अष्टमी के दिन हम लोग भी इस आरती को देखने के लिए महालसा मन्दिर गए थे । आरती रात मे नौ -साढ़े नौ के आस-पास शुरू होती है ।और ये आरती तकरीबन एक घंटे तक चलती है। और यहाँ पर एक तरफ महिलायें और दूसरी तरफ पुरूष बैठते है । आरती शुरू होने के पहले वहां पर प्रवचन होता है और फ़िर ढोल शहनाई और ताशे के साथ आरती शुरू होती है । मन्दिर मे तो लोग बहुत पहले पहुँच कर बैठ जाते है क्यूंकि बाद मे जगह नही मिलती है और एक बार आरती शुरू होने के बाद तो जगह मिलने का सवाल ही नही रहता है ।एक ख़ास बात है कि आरती सिर्फ़ सामने बैठे लोग ही नही बल्कि दोनों तरफ़ साइड मे बैठे लोग भी आरती ठीक से देख पाते है क्यूंकि देवी का झूला बारी-बारी से हर तरफ़ घुमाया जाता है और हर तरफ़ आरती की जाती है ।इसलिए कोई फर्क नही पड़ता है कि आप सामने बैठे है या साइड मे । पूरी आरती के दौरान लोग बैठे रहते है ।
खैर हम लोग वहां सवा नौ बजे पहुंचे और जैसा की होना ही था सामने की तरफ़ जगह नही मिली तो हम लोग साइड मे बैठ गए ।इस आरती के लिए देवी एक विशेष रूप से सज्जित झूले (मखर )पर बैठाई गई थी जिसे खूब सारे फूलों और लाईट से सजाया गया था। जब आरती शुरू हुई तो ताशे के आवाज के साथ ही देवी की जय कार हुई और देवी के झूले को झुलाना शुरू हुआ (देवी के झूले को मन्दिर के पुजारी और (यहाँ की भाषा मे कहें तो )महाजन लोग झुलाते है थोडी-थोडी देर के लिए ।)और फ़िर एक घंटे तक आरती होती रही , पहले धूप से फ़िर अलग-अलग तरह के दीपक से आरती की गई ।बाद मे पुष्प चढाये गए । एक और बात इसमे आरती करते समय पुजारी एक -एक आरती करने के बाद थाली को कुछ इस तरह से सरकाता है की वो देवी के झूले के नीचे से जाती है और वहां खड़े पुजारी या मन्दिर के लोग उसे उठाकर बाहर करते है । इसमे सबसे बड़ी बात समय, झूले की गति और बैलेंस की होती है जरा सी चूक होने पर कोई भी घटना हो सकती है ।
आरती पूरी ख़त्म होने के बाद भी यथा स्थान सभी लोग शान्ति पूर्वक बैठे रहते है और फ़िर प्रसाद वितरण होता है (नारियल और गुड का और फल का ) और जब तक प्रसाद बंटता होता है कोई भी उठाकर नही जाता है सब लोग बैठे रहते है ।इसी बीच मन्दिर का ही कोई व्यक्ति देवी पर चड़े हुए फूलों के एक गुलदस्ते (प्रसाद)की बोली लगाने को लोगों को कहता है और लोग अपनी अपनी बोली लगाते है और जिसकी बोली ज्यादा उसे देवी का वो प्रसाद मिल जाता है ।और अब
इस आरती का एक छोटा सा वीडियो भी देखिये ।
Comments
regards
अच्छा विवरण।
http://www.ashokvichar.blogspot.com