एक सुन्दर शाम मिनाक्षी और रचना के साथ
अब यूँ तो दिल्ली मे मिनाक्षी और रचना से मिले हुए तकरीबन एक महीना हो गया है पर इस पर पोस्ट देर से लिख रहे है क्यूंकि दिल्ली मे रहते हुए कुछ ज्यादा व्यस्त हो गए थे और अब चूँकि हम ईटानगर आ गए है तो सोचा कि इस मुलाकात पर पोस्ट लिखी जाए ।
पिछले ३ साल से हम जब भी दिल्ली जाते है रचना और रंजना से से जरुर बात होती थी और मिलने का भी कई बार कार्यक्रम बना पर हम लोग कभी मिल नहीं पाए । हर बार कि तरह इस बार भी जब हम दिल्ली मे थे तो रचना और रंजना से बात की तो पता चला की रंजना तो दिल्ली से बाहर गयी हुई थी पर रचना से बात हुई तो पता चला की मिनाक्षी भी उन दिनों दिल्ली आई हुई थी । तो मिनाक्षी से भी बात हुई और मिलने का कार्यक्रम बना । और मिलने की जगह हमारा घर रक्खा गया और दोपहर बाद यानी ३ -४ बजे का रक्खा गया। पहले इसे ब्लॉगर मीट की तरह रखने की सोची गयी पर जिनके नंबर थे वो या तो busy थे या दिल्ली से बाहर थे और बाकी लोगों से संपर्क नहीं हुआ। हाँ मनविंदर जी ने भी आने को कहा था पर उस दिन उन्हें कुछ काम आ गया था इसलिए वो नहीं आई थी।
खैर हम तीनो ही पहली बार मिल रहे थे ये अलग बात है कि ब्लॉग और फ़ोन से हम लोग एक-दूसरे को पहचानते थे। खैर मिनाक्षी और रचना दोनों ही पहली बार हमारे घर आ रही थी तो थोड़ी बहुत तैयारी हमने भी करी थी । अरे मतलब थोडा-बहुत नाश्ता बनाया था।
लंच के बाद बस उन दोनों का इंतज़ार शुरू हुआ । और ऐसा लग रहा था मानो समय बहुत धीरे-धीरे चल रहा हो। मिनाक्षी ने हमसे हमारे घर का रास्ता पूछा और ये कहा कि अगर रास्ता ढूँढने मे कुछ कुछ प्रोब्लम आएगी तो वो हमें फ़ोन करेंगी।और जब वो हमारी कालोनी मे पहुँच रही थी तभी उनका फ़ोन आया कि आपका घर किस तरफ पड़ेगा तो हमने कहा कि हम घर के बाहर आ जाते है और हम जैसे ही घर के बाहर गए कि सामने वो कार मे हरे रंग के सूट मे मुस्कराती हुई दिखाई पड़ी। और जब वो कार से बाहर आई तो ऐसा जान पड़ा मानो हम लोग ना जाने कितनी बार पहले भी मिल चुके हो बिलकुल एक पुराने और अजीज दोस्त की तरह।
घर मे आते ही उनका स्वागत हमारे कैरी (doggi) ने किया और फिर हम लोग बातों मे मशगूल हो गए की तभी घंटी बजी तो मिनाक्षी ने कहा की रचना आ गयी। और दरवाजा खोलने पर रचना गुलाबी रंग के सूट मे खूबसूरत सी मुस्कुराहट लिए खड़ी थी। रचना के आने के बाद तो हम तीनो ऐसा बातों मे मस्त हुए कि समय का पता ही नहीं चला । दुनिया जहान की बाते हुई और हाँ कुछ बाते ब्लॉग जगत की भी हुई।
उसके बाद हम लोगों ने खाया -पिया और और डाइनिंग टेबल पर भी खूब गप-शप हुई। और फिर हम लोगों ने कुछ फोटो भी खिंचाई। और देखते-देखते कब शाम बीत गयी इसका अहसास भी नहीं हुआ और फिर एक-दूसरे से हम लोग गले मिलकर विदा हुए। इस पोस्ट को लिखते हुए उस पूरी शाम का सुन्दर अहसास आज भी महसूस हो रहा है।
thanks rachna and meenakshi for a wonderful evening.
