यादों के झरोखों से ...एम् ए की सिल्वर जुबली

यादों के झरोखों की शुरुआत हम इस बार की इलाहाबाद यात्रा से कर रहे है क्यूंकि इस बार हम इलाहाबाद मे अपने कुछ पुराने सहपाठियों से मिले थे । यूं तो हम जब भी इलाहाबाद जाते थे तो कभी कभार ही किसी से मिल पाते थे क्यूंकि ज्यादातर हम छुट्टियों मे जाते थे और उस समय दुसरे लोग भी बाहर गए हुए होते थे। वैसे इलाहाबाद मे अब तो बस दो चार ही लोग हमारे साथ के बचे है बाक़ी सब लोग अलग-अलग जगहों पर है।

अभी पिछले हफ्ते जब हम इलाहाबाद मे थे तो इस बार हमने सोचा कि चलो अपने कुछ दोस्तो का हाल-चाल लिया जाये लिहाजा हमने अपनी एक दोस्त अनामिका को फ़ोन किया क्यूंकि एक वही है जो इलाहाबाद मे रहती है असल मे वो युनिवर्सिटी मे ancient history पढाती है । और इस बार भी वही हुआ जो पहले भी होता आया है मतलब की फ़ोन पर पता चला की वो बाहर गयी हुई है और दो-तीन दिन मे आएगी ,खैर हमने अपना नाम बताकर
message छोड़ दिया और मन ही मन सोचा कि लगता है इस बार भी किसी से मिल नही पायेंगे। पर दिल्ली लौटने से दो दिन पहले एक शाम हमने और पापा ने सिविल लाइंस घूमने का कार्यक्रम बनाया था और शाम छे बजे हम लोग तैयार होने से पहले चाय पी ही रहे थे कि servant ने आकर बोला कि दीदीजी आपसे मिलने कोई आया है । हम थोडा आश्चर्य मे थे कि भला हमसे मिलने कौन आ गया क्यूंकि अनामिका तो आने वाली नही थी। पर बाहर जाकर देखा तो अनामिका खडी थी ।


हमे एक सेकेंड लगा उसे पहचानने मे क्यूंकि वो पहले से कुछ पतली हो गयी थी और उसका हेयर स्टाइल भी बदल गया था बस फिर हम दोनो एक-दुसरे के गले लग गए आख़िर १०-१५ साल बाद जो मिल रहे थे वैसे अनामिका से हम एक-दो बार पहले भी मिल चुके थे। फिर हम लोग ड्राइंग रूम मे बैठे तो पहले घर बार की और बच्चों की बातें और बस फिर शुरू हो गयी एम् ए के दिनों की बातें और इसी बातचीत के दौरान अनामिका ने बताया की उसने और हर्ष ने जो की हम लोगों का classmate था और जो अब युनिवर्सिटी मे पढाता है ने प्लान किया था की चुंकि इस बार हम लोगों की एम् ए की पढ़ाई के पच्चीस साल हो रहे है तो क्यों ना इस बार अपने सारे ग्रुप का पता किया जाये की कौन कहॉ है । तो हमने कहा की चलो यही से शुरुआत कर लेते है।

बस फिर क्या था हम लोगों ने हर्ष को फ़ोन किया और उसे वही घर पर बुला लिया और फिर तो जो बातें शुरू हुई की कुछ पूछिये मत ऐसा लगा मानो हम लोग वापस पच्चीस साल पीछे चले गए हो। हम लडकियां तो शादी के बाद अपने घर-परिवार मे व्यस्त हो जाती है पर लड़के तो अपनी दोस्ती बरकरार रखते है। ये हम इसलिये कह रहे है क्यूंकि शादी के बाद हम सब लडकियां भी एक दुसरे से बिल्कुल कट ऑफ़ हो गयी थी । बस अनामिका ही थोडा बहुत लोगों के बारे मे जानती थी क्यूंकि वो इलाहाबाद मे जो रहती है। हर्ष से ही पता चला की रवि जो अब बड़ोदा मे है वो किसी कंपनी मे सी इ.ओं बन गया है तो यशवंत लखनऊ के मेडिकल कालेज मे रजिस्ट्रार हो गया है और संतोष राय जो यू.पी.पुलिस मे है वो भी लखनऊ मे है । हम लोगों के साथ एक और ममता (जगाती )पढ़ती थी वो आजकल baroda मे है और सुधा लखनऊ मे है तो नीलिमा की शादी गाँव मे हुई है और वो वही रहती है। हर्ष के पास कुछ लोगों के फ़ोन नंबर थे सो हम लोगों ने सबसे फोन मिला कर बात की और पुराने दिनों को याद किया । पहले तो हर कोई आश्चर्य मे पड़ जाता था क्यूंकि पच्चीस साल कोई छोटा समय नही होता है और इतने साल मे तो आवाज और शक्ल दोनो ही थोड़ी बदल जाती है।खैर जो भी हो हम लोगों को सबसे बात करके ख़ूब मजा आया और जाते -जाते ये तय हुआ कि अब हम लोग एक दुसरे से आगे भी बात करते रहेंगेऔर इस तरह हम लोगों ने मनाई अपने एम्..की सिल्वर जुबली

और हमारा पापा के साथ सिविल लाईन्स जाने का कार्यक्रम धरा का धरा रह गया ।

Comments

Manish Kumar said…
अच्छा लगा जानकर कि आप कॉलेज के मित्रों से मिल पाईं । पुरानी बातों को फिर से याद करना दिल को बेहद सुकून देता है ऍसे अवसरों पर।
मैं भी अपने हाईस्कूल के मित्रों को ढ़ूंढ़्ने की जुगत में लगा हूँ। देखूँ कब तक सफलता मिलती है ?
बहुत खूब! बधाई!
उनसे भी क्यों नहीं हिन्दी में चिट्ठा लिखने को कहती। आपकी मुलाकात इसी जरिये होती रहेगी और हमारी सब की भी हो जायगी।

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