पानी रे पानी
आखिर कार दिल्ली वालों को उमस भरी गरमी से छुटकारा मिल ही गया। कल दोपहर से दिल्ली मे जो काले बादल छाए तो इस बार बरस भी गए वरना इससे पहले तो दिल्ली का हाल बिल्कुल लगान फिल्म के जैसा ही हो गया था बस बादल आते थे और बिना बरसे ही चले जाते थे। और लोग बस बादल को देखते ही रह जाते। हाँ इक्का दुक्का बार बारिश हुई भी है।
अब दिल्ली क्या पूरे देश की ही ऐसी हालत है कि बारिश हो तो मुसीबत और ना हो तो भी मुसीबत। जब तक बारिश नही होती है हर एक की जुबान पर बारिश बारिश रहता है और लोगों को ये कहते सुना जा सकता है उफ़ कितनी गरमी है पता नही कब बरसात शुरू होगी वगैरा-वगैरा. और जरा बारिश हुई नही कि हरेक की जुबान पर सरकार और प्रशासन का नाम शुरू हो जाता है। कोई भी प्रदेश हो चाहे महाराष्ट्र हो या चाहे उत्तर प्रदेश या बिहार हो या राजस्थान या गुजरात ही क्यों ना हो हर जगह बारिश होते ही पानी-पानी ही सुनाई पड़ने लगता है।
बारिश के साथ बाढ़ का बिल्कुल चोली-दामन का साथ है। और ये साथ आज से नही हमेशा से रहा है। हमे याद है जब हम लोग इलाहाबाद मे रहते थे तो हर दूसरे साल बारिश के बाद बाढ़ आ जाती थी और पूरा दारागंज,बघाडा, मुम्फोर्ड गंज और अल्लाह्पुर तो हमेशा ही डूब जाते थे। अल्लाह्पुर का तो इतना बुरा हाल होता था कि ना केवल सड़कों पर ही पानी भरता था बल्कि लोगों के घरों मे भी पानी भर जाता था और हमेशा इन सभी जगहों पर मदद पहुंचाने के लिए नाव चलानी पड़ती थी। यातायात जैसे रेलगाडी और सड़क यातायात पर असर पड़ता था। हवाई जहाज पर भी असर पड़ता रहा होगा पर तब चूंकि ज्यादातर लोग रेल या सड़क से चलते थे तो इन बातों का ज्यादा पता चलता था। इलाहाबाद मे तो गंगा और यमुना दोनो मे ही बाढ़ आ जाती थी और तब तो रडियो का जमाना था जिस पर न्यूज़ आती रहती थी दोनो नदियों का जलस्तर बढ रहा है।और पानी ख़तरे के निशान से ऊपर बह रहा है। कई बार माइक पर भी बोला जाता था की पानी बढ रहा और बाढ़ की हालत मे लोग घरों को छोड़ कर किसी उंचे स्थान पर चले जाये। बाढ़ आयी नही कि दारागंज के पुल पर लोग शाम को घूमने के लिए निकल पड़ते थे मानो वो भी कोई पिकनिक स्पॉट हो । तब भी प्रशासन की तरफ से और रेड क्रॉस की तरफ से कैंप लगाए जाते थे। लोगों को खाना ,कपड़ा दवाइयाँ वगैरा पहुंचाया जाता था। पर तब भी लोग प्रशासन को कहते थे। पर आज की तरह कोसते नही थे।
और जहाँ तक दिल्ली की बात है तो दिल्ली का बारिश मे बेहाल होना भी कोई नयी बात नही है। ये तो सिर्फ कहने की बात है की अब बारिश ज्यादा होने से दिल्ली मे पानी भर जाता है। दिल्ली का मिंटो ब्रिज ,सीरी फोर्ट रोड़, और जितने फ्लाई ओवर है ये सभी तथा और भी कई जगहें जहाँ जरा इंद्र देवता ने जरा जोर की बारिश की नही की बस दिल्ली डूबी। और इस भरी हुई दिल्ली से बचने का कोई उपाय नही है। ना तो पहले था और ना ही आज है।
खुदा-ना खस्ता जो अगर कहीँ दिल्ली मे अंडमान या किसी भी कोस्ताल एरिया के जहाँ लगातार हफ़्तों सिर्फ और सिर्फ धुँआधार बारिश ही होती रहती है।अगर वहां के जैसी बारिश एक महीने भी दिल्ली मे हो जाये तो दिल्ली का कोई भी कोना बिना पानी के दिखना मुश्किल हो जाएगा। हम जानते है आप सोच रहे है कि अंडमान या किसी अन्य कोस्ताल एरिया की दिल्ली से तुलना करना ठीक नही है पर हम सिर्फ इतना ही कहना चाहते है कि बारिश से जन-जीवन पहले भी प्रभावित होता था और अब भी सारा जन-जीवन प्रभावित होता है. पर अब जितनी हाय-तौबा होने लगी है उससे स्थिति मे ना तो कभी कुछ ज्यादा फर्क पड़ा है और नाही ही कभी कुछ फर्क पड़ेगा।