पिछले ३ साल से हम जब भी दिल्ली जाते है रचना और रंजना से से जरुर बात होती थी और मिलने का भी कई बार कार्यक्रम बना पर हम लोग कभी मिल नहीं पाए । हर बार कि तरह इस बार भी जब हम दिल्ली मे थे तो रचना और रंजना से बात की तो पता चला की रंजना तो दिल्ली से बाहर गयी हुई थी पर रचना से बात हुई तो पता चला की मिनाक्षी भी उन दिनों दिल्ली आई हुई थी । तो मिनाक्षी से भी बात हुई और मिलने का कार्यक्रम बना । और मिलने की जगह हमारा घर रक्खा गया और दोपहर बाद यानी ३ -४ बजे का रक्खा गया। पहले इसे ब्लॉगर मीट की तरह रखने की सोची गयी पर जिनके नंबर थे वो या तो busy थे या दिल्ली से बाहर थे और बाकी लोगों से संपर्क नहीं हुआ। हाँ मनविंदर जी ने भी आने को कहा था पर उस दिन उन्हें कुछ काम आ गया था इसलिए वो नहीं आई थी।
खैर हम तीनो ही पहली बार मिल रहे थे ये अलग बात है कि ब्लॉग और फ़ोन से हम लोग एक-दूसरे को पहचानते थे। खैर मिनाक्षी और रचना दोनों ही पहली बार हमारे घर आ रही थी तो थोड़ी बहुत तैयारी हमने भी करी थी । अरे मतलब थोडा-बहुत नाश्ता बनाया था।
लंच के बाद बस उन दोनों का इंतज़ार शुरू हुआ । और ऐसा लग रहा था मानो समय बहुत धीरे-धीरे चल रहा हो। मिनाक्षी ने हमसे हमारे घर का रास्ता पूछा और ये कहा कि अगर रास्ता ढूँढने मे कुछ कुछ प्रोब्लम आएगी तो वो हमें फ़ोन करेंगी।और जब वो हमारी कालोनी मे पहुँच रही थी तभी उनका फ़ोन आया कि आपका घर किस तरफ पड़ेगा तो हमने कहा कि हम घर के बाहर आ जाते है और हम जैसे ही घर के बाहर गए कि सामने वो कार मे हरे रंग के सूट मे मुस्कराती हुई दिखाई पड़ी। और जब वो कार से बाहर आई तो ऐसा जान पड़ा मानो हम लोग ना जाने कितनी बार पहले भी मिल चुके हो बिलकुल एक पुराने और अजीज दोस्त की तरह।
घर मे आते ही उनका स्वागत हमारे कैरी (doggi) ने किया और फिर हम लोग बातों मे मशगूल हो गए की तभी घंटी बजी तो मिनाक्षी ने कहा की रचना आ गयी। और दरवाजा खोलने पर रचना गुलाबी रंग के सूट मे खूबसूरत सी मुस्कुराहट लिए खड़ी थी। रचना के आने के बाद तो हम तीनो ऐसा बातों मे मस्त हुए कि समय का पता ही नहीं चला । दुनिया जहान की बाते हुई और हाँ कुछ बाते ब्लॉग जगत की भी हुई।
उसके बाद हम लोगों ने खाया -पिया और और डाइनिंग टेबल पर भी खूब गप-शप हुई। और फिर हम लोगों ने कुछ फोटो भी खिंचाई। और देखते-देखते कब शाम बीत गयी इसका अहसास भी नहीं हुआ और फिर एक-दूसरे से हम लोग गले मिलकर विदा हुए। इस पोस्ट को लिखते हुए उस पूरी शाम का सुन्दर अहसास आज भी महसूस हो रहा है।
thanks rachna and meenakshi for a wonderful evening.
Comments
ब्लॉगिंग की दुनिया में सचमुच ऐसा ही होता है !!
acchi hoti hai .. waah
vijay
आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html
सबको प्रसन्न देखकर
हमारे पड़ोस से गुजर लिए
हमें आहट भी न हुई।