महँगाई के बदलते तेवर
पहले जब हम लोग छोटे थे और जब कभी पापा मम्मी या बाबूजी को हम लोग ये कहते सुनते थे की अरे आजकल महँगाई बहुत बढ गयी है।हम लोगों के ज़माने मे तो बहुत सस्ता था ।तो ये सुनकर कुछ समझ नही आता था की भला इतना भी क्या महंगा और सस्ता हो गया । तो कई बार हम लोग उनसे पूछते थे कि आख़िर आप लोगों के समय मे हर चीज इतनी सस्ती कैसे थी तो बाबूजी कहते की जैसे उस ज़माने मे देसी घी बहुत सस्ता होता था शायद एक- दो रूपये किलो तो हम लोगों को विश्वास नही होता था कि घी और वो भी देसी घी भला इतना सस्ता कैसे हो सकता है।पर अब जब हम सोचते है तो लगता है कि वाकई हमारे देखते-देखते महँगाई के तेवर कितने बदले-बदले से है आज।पहले जिन बातों पर विश्वास नही होता था अब उन पर यकीन आने लगा है कि हाँ फलां साल (अस्सी और नब्बे के दशक )मे सब चीजे कितनी सस्ती होती थी। और अब कैसे हर चीज के दाम आसमान छूने लगे है।।
बाबूजी तो अक्सर कहते थे कि तुम लोग तो नकली देसी घी खा कर बडे हो रहे हो हम लोगों ने तो खालिस देसी घी ही खाया है।वैसे पहले तो घरों मे सब्जी या मीट देसी घी मे ही बनाया जाता था । आज की तरह refind oil मे नही। पर कमाल की बात थी की उस समय देसी घी खाकर भी लोगों को कोई नुकसान नही होता था।
ऐसे ही एक बार हमारी अम्माजी (सास जी )बता रही थी कि जब हमारे पापाजी ( ससुरजी) ने नौकरी शुरू की थी तो उस समय उनकी तनख्वाह दो सौ रूपये थी जिसमे से कुछ पैसा वो अपने छोटे-भाई-बहनों को पढने के खर्चे के लिए भेजते थे और कुछ पैसा घर यानी दादी को भेजते थे और तब भी सब कुछ बड़ी ही आसानी से मतलब घर चलता था और जिसमे वो बचत भी करती थी। पर आज तो सौ रूपये की कीमत दस रूपये जितनी हो गयी है।
जब तक पढ़ते थे तब तक तो आटे-दाल का भाव पता नही था पर जब शादी के बाद अपनी घर-गृहस्थी शुरू की तो हर चीज का भाव पता चला की आटा कितने रूपये किलो है तो दाल कितने रूपये किलो है। अब जब भाव की बात चली है तो लगे हाथ हम ये भी बता देते है की अस्सी के दशक मे दाल कुछ पांच या सात रूपये किलो होती थी पर आज कुछ छियालीस रूपये किलो हो गयी है।बस-बस घबराइये मत हम सभी चीजों के भाव नही गिनाने जा रहे है। ये तो बस एक मिसाल दी है। जिस तरह हर चीज के दाम मे इजाफा हुआ है तो उसी तरह लोगों की तनख्वाह मे भी इजाफा हुआ है।
पिक्चर देखना तो हमारा पुराना शौक़ है। अपने विद्यार्थी जीवन मे फ़िल्में देखने ख़ूब जाते थे और अब भी जाते है। पर तब कभी सोचा भी नही था कि पिक्चर का टिकट इतना महंगा भी हो सकता है।पहले जहाँ सौ रूपये मे पूरा परिवार पिक्चर देखने के साथ-साथ इंटरवल मे खा-पी भी लेताथा वो तो अब कल यानी भूतकाल की बात हो गयी है क्यूंकि हम सभी जानते है की पी.वी.आर मे एक टिकट ही कम से कम डेढ़ सौ रूपये का आता है। और फिर वहां का पॉप कॉर्न और पेप्सी उसके बिना तो पिक्चर देखने का मजा ही नही आता है। अब भला वैसा पेप्सी और पॉप कॉर्न किसी आम पिक्चर हॉल मे कहॉ मिलेगा।
