यादों के झरोखों से ...जब हम छोटे थे
जी बिल्कुल सही समझा है आपने आज हम कुछ ऐसी ही बात करने जा रहे है। आज भी हम अपने घर मे छोटे समझे जाते है क्यूंकि पांच भाई-बहनो मे हम सबसे छोटे जो है और वो कहते है ना कि छोटे कभी बडे होते ही नही है। वैसे छोटे होने के फ़ायदे होते है तो नुकसान भी होते है पर शायद नही यक़ीनन फ़ायदे ज्यादा होते है।
जब हम छोटे थे तो घर मे हर कोई हमे अलग नाम से पुकारता था और घर मे जितने ज्यादा nickname हमारे थे वो और किसी भाई-बहन के नही थे। चलिये कुछ नामों का हम यहां जिक्र कर ही देते है। अब चुंकि हम हमेशा से गोल-मटोल है तो हमारे बाबा जिन्हे हम प्यार से बाबूजी कहते थे वो हमे टुनटुन कह कर बुलाते थे तो हमारे पापा-ममी हमे मंतु कहते थे तो हमारे भईया बकतुनिया और जिज्जी लोग मुन्नी ,गुड़िया और सबसे मजेदार नाम तो परसादी लाल वो इसलिये क्यूंकि जब भी हमारी मम्मी पूजा करती थी तो हम सबको प्रसाद बाँटा करते थे
और ऐसा नही कि अब सबने हमे इन नामों से पुकारना बंद कर दिया है अभी भी हमे इन नामों से पुकारा जाता है।
अब चुंकि हम छोटे थे तो जाहिर है कि थोड़े जिद्दी भी थे और अगर कोई कहीं जा रहा हो और हमे साथ ना ले जाये तो बस रोना शुरू हो जाता था। किसी ने जरा सा कुछ कहा और हमारे आंसू शुरू ,वैसे ये आदत तो हमारी आज भी बरकरार है। घर मे सब कहते थे कि ममता कि आंख मे नल लगा है जब देखो तब बहने लगता है। आज भी अगर हमारी बच्चों से किसी बात मे बहस होती है तो भी हमारी आंखों मे लगा नल बहने लगता है। और ये आँसू ही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है।
ऐसे ही एक बार कि बात है उस समय हम पांच या छे साल के थे हमरे भईया जो हमसे दस साल बडे है वो कहीं कार (उस समय पापा के पास एम्बसदर थी ) से जा रहे थे और हमे नही ले जा रहे थे जो हमे बिल्कुल भी अच्छा नही लग रहा था तो बस हमने रोना शुरू कर दिया तो मम्मी ने भईया से कहा कि इसे भी लेते जाओ । अब तो भईया और भी ग़ुस्सा हो गए क्यूंकि उनका अपने दोस्तों के साथ कहीं जाने का कार्यक्रम था पर जब मम्मी ने कहा तो वो टाल नही पाए और हमे कार मे बैठने को कहा और हम उछल कर कार मे बैठ गए पर जैसे ही कार चली हमने ना जाने क्या सोचकर कार का गेट खोल दिया हमारा गेट खोलना था कि भईया ने जरा जोर से पूछा कि गेट क्यों खोला अब इस डर से कि कहीं भईया हमे कार से ना उतार दे हमने जोर-जोर से रोते हुए कहा कोले (तब हम खोलें को कोले बोलते थे ) भी नही थे इतना सुनते ही भईया को हंसी आ गयी और उन्होने कहा कि चलती गाड़ी मे दरवाजा मत खोला करो और फिर हमे मम्फोर्ड गंज का एक चक्कर लगवा कर घर छोड़ गए । आज भी जब हम सब इक्कट्ठा होते है तो कहीं ना कहीं से कोले भी नही थे की बात हो ही जाती है।
जब हम छोटे होते है जिसे हम बचपन कहते है वो दूबारा कभी नही आता है क्यूंकि उस समय ना तो हमे कोई चिन्ता होती है ना कोई फिक्र बस सिर्फ और सिर्फ मस्ती । सुजाता पिक्चर के इस गाने से शायद आप सहमत भी होंगे।
