क्या रेडियो बदला है.
रेडियो से तो हम सभी का बड़ा ही पुराना नाता है । ये रेडियो ही है जो उन गांवों और पहाड़ों मे पहुँचता है जहाँ हमारे टी.वी.के कार्यक्रम नही पहुंच पाते है। और ये रेडियो ही है जो हमारे फौजी भाईयों के मनोरंजन का एकमात्र साधन होता है। कई बार तो हम ये सोचते है कि अगर पिछले दशकों मे रेडियो नही होता तो भला लोग कैसे दुनिया भर मे होने वाली घटनाओं के बारे मे जान पाते। रेडियो से तो हम सभी की ढेरों यादें जुडी होंगी।७० के दशक की लडाई के दौरान रेडियो ही तो हर तरह की सूचना देता था कि कितने बजे ब्लैक-आउट होगा और उस ब्लैक-आउट मे सभी को इसी रेडियो का सहारा रहता था।एक रेडियो ही होता था जिससे हम ना केवल समाचार और गाने सुनते थे बल्कि क्रिकेट जैसे खेल को लोकप्रिय बनाने मे भी रेडियो का बहुत बड़ा योगदान रहा है ऐसा कहा जा सकता है।
क्या हम कभी भूल सकेंगे सुशील दोषी और जसदेव सिंह की कमेंट्री। सुशील जिस तरह बाल के साथ भागते हुए कमेंट्री करते थे कि सुनने वाला भी ये महसूस करता था मानो वो भी क्रिकेट के मैदान मे मौजूद हो। और कोई कैच छोड़ने पर भी ऐसे बोलते थे मानो उन्ही के हाथ से कैच छूट गया हो। क्रिकेट के दिनों मे हर व्यक्ति के कानो के पास छोटा ट्रांजिस्टर सटा हुआ देखा जा सकता था।वैसे ये कान से ट्रांजिस्टर लगा कर कमेंट्री सुनने का मंजर तो आज भी देखा जा सकता है । पर अब हमारा रेडियो पर कमेंट्री सुनना तो छूट ही गया है।
अब तो पता नही कि रेडियो सिलोन पर बिनाका गीत माला आती है या नही पर कुछ सालों पहले सुनी थी पर वो मजा नही आया जो ६० और ७० के दशक मे आता था। अमीन सायानी के बिनाका गीत माला पेश करने का स्टाइल की बड़ा निराला था। बुधवार की रात ८ बजे बिनाका गीत माला छूट जाये तो बड़ा अखरता था । उस समय रेडियो सिलोन का भी बड़ा क्रेज था। हमारी सेकंड नम्बर वाली दीदी तो रेडियो चलाये बिना पढ़ाई ही नही करती थी क्यूंकि वो कहती थी कि बिना रेडियो के उनका पढाई का मूड ही नही बन पाता है।कई बार हम लोग उन्हें छेड़ते भी थे कि कहीँ इम्तहान मे तुम गाना लिख कर ना आ जाना।
वैसे विविध भारती तो आज भी कुछ पहले जैसा है पर अब इसमे भी थोडा-बहुत बदलाव आ गया है। हालांकि कार्यक्रम तो पहले वाले नाम के ही है जैसे पिटारा ,एक ही फिल्म से,हवा महल,चित्रलोक वगैरा।वैसे अब हम बहुत ज्यादा तो नही पर फिर भी रेडियो सुन लेते है। पर अब विविध भारती भी कुछ बदल सा गया है ।विज्ञापन तो पहले भी आते थे पर पहले तो दो गानों के बीच मे ही विज्ञापन आते थे वही टु न्न्न्न की आवाज वाले विज्ञापन। पर अब कई बार उदघोषक कहते है की अब आप फलां गाना सुनेगे पर उससे पहले ये विज्ञापन सुनिये। अभी एक विज्ञापन ख़त्म हुआ ही कि एक और विज्ञापन सुनिये ये कह देते है वैसे ये दूसरा वाला विज्ञापन वाद्य संगीत मतलब सितार,गिटार,बांसुरी या अन्य कोई वाद्य पर किसी फिल्म का मुखडा बजाते है। ये अलग बात है कि ये संगीत भी सुनने मे अच्छा लगता है पर दो-दो विज्ञापन का मतलब नही समझ नही आता है।
यूं तो अब पिछले दस सालों से रेडियो मे भी बहुत अधिक बदलाव आ गया है। बिल्कुल टी.वी.वाला हाल है ।