अब दिल्ली क्या पूरे देश की ही ऐसी हालत है कि बारिश हो तो मुसीबत और ना हो तो भी मुसीबत। जब तक बारिश नही होती है हर एक की जुबान पर बारिश बारिश रहता है और लोगों को ये कहते सुना जा सकता है उफ़ कितनी गरमी है पता नही कब बरसात शुरू होगी वगैरा-वगैरा. और जरा बारिश हुई नही कि हरेक की जुबान पर सरकार और प्रशासन का नाम शुरू हो जाता है। कोई भी प्रदेश हो चाहे महाराष्ट्र हो या चाहे उत्तर प्रदेश या बिहार हो या राजस्थान या गुजरात ही क्यों ना हो हर जगह बारिश होते ही पानी-पानी ही सुनाई पड़ने लगता है।
बारिश के साथ बाढ़ का बिल्कुल चोली-दामन का साथ है। और ये साथ आज से नही हमेशा से रहा है। हमे याद है जब हम लोग इलाहाबाद मे रहते थे तो हर दूसरे साल बारिश के बाद बाढ़ आ जाती थी और पूरा दारागंज,बघाडा, मुम्फोर्ड गंज और अल्लाह्पुर तो हमेशा ही डूब जाते थे। अल्लाह्पुर का तो इतना बुरा हाल होता था कि ना केवल सड़कों पर ही पानी भरता था बल्कि लोगों के घरों मे भी पानी भर जाता था और हमेशा इन सभी जगहों पर मदद पहुंचाने के लिए नाव चलानी पड़ती थी। यातायात जैसे रेलगाडी और सड़क यातायात पर असर पड़ता था। हवाई जहाज पर भी असर पड़ता रहा होगा पर तब चूंकि ज्यादातर लोग रेल या सड़क से चलते थे तो इन बातों का ज्यादा पता चलता था। इलाहाबाद मे तो गंगा और यमुना दोनो मे ही बाढ़ आ जाती थी और तब तो रडियो का जमाना था जिस पर न्यूज़ आती रहती थी दोनो नदियों का जलस्तर बढ रहा है।और पानी ख़तरे के निशान से ऊपर बह रहा है। कई बार माइक पर भी बोला जाता था की पानी बढ रहा और बाढ़ की हालत मे लोग घरों को छोड़ कर किसी उंचे स्थान पर चले जाये। बाढ़ आयी नही कि दारागंज के पुल पर लोग शाम को घूमने के लिए निकल पड़ते थे मानो वो भी कोई पिकनिक स्पॉट हो । तब भी प्रशासन की तरफ से और रेड क्रॉस की तरफ से कैंप लगाए जाते थे। लोगों को खाना ,कपड़ा दवाइयाँ वगैरा पहुंचाया जाता था। पर तब भी लोग प्रशासन को कहते थे। पर आज की तरह कोसते नही थे।
और जहाँ तक दिल्ली की बात है तो दिल्ली का बारिश मे बेहाल होना भी कोई नयी बात नही है। ये तो सिर्फ कहने की बात है की अब बारिश ज्यादा होने से दिल्ली मे पानी भर जाता है। दिल्ली का मिंटो ब्रिज ,सीरी फोर्ट रोड़, और जितने फ्लाई ओवर है ये सभी तथा और भी कई जगहें जहाँ जरा इंद्र देवता ने जरा जोर की बारिश की नही की बस दिल्ली डूबी। और इस भरी हुई दिल्ली से बचने का कोई उपाय नही है। ना तो पहले था और ना ही आज है।
खुदा-ना खस्ता जो अगर कहीँ दिल्ली मे अंडमान या किसी भी कोस्ताल एरिया के जहाँ लगातार हफ़्तों सिर्फ और सिर्फ धुँआधार बारिश ही होती रहती है।अगर वहां के जैसी बारिश एक महीने भी दिल्ली मे हो जाये तो दिल्ली का कोई भी कोना बिना पानी के दिखना मुश्किल हो जाएगा। हम जानते है आप सोच रहे है कि अंडमान या किसी अन्य कोस्ताल एरिया की दिल्ली से तुलना करना ठीक नही है पर हम सिर्फ इतना ही कहना चाहते है कि बारिश से जन-जीवन पहले भी प्रभावित होता था और अब भी सारा जन-जीवन प्रभावित होता है. पर अब जितनी हाय-तौबा होने लगी है उससे स्थिति मे ना तो कभी कुछ ज्यादा फर्क पड़ा है और नाही ही कभी कुछ फर्क पड़ेगा।
Comments
बारिश में पानी
हरेक मौसम की
अपनी कहानी.
--वही हाल हर बारिश में आजकल मुंबई का हो जा रहा है. कुछ इन्फ्रा स्ट्रक्चर में ठोस कदम की आवश्यकत्ता है.
बधाई !
“आरंभ”