महँगाई की बात कर रहे है तो भला स्कूल कॉलेज को कैसे छोड़ दे। जब हम पढ़ते थे तब तो एम्.ए की फ़ीस भी कुछ बीस-तीस रूपये थी जो की आज हम कह सकते है की हमारे ज़माने मे फ़ीस बहुत कम होती थी। फिर हमारे बच्चों ने जब स्कूल जाना शुरू किया तो उस समय के हिसाब से तो फ़ीस बहुत थी पर अगर आज हम स्कूल की फ़ीस देखते है तो लगता है की हमारे बच्चे तो बहुत सस्ते मे पढ़ कर निकल गए क्यूंकि अब तो सुना है की नर्सरी के बच्चे की फ़ीस भी दस से पन्द्रह हजार सालाना हो गयी है।
पैट्रोल के आज के दाम देख कर लगता है कि क्या तब सब लोग पानी से गाड़ी चलाते थे जो इतना सस्ता होता था। हालांकि ऐसा नही है की पैट्रोल की कीमत जो हर राज्य मे अलग -अलग है उससे गाड़ी चलाने वालों को कोई फर्क पड़ा हो। भाई जिसे गाड़ी चलानी है उसके लिए पैट्रोल चाहे दस रूपये लीटर हो चाहे पचास रूपये लीटर हो वो गाड़ी चलाना छोड़ थोड़े ही देगा।
पर कुछ चीजें जिन्हे पहले खरीदना हर आम आदमी के हाथ मे नही होता था जैसे टी.वी.,कंप्यूटर ,मोबाइल ,पर अब तो टी.वी. और मोबाइल इतने अधिक सस्ते हो गएँ है की आज मोबाइल के बिना तो कोई दिखाई ही नही देता है। जो कंप्यूटर नब्बे के दशक में खरीदना ही हर किसी के बस की बात नही थी वो अब लोगों की पहुंच मे आ गया है। और टी. वी .और मोबाइल के दामों में कितनी गिरावट आयी है ये तो हम सभी जानते है। पहले मोबाइल को लोग शौकिया तौर पर रखते थे पर अब यही मोबाइल सबकी जरुरत बन गया है वो चाहे कोई नेता हो या अभिनेता हो या सब्जी बेचने वाला हो याछात्र -छात्राएं ही क्यों ना हो ।
पिछले कुछ सालों मे हवाई यात्रा भी बहुत सस्ती हो गयी है। पहले तो हवाई यात्रा करना किसी सपने जैसा होता था पर अब ऐसा नही है। पहले ना तो इतनी कम्पनियाँ थी और नही टिकट इतने सस्ते होते थे। आजकल तो competition का जमाना है । पहले तो सिर्फ apex fare होता था जिसमे दो-तीन महीने पहले टिकट बुक करने पर काफीसस्ता मिल जाता था। पर जब से एयर डेकन आया है तब से हवाई जहाज के टिकट के दामों मे बहुत ही अधिक गिरावट आयी है। ये ठीक है की बाक़ी दूसरी एयर लाईन्स की तरह एयर डेकन मे खाने-पीने को कुछ नही मिलता है पर उसमे आप काफ़ी-या सैंडविच खरीद कर खा सकते है।और चाहे तो ट्रेन के सफ़र की तरह घर से खाना लेकर भी जा सकते है। और शायद एअर डेकन की वजह से ही एयर फेयर इतना सस्ता हो गया है। अब तो हर एयर लाईन्स कोई ना कोई ऑफर निकालते ही रहते है। जनता को भी आराम क्यूंकि जहाँ जाने मे घंटों लगते थे वहां हवाई जहाज से दो-तीन घंटे मे पहुंच जाते है।
