चालीस रूपये की क़ीमत तुम क्या जानो पढ़ने वालों

कुछ दिन पहले पुरानी चिट्ठियों को दोबारा पढ़ते समय ये काग़ज़ का टुकड़ा हाथ लगा जो ऑल इंडिया रेडियो का था जिसमें हमें युवाओं के लिये होने वाले कार्यक्रम युववाणी में गिटार वादन के लिये आमन्त्रित किया गया था । इस लैटर को देखते ही ना जाने कितनी सारी यादें एक बार फिर से ताज़ा हो गई ।

जब पहली बार हम रेडियो स्टेशन गये थे तो एक अजीब सी ख़ुशी का एहसास था पर जब हम रिकार्डिंग रूम में गये थे तब थोड़ा नर्वस हो गये थे । अरे भाई रेडियो बजाना आसान बात तो नहीं थी ,और वो भी पहली बार । और उस ज़माने में युववाणी कार्यक्रम में प्रोग्राम देना बड़ी बात होती थी ।


अब चालीस के दशक में तो अस्सी रूपये की बहुत क़ीमत थी और हमें याद है कि इन चालीस रूपयों को पाकर हम ख़ुशी से झूम उठे थे और फूल कर कुप्पा हो गये थे । कयोकिं वो हमारे पहले रेडियो प्रोग्राम से मिला था ।


और रेडियो स्टेशन से निकलते हुये उन चालीस रूपयों को कैसे ख़र्च करना है ये सब प्लान बनाते हुये घर आ गये थे ।😋


हमने अपने परिवार के वहाटसऐप गुरूप पर जब ये वाला लैटर पोस्ट किया ो हमारे भइया बोले कि कि तब के चालीस रूपये आज के चार हज़ार के बराबर है ।

वाक़ई कभी कभी पुरानी चीज़ें मिलने पर इतनी ख़ुशी होती है कि बस क्या कहें । 😀

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