कोयल और कौवे की अनोखी जुगलबंदी :)

हमारी ये पोस्ट कुछ-कुछ फुरसतिया जी से प्रेरित है । यहाँ गोवा मे चूँकि हरियाली बहुत है और हमारे घर मे भी पेड़-पौधे बहुत है तो यहाँ पर कौवे और कोयल दोनों ही बहुत दिखते है वैसे आम तौर पर माना जाता है कि कोयल दिखाई नही देती है और वो छुप कर बोलती है पर यहाँ पर कोयल अक्सर बोलती हुई दिखाई दे जाती है आज सुबह जब कोयल और कौवे की आवाज सुनी तो वीडियो बनाया और एक पोस्ट के रूप मे ये कुछ अलग सी जुगलबंदी आप लोगों के लिए पेश है

और कौवे तो गोवा मे इतने अधिक है कि अगर आप ढलती हुई शाम को किसी पेड़ के नीचे से गुजरे तो सिर का ध्यान रखना पड़ता है वरना कौवे जी का प्रसाद मिल जाता है :)

यहाँ तो हम रोज सुबह (करीब साढ़े आठ से नौ के बीच मे ) कौंवों को कुछ कुछ खाने को जरुर डालते है पहले तो - कौवे आते थे पर अब जैसे ही हम बालकनी मे जाते है और रोटी के टुकड़े डालना शुरू करते है कि हर तरफ़ से कौवे उड़-उड़ कर जाते है खाने के लिए

वैसे कौवों को खाना देने का एक कारण और भी है वो ये है कि अगर हम उन्हें खाना नही डालते है तो ये कौवे हमारे कैरी राम (doggi) के खाने पर हमला बोल देते है पर खाना देने से अब हर समय तो नही पर कभी-कभी कौवे कैरी का खाना खाते है और वैसे अब ये कौवे इतने निडर हो गए है कि अगर हम लोग बैठे रहते है तब भी वो आकर खाना खाते रहते है

दिल्ली मे तो कौवा और कोयल ज्यादा दिखाई देते ही नही है कि उनकी कांव-कांव या कुहू- कुहू सुनी जा सके

खैर गोवा मे ऐसी बहुत सी बातें जो कभी बचपन मे सुनते-देखते और महसूस करते थे उन सबका यहाँ पर मजा ले रहे है :) जैसे कोयल जब बोलती है तो अगर हम भी वैसे ही कुहू-कुहू बोले तो कोयल कुछ देर तक तो बोलती है पर फ़िर चुप हो जाती है बचपन मे तो खूब किया है और अभी कल यहाँ पर भी । :)

तो चलिए कोयल और कौवे की जुगलबंदी का आनंद उठाइए और बताइये कैसी लगी ये जुगलबंदी :)वीडियो अपलोड होने के लिए - मिनट लगता है

Comments

सही कहा आपने दिल्ली में यह आवाज़ अब बहुत कम सुनाई देती है ..आप वैसे बहुत ग़लत करती है एक तो यह आवाज़ जो कभी बीती दिनों की याद बन चुकी हैं दिल्ली में ..वह सुनाने के साथ साथ इतनी खुबसूरत विडियो भी दिखा रही है ..जलन के मारे बुरा हाल है ..सोचती हूँ कि यहाँ मैं रहती तो कई कविता लिखी जाती :) यहाँ तो बस शोर ही शोर है :)
"जैसे कोयल जब बोलती है तो अगर हम भी वैसे ही कुहू-कुहू बोले तो कोयल कुछ देर तक तो बोलती है पर फ़िर चुप हो जाती है । बचपन मे तो खूब किया है और अभी कल यहाँ पर भी ।"

तो ममताजी, आपकी बचपन की शरारतें अभी भी कम नहीं हुई??

-- शास्त्री

-- हिन्दीजगत में एक वैचारिक क्राति की जरूरत है. महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)
हमारे यहाँ कभी कभी ये आवाजे सुन जाती है.,,,आस पास हरियाली या किसी पेड़ का होना जरूरी है
दिल्ली मे तो कौवा और कोयल ज्यादा दिखाई देते ही नही हैं
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अच्छा कौव्वे नहीं हैं - संसद भवन के आसपास भी नहीं?!
Unknown said…
यहां दिल्ली में लोगों के रहने के लिए मारा मारी हो रही है । पक्षियों की ता ही क्या करें ।वीडियो अच्छा लगा ।
annapurna said…
हैदराबाद में कोयल को नहीं देखकर और कूहू कूहू नहीं सुन कर अर्सा हो गया हाँ कौए महाराज कभी-कभार दर्शन दे जाते है।
admin said…
दिल्ली ही नही, आज ज्यादातर शहरों में यही हाल है। लोग पितृपक्ष में कौओं को खोज रहे थे, पर उनके दर्शन नहीं हो पाए।
Udan Tashtari said…
वाह जी, हरयाली का साम्राज्य है हर तरफ- और उस पर यह जुगलबंदी-कोउए और कोयल की-क्या कहने!!
mehek said…
wah bahut hi badhiya jugal bandi kauve ji aur koyal rani ke bich.abhi talak hamare shahar mein dono rehte hai amen.

hum kuch vyast tha mamta ji,aapki tippani ke liye shukran
मजा आ गया आप का लेख पढ कर ओर विडियो देख ओर सुन कर,
धन्यवाद
Hemant Pandey said…
dilli men to kabutar hi kabutar hain............. par aap koyal ki jugalbandi aise hi karti rahen...

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