सावन में मेंहदी

सावन या श्रावण मास शुरू हो गया है । सावन मतलब मेहंदी ,हरियाली तीज का त्योहार ,नागपंचमी,गुड़िया का त्योहार ,झूला और बारिश की फुहारें ।

सावन आये और हम मेंहदी ना लगाये ऐसा नहीं हो सकता है । बचपन में हम लोगों के यहाँ हरियाली तीज नहीं मनाते थे । पर गुड़िया के त्योहार वाले दिन से एक दिन पहले हम लोग मेंहदी ज़रूर लगाते थे ।नागपंचमी में सांप को दूध पिलाने का चलन था क्या अभी भी है और इसलिये सपेरे अपने झोले में नाग बाबा को लाते थे ( वैसे दिल्ली में भी बहुत साल तक सपेरे साँप लाते थे नागपंचमी के दिन ) और गुड़िया के दिन तो हम लोगों के घर से थोड़ी दूर पर मेला भी लगता था । 😊

जब हम छोटे थे तो सावन का खूब इंतज़ार करते थे क्योंकि तब सिर्फ़ सावन में ही हम मेहंदी लगाते थे । और आजकल की तरह तब इतने मेहंदी लगाने वाले नहीं होते थे और ना ही बाज़ार में मेहंदी के कोन वग़ैरह मिला करते थे । तब तो ताज़ी ताज़ी मेहंदी तोड़ी जाती थी और घर पर ब्रजवासी ( हम लोगों का सेवक ) सिल पर मेंहदी पीसता था और तब हम और हमारी दीदी बडे जतन से लगाते थे पर हम लोगों की मेहंदी में वैसा गाढ़ा लाल रंग नही आता था हाँ थोड़ा हल्का लाल रंग आता था । जबकि हमारी एक मारवाड़ी दोस्त साधना की मेहंदी हमेशा चटक लाल होती थी ।

हर साल सावन में हम और हमारी दीदी मेहंदी में नया नया एक्सपैरिमिंट करते थे कभी किसी के कहने पर उसमें भिंडी का लस मिलाते तो कभी कतथा मिलाते । और तो और एक बार हम लोगों के पड़ोस में एक मारवाड़ी परिवार रहने आया था तो उस सावन हम लोगों ने उनसे मेहंदी लगवाई थी तो उस बार थोडा लाल रंग तो आया पर हमारी मारवाड़ी दोस्त की मेहंदी जितना लाल रंग तो नही आ पाया था । 😀

एक बार हमने साधना से पूछा था कि तुम्हारी मेहंदी इतनी कैसे रचती है तो उसने कहा था कि हम लोग रात में मेंहदी लगाकर सो जाते है और सुबह मेंहदी हटाते है । खैर हमने कभी भी रात भर मेंहदी लगाकर नहीं रखी क्योंकि हमारे पापा को मेंहदी की महक बिलकुल नहीं थी । और जब हम बहनें मेंहदी लगाते थे तो पापा के सामने हाथ ज़्यादा नहीं करते थे । हालाँकि पापा ने हम लोगों को मेंहदी लगाने से कभी रोका नहीं था । क्योंकि उन्हें पता था कि साल में एक ही बार तो हम लोग मेंहदी लगाते थे ।

पहले शादी ब्याह में मेंहदी लगाने का चलन नहीं था वो तो बाद में धीरे धीरे इसका चलन हो गया और अब तो बिना मेंहदी के शादी ब्याह सम्पन्न ही नहीं होते है । अब तो मेंहदी की रस्म का एक अच्छा ख़ासा बड़ा फ़ंक्शन होता है जिसमें बाक़ायदा सबको मेंहदी लगती है और सब लोग हरे रंग के कपड़े पहनते है नाच गाना होता है ।

अब तो हमारी मेंहदी भी साधना के जैसी खूब चटक लाल रचती है । आजकल के मिलावटी दौर में जिसमें मेहंदी कम कैमिकल्स ज़्यादा होते है जो हाथ पर लगाने पर रंग तो बढ़िया लाल और कभी कभी कुछ ज़्यादा ही काला सा लाल रंग आता है पर जब दो- तीन दिन बाद मेंहदी छूटने लगती है तब बड़ा ही गंदा सा रंग हो जाता है और कभी कभी हथेली में कुछ खुरदरा सा भी हो जाता है ।

अब हाथ चाहे खुरदरा हो या नहीं पर सावन में हम मेंहदी लगाये बिना नहीं रहते है और अब तो हम अपनी दोस्तों के साथ हरियाली तीज भी ज़ोर शोर से मनाते है । 😀



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