कंपनी बाग़ मे मोर्निंग वाक्
अब चूंकि हम इलाहाबाद मे है और पापा रोज सुबह कंपनी बाग़ मे मोर्निंग वाक् के लिए जाते है तो हम भी उनके साथ सुबह टहलने चले जाते है। आज के कंपनी बाग़ और तीस साल पहले के कंपनी बाग़ मे जमीन आसमान का फर्क आ गया है। पहले तो लोग कंपनी बाग़ के नाम पर ही डर से जाया करते थे क्यूंकि उस समय उसे सेफ नही माना जाता था । कुछ तो हिंदू होस्टल के कारण और कुछ वहां के जंगल की वजह से। पर अब समय इतना बदल गया है कि क्या सुबह क्या शाम हर समय आपको वहां टहलने वालों की भीड़ दिख जायेगी। अब तो इतनी लाइट लग गयी है कि रात मे भी चारों ओर उजाला सा रहता है। और बीच मे जो पार्क है वो बहुत अच्छा है । वाकिंग ट्रैक के साथ-साथ थोड़ी-थोड़ी दूर पर लोगों के बैठने के लिए बेंच भी बनी है।
इसी कंपनी बाग़ को एल्फ्रेड पार्क के नाम से भी जाना जाता था पर आज इसका नाम चंद्रशेखर आजाद उद्यान हो गया है। ये वही पार्क है जहाँ अंग्रेजों से लड़ते हुए चंद्रशेखर आजाद ने बड़ी ही बहादुरी से अंग्रेजों का मुक़ाबला किया था और जब उन्हें लगा की वो गिरफ्तार हो जायेंगे तो उन्होने अपनी ही रिवाल्वर से अपने आप को गोली मार ली थी।और जिस स्थल पर वो शहीद हुए थे वहां पर उनकी एक मूर्ति लगायी गयी थी जिसमे वो अपनी मूंछों पर ताव देते हुए दिखाए गए थे ,पर इस बार हमने देखा की उनकी मूर्ति बदल गयी है । पहले उनकी आधी मतलब क़मर तक ही सफ़ेद मूर्ति बनी थी पर जो नयी मूर्ति है उसमे चंद्रशेखर आजाद खड़े है और ये मूर्ति काफी भव्य है और हां इस मूर्ति मे भी वो अपनी मूंछों पर ताव देते हुए दिखाए गए। और इस स्थल का नाम शहीदी स्थल रखा गया है।
पार्क मे सुबह जाकर टहलने का चलन तो काफी दिनों से है पर इस बार तो ऐसा लगा मानो पूरा इलाहाबाद शहर ही सुबह उठ जाता है ( उसमे हम भी शामिल है ) और सभी लोग कंपनी बाग़ मे आ जाते है। हर उम्र के लोग दिखते है चाहे वो बुजुर्ग हो या जवान ,औरत हो या आदमी ,लड़के लडकियां बच्चे और कुछ लोग तो अपने पालतू doggi के साथ भी टहलने आते है। कुछ लोग ग्रुप बनाकर चलते है तो कुछ लोग अकेले ही चलते है तो कोई अपने पूरे परिवार के साथ टहलता है। कोई दौड़ता है तो कोई बहुत तेज-तेज चलता है तो कुछ लोग जोर-जोर से ठहाके लगते हुए चलते है। हर कोई अपने स्वास्थ्य को ठीक रखना चाहता है। कुछ बच्चे साइकिल चलाते है तो कुछ क्रिकेट खेलते है तो कुछ झूला झूलते है। ऐसा नही है कि सिर्फ बडे और बच्चे ही वहां आते है लड़के -लडकियां भी टहलने आते है। बच्चों को सुबह उठ कर टहलते और खेलते हुए देख कर बहुत अच्छा लगा क्यूंकि कम से कम यहाँ अभी सुबह उठने का कुछ जोश लोगों मे दिखता है वरना आजकल तो लोगों ने सुबह उठना ही छोड़ दिया है खासकर बच्चों ने।