जैसे इतने सारे एफ.एम्.चैनल शुरू हो गए है और अब भी रोज नए-नए एफ.एम्.शुरू हो रहे है। पर इनमे कुछ से कुछ एफ.एम् पर गाना तो कम बातें ही ज्यादा सुनाई देती है. पर दूरदर्शन की ही तरह विविध भारती ने भी अपने मे बहुत ज्यादा बदलाव नही लाए है जो की बहुत ही अच्छी बात है। सबके बीच मे रहकर भी अलग रहना और लोकप्रिय रहना ही विविध भारती की खासियत है।
क्या हम कभी भूल सकेंगे सुशील दोषी और जसदेव सिंह की कमेंट्री। सुशील जिस तरह बाल के साथ भागते हुए कमेंट्री करते थे कि सुनने वाला भी ये महसूस करता था मानो वो भी क्रिकेट के मैदान मे मौजूद हो। और कोई कैच छोड़ने पर भी ऐसे बोलते थे मानो उन्ही के हाथ से कैच छूट गया हो। क्रिकेट के दिनों मे हर व्यक्ति के कानो के पास छोटा ट्रांजिस्टर सटा हुआ देखा जा सकता था।वैसे ये कान से ट्रांजिस्टर लगा कर कमेंट्री सुनने का मंजर तो आज भी देखा जा सकता है । पर अब हमारा रेडियो पर कमेंट्री सुनना तो छूट ही गया है।
अब तो पता नही कि रेडियो सिलोन पर बिनाका गीत माला आती है या नही पर कुछ सालों पहले सुनी थी पर वो मजा नही आया जो ६० और ७० के दशक मे आता था। अमीन सायानी के बिनाका गीत माला पेश करने का स्टाइल की बड़ा निराला था। बुधवार की रात ८ बजे बिनाका गीत माला छूट जाये तो बड़ा अखरता था । उस समय रेडियो सिलोन का भी बड़ा क्रेज था। हमारी सेकंड नम्बर वाली दीदी तो रेडियो चलाये बिना पढ़ाई ही नही करती थी क्यूंकि वो कहती थी कि बिना रेडियो के उनका पढाई का मूड ही नही बन पाता है।कई बार हम लोग उन्हें छेड़ते भी थे कि कहीँ इम्तहान मे तुम गाना लिख कर ना आ जाना।
वैसे विविध भारती तो आज भी कुछ पहले जैसा है पर अब इसमे भी थोडा-बहुत बदलाव आ गया है। हालांकि कार्यक्रम तो पहले वाले नाम के ही है जैसे पिटारा ,एक ही फिल्म से,हवा महल,चित्रलोक वगैरा।वैसे अब हम बहुत ज्यादा तो नही पर फिर भी रेडियो सुन लेते है। पर अब विविध भारती भी कुछ बदल सा गया है ।विज्ञापन तो पहले भी आते थे पर पहले तो दो गानों के बीच मे ही विज्ञापन आते थे वही टु न्न्न्न की आवाज वाले विज्ञापन। पर अब कई बार उदघोषक कहते है की अब आप फलां गाना सुनेगे पर उससे पहले ये विज्ञापन सुनिये। अभी एक विज्ञापन ख़त्म हुआ ही कि एक और विज्ञापन सुनिये ये कह देते है वैसे ये दूसरा वाला विज्ञापन वाद्य संगीत मतलब सितार,गिटार,बांसुरी या अन्य कोई वाद्य पर किसी फिल्म का मुखडा बजाते है। ये अलग बात है कि ये संगीत भी सुनने मे अच्छा लगता है पर दो-दो विज्ञापन का मतलब नही समझ नही आता है।
यूं तो अब पिछले दस सालों से रेडियो मे भी बहुत अधिक बदलाव आ गया है। बिल्कुल टी.वी.वाला हाल है ।
जैसे इतने सारे एफ.एम्.चैनल शुरू हो गए है और अब भी रोज नए-नए एफ.एम्.शुरू हो रहे है। पर इनमे कुछ से कुछ एफ.एम् पर गाना तो कम बातें ही ज्यादा सुनाई देती है. पर दूरदर्शन की ही तरह विविध भारती ने भी अपने मे बहुत ज्यादा बदलाव नही लाए है जो की बहुत ही अच्छी बात है। सबके बीच मे रहकर भी अलग रहना और लोकप्रिय रहना ही विविध भारती की खासियत है।
Comments
जिसे हम जल्दी ही लॉन्च कर रहे हैं ।
विविध भारती और रेडियो के बारे में मुझे भी बहुत कुछ कहना है
लेकिन हम ये बातें रेडियोनामा के मंच से ही करेंगे
और जी भर के करेंगे ।
रेडियोनामा की कैच लाईन होगी
रेडियो की बातों और यादों का सामूहिक ब्लॉग ।
घुघूती बासूती