और अब हमे ये समझ आ गया है कि पापा लोग क्यों कहते थे की उनके ज़माने मे सस्ता था। अब तो हम भी अगर कभी महँगाई की बात होती है तो कहते है कि हाँ भाई हमारे ज़माने मे (अस्सी-नब्बे के दशक) तो हर चीज बहुत सस्ते मे मिलती थी पर अब तो ..... ।
बाबूजी तो अक्सर कहते थे कि तुम लोग तो नकली देसी घी खा कर बडे हो रहे हो हम लोगों ने तो खालिस देसी घी ही खाया है।वैसे पहले तो घरों मे सब्जी या मीट देसी घी मे ही बनाया जाता था । आज की तरह refind oil मे नही। पर कमाल की बात थी की उस समय देसी घी खाकर भी लोगों को कोई नुकसान नही होता था।
ऐसे ही एक बार हमारी अम्माजी (सास जी )बता रही थी कि जब हमारे पापाजी ( ससुरजी) ने नौकरी शुरू की थी तो उस समय उनकी तनख्वाह दो सौ रूपये थी जिसमे से कुछ पैसा वो अपने छोटे-भाई-बहनों को पढने के खर्चे के लिए भेजते थे और कुछ पैसा घर यानी दादी को भेजते थे और तब भी सब कुछ बड़ी ही आसानी से मतलब घर चलता था और जिसमे वो बचत भी करती थी। पर आज तो सौ रूपये की कीमत दस रूपये जितनी हो गयी है।
जब तक पढ़ते थे तब तक तो आटे-दाल का भाव पता नही था पर जब शादी के बाद अपनी घर-गृहस्थी शुरू की तो हर चीज का भाव पता चला की आटा कितने रूपये किलो है तो दाल कितने रूपये किलो है। अब जब भाव की बात चली है तो लगे हाथ हम ये भी बता देते है की अस्सी के दशक मे दाल कुछ पांच या सात रूपये किलो होती थी पर आज कुछ छियालीस रूपये किलो हो गयी है।बस-बस घबराइये मत हम सभी चीजों के भाव नही गिनाने जा रहे है। ये तो बस एक मिसाल दी है। जिस तरह हर चीज के दाम मे इजाफा हुआ है तो उसी तरह लोगों की तनख्वाह मे भी इजाफा हुआ है।
पिक्चर देखना तो हमारा पुराना शौक़ है। अपने विद्यार्थी जीवन मे फ़िल्में देखने ख़ूब जाते थे और अब भी जाते है। पर तब कभी सोचा भी नही था कि पिक्चर का टिकट इतना महंगा भी हो सकता है।पहले जहाँ सौ रूपये मे पूरा परिवार पिक्चर देखने के साथ-साथ इंटरवल मे खा-पी भी लेताथा वो तो अब कल यानी भूतकाल की बात हो गयी है क्यूंकि हम सभी जानते है की पी.वी.आर मे एक टिकट ही कम से कम डेढ़ सौ रूपये का आता है। और फिर वहां का पॉप कॉर्न और पेप्सी उसके बिना तो पिक्चर देखने का मजा ही नही आता है। अब भला वैसा पेप्सी और पॉप कॉर्न किसी आम पिक्चर हॉल मे कहॉ मिलेगा।
महँगाई की बात कर रहे है तो भला स्कूल कॉलेज को कैसे छोड़ दे। जब हम पढ़ते थे तब तो एम्.ए की फ़ीस भी कुछ बीस-तीस रूपये थी जो की आज हम कह सकते है की हमारे ज़माने मे फ़ीस बहुत कम होती थी। फिर हमारे बच्चों ने जब स्कूल जाना शुरू किया तो उस समय के हिसाब से तो फ़ीस बहुत थी पर अगर आज हम स्कूल की फ़ीस देखते है तो लगता है की हमारे बच्चे तो बहुत सस्ते मे पढ़ कर निकल गए क्यूंकि अब तो सुना है की नर्सरी के बच्चे की फ़ीस भी दस से पन्द्रह हजार सालाना हो गयी है।