बचपन के दिन भी क्या दिन थे
उड़ते फिरते तितली बन
जब हम छोटे थे तो घर मे हर कोई हमे अलग नाम से पुकारता था और घर मे जितने ज्यादा nickname हमारे थे वो और किसी भाई-बहन के नही थे। चलिये कुछ नामों का हम यहां जिक्र कर ही देते है। अब चुंकि हम हमेशा से गोल-मटोल है तो हमारे बाबा जिन्हे हम प्यार से बाबूजी कहते थे वो हमे टुनटुन कह कर बुलाते थे तो हमारे पापा-ममी हमे मंतु कहते थे तो हमारे भईया बकतुनिया और जिज्जी लोग मुन्नी ,गुड़िया और सबसे मजेदार नाम तो परसादी लाल वो इसलिये क्यूंकि जब भी हमारी मम्मी पूजा करती थी तो हम सबको प्रसाद बाँटा करते थे
और ऐसा नही कि अब सबने हमे इन नामों से पुकारना बंद कर दिया है अभी भी हमे इन नामों से पुकारा जाता है।
अब चुंकि हम छोटे थे तो जाहिर है कि थोड़े जिद्दी भी थे और अगर कोई कहीं जा रहा हो और हमे साथ ना ले जाये तो बस रोना शुरू हो जाता था। किसी ने जरा सा कुछ कहा और हमारे आंसू शुरू ,वैसे ये आदत तो हमारी आज भी बरकरार है। घर मे सब कहते थे कि ममता कि आंख मे नल लगा है जब देखो तब बहने लगता है। आज भी अगर हमारी बच्चों से किसी बात मे बहस होती है तो भी हमारी आंखों मे लगा नल बहने लगता है। और ये आँसू ही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है।
ऐसे ही एक बार कि बात है उस समय हम पांच या छे साल के थे हमरे भईया जो हमसे दस साल बडे है वो कहीं कार (उस समय पापा के पास एम्बसदर थी ) से जा रहे थे और हमे नही ले जा रहे थे जो हमे बिल्कुल भी अच्छा नही लग रहा था तो बस हमने रोना शुरू कर दिया तो मम्मी ने भईया से कहा कि इसे भी लेते जाओ । अब तो भईया और भी ग़ुस्सा हो गए क्यूंकि उनका अपने दोस्तों के साथ कहीं जाने का कार्यक्रम था पर जब मम्मी ने कहा तो वो टाल नही पाए और हमे कार मे बैठने को कहा और हम उछल कर कार मे बैठ गए पर जैसे ही कार चली हमने ना जाने क्या सोचकर कार का गेट खोल दिया हमारा गेट खोलना था कि भईया ने जरा जोर से पूछा कि गेट क्यों खोला अब इस डर से कि कहीं भईया हमे कार से ना उतार दे हमने जोर-जोर से रोते हुए कहा कोले (तब हम खोलें को कोले बोलते थे ) भी नही थे इतना सुनते ही भईया को हंसी आ गयी और उन्होने कहा कि चलती गाड़ी मे दरवाजा मत खोला करो और फिर हमे मम्फोर्ड गंज का एक चक्कर लगवा कर घर छोड़ गए । आज भी जब हम सब इक्कट्ठा होते है तो कहीं ना कहीं से कोले भी नही थे की बात हो ही जाती है।
जब हम छोटे होते है जिसे हम बचपन कहते है वो दूबारा कभी नही आता है क्यूंकि उस समय ना तो हमे कोई चिन्ता होती है ना कोई फिक्र बस सिर्फ और सिर्फ मस्ती । सुजाता पिक्चर के इस गाने से शायद आप सहमत भी होंगे।
बचपन के दिन भी क्या दिन थे
उड़ते फिरते तितली बन
Comments
पांच भाई बहनों मे सबसे छोटे हम भी हैं पर गनीमत है कि इतने नाम हमें नहीं मिले!!
मजेदार संस्मरण।