दूरदर्शन ..आज भी वैसा ही है.
अब आप सोच रहे होंगे की अब दूरदर्शन की बात कहॉ से आ गयी तो बात दरअसल मे ये है की आज कल हम दूरदर्शन ही देख रहे है क्यूंकि दिल्ली मे अब cas जो शुरू हो चुका है और अब केबल आता नही है इसलिये आज कल हम दूरदर्शन ही देखते है ।चूंकि हम यहां सिर्फ दो महीने के लिए आये है इसलिये डिश टी.वी.नही लगवा रहे है । वैसे फ्री चैनल मे सारे न्यूज़ चैनल और कुछ music चैनल भी है।और आपको तो पता ही है कि हमारा टी.वी.देखे बिना गुजारा नही है।
पिछले दस -बारह दिन तो कंप्यूटर भी नही चल रहा था और गरमी इतनी कि कोई घूमने भी कहां जाये और फिर टी.वी.देखने के अलावा कोई काम ही नही था। तो दूरदर्शन देख लेते थे क्यूंकि सारे समय न्यूज़ तो देखा नही जा सकता है ,और न्यूज़ चैनल भी आजकल ज्यादातर अंधविश्वास को बढ़ाने वाली बाते या फिर बहुत ही भयानक से कार्यक्रम जैसे वारदात ,सनसनी ,जुर्म,और भी ना जाने कौन-कौन से नाम है ऐसे कार्यक्रमों के जिन्हे दिन भर मे दो-चार बार तो दिखा ही देते है। आज कल तो ऐसा लगता है की स्टार प्लस और आजतक एक दुसरे का चैनल देख कर ही न्यूज़ दिखाते है मसलन अगर आजतक कोई फिल्मी कार्यक्रम दिखायेगा तो स्टार भी उसी समय फिल्मी कार्यक्रम दिखाता है और सहारा न्यूज़ भी और ऐसे मे हालत ये हो जाती है कि इधर देखूं या उधर देखूं या क्या देखूं ।
सारे चैनल एक-दूसरे से आगे निकलने की फिराक मे रहते है पर अपना दूरदर्शन चैनल इन सबसे अलग ही रहता है। दूरदर्शन पर आने वाली न्यूज़ का स्टाइल जरूर थोड़ा पुराना है पर कम से कम एक ही न्यूज़ के पीछे नही पड़ जाता है। हालांकि थोड़ा बहुत बदलाव दिखता है जो की अच्छी बात है। और न्यूज़ पढने का तरीका भी काफी अच्छा है मतलब अगर आप ibn7 और इंडिया टी.वी.की न्यूज़ सुने तो लगता है मानो न्यूज़ पढने वाली किसी क्लास मे पढा रही हो इतनी जोर-जोर से तीखी आवाज मे बोलती है कि चैनल बदलने के अलावा कोई चारा ही नही होता।
और दूरदर्शन पर आने वाले सीरियल तो आज भी वही है जहाँ शायद दस साल पहले थे। आज भी कृषि दर्शन और रंगोली जैसे कार्यक्रम आते है ।वैसे रंगोली मे या सरगम जैसे कार्यक्रम मे ना केवल नए बल्कि पुराने गाने भी सुनने को मिलते है जो बहुत अच्छा लगता है। हास्य कवि सम्मेलन फुलझरी एक्सप्रेस भी हमने काफी समय बाद देखा । और भी कई ऐसे कार्यक्रम है जो आज भी दूरदर्शन पर आते है। दूरदर्शन के कार्यक्रम देखने के बाद ये समझ नही आता है की जहां,स्टार,जीं,सहारा और सोनी इतने lavish सीरियल बनाते है वहां दूरदर्शन इतने आम से सीरियल कैसे बनाता है पर शायद इसलिये क्यूंकि दूरदर्शन दूरदर्शन है।
पिछले दस -बारह दिन तो कंप्यूटर भी नही चल रहा था और गरमी इतनी कि कोई घूमने भी कहां जाये और फिर टी.वी.देखने के अलावा कोई काम ही नही था। तो दूरदर्शन देख लेते थे क्यूंकि सारे समय न्यूज़ तो देखा नही जा सकता है ,और न्यूज़ चैनल भी आजकल ज्यादातर अंधविश्वास को बढ़ाने वाली बाते या फिर बहुत ही भयानक से कार्यक्रम जैसे वारदात ,सनसनी ,जुर्म,और भी ना जाने कौन-कौन से नाम है ऐसे कार्यक्रमों के जिन्हे दिन भर मे दो-चार बार तो दिखा ही देते है। आज कल तो ऐसा लगता है की स्टार प्लस और आजतक एक दुसरे का चैनल देख कर ही न्यूज़ दिखाते है मसलन अगर आजतक कोई फिल्मी कार्यक्रम दिखायेगा तो स्टार भी उसी समय फिल्मी कार्यक्रम दिखाता है और सहारा न्यूज़ भी और ऐसे मे हालत ये हो जाती है कि इधर देखूं या उधर देखूं या क्या देखूं ।
सारे चैनल एक-दूसरे से आगे निकलने की फिराक मे रहते है पर अपना दूरदर्शन चैनल इन सबसे अलग ही रहता है। दूरदर्शन पर आने वाली न्यूज़ का स्टाइल जरूर थोड़ा पुराना है पर कम से कम एक ही न्यूज़ के पीछे नही पड़ जाता है। हालांकि थोड़ा बहुत बदलाव दिखता है जो की अच्छी बात है। और न्यूज़ पढने का तरीका भी काफी अच्छा है मतलब अगर आप ibn7 और इंडिया टी.वी.की न्यूज़ सुने तो लगता है मानो न्यूज़ पढने वाली किसी क्लास मे पढा रही हो इतनी जोर-जोर से तीखी आवाज मे बोलती है कि चैनल बदलने के अलावा कोई चारा ही नही होता।
और दूरदर्शन पर आने वाले सीरियल तो आज भी वही है जहाँ शायद दस साल पहले थे। आज भी कृषि दर्शन और रंगोली जैसे कार्यक्रम आते है ।वैसे रंगोली मे या सरगम जैसे कार्यक्रम मे ना केवल नए बल्कि पुराने गाने भी सुनने को मिलते है जो बहुत अच्छा लगता है। हास्य कवि सम्मेलन फुलझरी एक्सप्रेस भी हमने काफी समय बाद देखा । और भी कई ऐसे कार्यक्रम है जो आज भी दूरदर्शन पर आते है। दूरदर्शन के कार्यक्रम देखने के बाद ये समझ नही आता है की जहां,स्टार,जीं,सहारा और सोनी इतने lavish सीरियल बनाते है वहां दूरदर्शन इतने आम से सीरियल कैसे बनाता है पर शायद इसलिये क्यूंकि दूरदर्शन दूरदर्शन है।
Comments
बेहतर है रेडियो सुना जाये या दूरदर्शन की शरण में रहा जाये.
कुछ लोग मुझे दकियानूसी करार दे सकते हैं!