पैट्रोल के आज के दाम देख कर लगता है कि क्या तब सब लोग पानी से गाड़ी चलाते थे जो इतना सस्ता होता था। हालांकि ऐसा नही है की पैट्रोल की कीमत जो हर राज्य मे अलग -अलग है उससे गाड़ी चलाने वालों को कोई फर्क पड़ा हो। भाई जिसे गाड़ी चलानी है उसके लिए पैट्रोल चाहे दस रूपये लीटर हो चाहे पचास रूपये लीटर हो वो गाड़ी चलाना छोड़ थोड़े ही देगा।
पर कुछ चीजें जिन्हे पहले खरीदना हर आम आदमी के हाथ मे नही होता था जैसे टी.वी.,कंप्यूटर ,मोबाइल ,पर अब तो टी.वी. और मोबाइल इतने अधिक सस्ते हो गएँ है की आज मोबाइल के बिना तो कोई दिखाई ही नही देता है। जो कंप्यूटर नब्बे के दशक में खरीदना ही हर किसी के बस की बात नही थी वो अब लोगों की पहुंच मे आ गया है। और टी. वी .और मोबाइल के दामों में कितनी गिरावट आयी है ये तो हम सभी जानते है। पहले मोबाइल को लोग शौकिया तौर पर रखते थे पर अब यही मोबाइल सबकी जरुरत बन गया है वो चाहे कोई नेता हो या अभिनेता हो या सब्जी बेचने वाला हो याछात्र -छात्राएं ही क्यों ना हो ।
पिछले कुछ सालों मे हवाई यात्रा भी बहुत सस्ती हो गयी है। पहले तो हवाई यात्रा करना किसी सपने जैसा होता था पर अब ऐसा नही है। पहले ना तो इतनी कम्पनियाँ थी और नही टिकट इतने सस्ते होते थे। आजकल तो competition का जमाना है । पहले तो सिर्फ apex fare होता था जिसमे दो-तीन महीने पहले टिकट बुक करने पर काफीसस्ता मिल जाता था। पर जब से एयर डेकन आया है तब से हवाई जहाज के टिकट के दामों मे बहुत ही अधिक गिरावट आयी है। ये ठीक है की बाक़ी दूसरी एयर लाईन्स की तरह एयर डेकन मे खाने-पीने को कुछ नही मिलता है पर उसमे आप काफ़ी-या सैंडविच खरीद कर खा सकते है।और चाहे तो ट्रेन के सफ़र की तरह घर से खाना लेकर भी जा सकते है। और शायद एअर डेकन की वजह से ही एयर फेयर इतना सस्ता हो गया है। अब तो हर एयर लाईन्स कोई ना कोई ऑफर निकालते ही रहते है। जनता को भी आराम क्यूंकि जहाँ जाने मे घंटों लगते थे वहां हवाई जहाज से दो-तीन घंटे मे पहुंच जाते है।
और अब हमे ये समझ आ गया है कि पापा लोग क्यों कहते थे की उनके ज़माने मे सस्ता था। अब तो हम भी अगर कभी महँगाई की बात होती है तो कहते है कि हाँ भाई हमारे ज़माने मे (अस्सी-नब्बे के दशक) तो हर चीज बहुत सस्ते मे मिलती थी पर अब तो ..... ।
Comments
अगले 15-20 साल बाद पोस्ट फिर पढ़ियेगा - लगेगा, अरे इसे हमने ही लिखा है? मंहगाई है ही बढ़ने के लिये! :)
दीपक भारत दीप
आज से 12-13 साल पहले यहाँ 99 सेंट में 1 गैलन गैस (पेट्रोल) आराम से मिल जाती थी, पर अब 2.80 डालर प्रति गैलन सुन कर दिल को राहत मिलती है.
वैसे छुटपन में मैंने भी 50 पैसे का कोक और 3.75 रुपये में बालकनी में बैठ कर फिल्में देखी हैं.
सुनीता(शानू)