वैसे पूरे कंपनी बाग का एक चक्कर हम भी लगा लेते है और घर आकर दही जलेबी का आनंद उठाते है। जो मजा सुबह -सुबह गरमा- गरम जलेबी खाने मे आता है उसका कोई मुकाबला नही है।
इसी कंपनी बाग़ को एल्फ्रेड पार्क के नाम से भी जाना जाता था पर आज इसका नाम चंद्रशेखर आजाद उद्यान हो गया है। ये वही पार्क है जहाँ अंग्रेजों से लड़ते हुए चंद्रशेखर आजाद ने बड़ी ही बहादुरी से अंग्रेजों का मुक़ाबला किया था और जब उन्हें लगा की वो गिरफ्तार हो जायेंगे तो उन्होने अपनी ही रिवाल्वर से अपने आप को गोली मार ली थी।और जिस स्थल पर वो शहीद हुए थे वहां पर उनकी एक मूर्ति लगायी गयी थी जिसमे वो अपनी मूंछों पर ताव देते हुए दिखाए गए थे ,पर इस बार हमने देखा की उनकी मूर्ति बदल गयी है । पहले उनकी आधी मतलब क़मर तक ही सफ़ेद मूर्ति बनी थी पर जो नयी मूर्ति है उसमे चंद्रशेखर आजाद खड़े है और ये मूर्ति काफी भव्य है और हां इस मूर्ति मे भी वो अपनी मूंछों पर ताव देते हुए दिखाए गए। और इस स्थल का नाम शहीदी स्थल रखा गया है।
पार्क मे सुबह जाकर टहलने का चलन तो काफी दिनों से है पर इस बार तो ऐसा लगा मानो पूरा इलाहाबाद शहर ही सुबह उठ जाता है ( उसमे हम भी शामिल है ) और सभी लोग कंपनी बाग़ मे आ जाते है। हर उम्र के लोग दिखते है चाहे वो बुजुर्ग हो या जवान ,औरत हो या आदमी ,लड़के लडकियां बच्चे और कुछ लोग तो अपने पालतू doggi के साथ भी टहलने आते है। कुछ लोग ग्रुप बनाकर चलते है तो कुछ लोग अकेले ही चलते है तो कोई अपने पूरे परिवार के साथ टहलता है। कोई दौड़ता है तो कोई बहुत तेज-तेज चलता है तो कुछ लोग जोर-जोर से ठहाके लगते हुए चलते है। हर कोई अपने स्वास्थ्य को ठीक रखना चाहता है। कुछ बच्चे साइकिल चलाते है तो कुछ क्रिकेट खेलते है तो कुछ झूला झूलते है। ऐसा नही है कि सिर्फ बडे और बच्चे ही वहां आते है लड़के -लडकियां भी टहलने आते है। बच्चों को सुबह उठ कर टहलते और खेलते हुए देख कर बहुत अच्छा लगा क्यूंकि कम से कम यहाँ अभी सुबह उठने का कुछ जोश लोगों मे दिखता है वरना आजकल तो लोगों ने सुबह उठना ही छोड़ दिया है खासकर बच्चों ने।
वैसे पूरे कंपनी बाग का एक चक्कर हम भी लगा लेते है और घर आकर दही जलेबी का आनंद उठाते है। जो मजा सुबह -सुबह गरमा- गरम जलेबी खाने मे आता है उसका कोई मुकाबला नही है।
Comments
Aap ke comments Yunus Khan ji ke blog par dekhe...purane geeton ki pasand ko maaddenazar rakhte hue...mein aapko apne blog:
http://bombaytalkies.vox.com/
par aamantrit kar raha hoon...maine kuch purane geeton ke videos upload karein hai...aayega aur lutf uthaaeyega...kuch purane geeton ki mp3s upload karne ki bhi yojna hai...
Aasha karta hoon, aap padhaar kar anugrahit karengi...:)
Dhanvyavaad!
Shubkaamnaaon sahit,
Sootradhaar