घर का दरवाज़ा ही नहीं खुला ( दूसरा दिन )


अब चूँकि आजकल हर कोई घर में ही रह रहा है तो सुबह से शाम और शाम से रात हो जाती है पर दरवाज़ा खोलने या बंद करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती है ।

अब ना तो सुबह अखबार उठाने के लिये दरवाज़ा खोलने की ज़रूरत है और ना ही किसी और के लिये क्योंकि आजकल ना तो किसी को आना है और ना ही किसी को बाहर जाना है।


कवैरैनटाइन के चलते सुबह का टहलना भी बंद हो गया है तो भला दरवाज़ा क्यों कर खुलेगा ।

ना तो किसी काम वालों को आना और ना टहलने जाना और ना ही पति या बेटे को ऑफ़िस जाना । ना तो बाज़ार जाना और ना ही अपनी ही सोसाइटी में किसी से मिलने जाना है और ना ही किसी को मिलने आना है जिसके लिये दरवाज़ा खोला जाये ।


आज के इस हालात पर ये गाना काफ़ी फ़िट बैठ रहा है हांलाकि ये रोमांटिक गाना है पर फिर भी सही है । 😁


बाहर से कोई अन्दर ना आ सके
अन्दर से कोई बाहर ना जा सके
सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो
सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो


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