एक-दूसरे पर आक्षेप करना ही क्या ब्लॉगिंग है ?

कितने अफ़सोस की बात है कि हर कुछ दिन पर एक हंगामा होना ब्लॉग जगत का एक नियम सा बन गया है हर बार हंगामा पिछले हंगामे से ज्यादा बड़ा होता हैकभी महिला ब्लॉगर तो कभी उनके द्वारा लिखे गए लेखों को लेकर हंगामा हो जाता है और कल तो हद ही हो गयी कल हमने कई दिन बाद जब ब्लॉग वाणी खोला तो हम कुछ चकरा से गए क्यूंकि कई पोस्टें समीर जी,ज्ञान जी और अनूप जी के नाम के साथ लिखी दिखी और उन्हें पढ़कर अफ़सोस तो हुआ साथ ही बहुत दुःख भी हुआकि आखिर हम लोग किस तरह कि ब्लॉगिंग कर रहे है जिसमे एक-दूसरे पर कीचड उछालना क्या सही है

जब हमने २००७ मे ब्लॉगिंग शुरू की थी तब आज की तुलना मे ब्लोगर जरुर बहुत कम थे (शायद ५००-६०० ) पर इस तरह का रवैया कभी एक-दूसरे के लिए नहीं देखा थाहाँ छोटी-मोटी नोक-झोक होती रहती थी जो ब्लॉगिंग और ब्लॉगर दोनों के लिए जरुरी और अच्छी होती थीपर अब इस नोक-झोक का स्वरुप बदलता ही जा रहा हैएक दम सीधे एक-दूसरे के लेखन पर, एक-दूसरे के व्यक्तित्व पर आक्षेप करना क्या हम ब्लॉगर को शोभा देता है

हम ये तो नहीं जानते कि इस सबके पीछे असली वजह क्या है और जानना भी नहीं चाहेंगे पर इतना जरुर कहेंगे कि समीर जी ,अनूप जी और ज्ञान जी तीनों की ही अपनी लेखन शैली है और अपना अलग अंदाज है लिखने का और जिसे हम सभी ब्लॉगर पसंद करते है और बड़े चाव से पढ़ते भी हैऔर इन लोगों की एक-दूसरे से तुलना करना ठीक नहीं है

इस तरह के विवाद से ब्लॉगिंग और ब्लॉगर दोनों का ही नुक्सान होता है

हम लोगों का इतने बड़े होकर (उम्र के लिहाज से )इस तरह आपस मे झगड़ना ,मन मुटाव करना क्या सही है ?

आम तौर पर हम कभी किसी विवाद पर नहीं लिखते है पर कल मन बहुत आहत हुआ इसलिए ये पोस्ट लिख दी:(

Comments

M VERMA said…
विवाद कहाँ नहीं है पर ब्लागिंग में सकारात्मक विवाद होना चाहिये
ये सब अभिव्यक्ति की सहज प्रवृत्तियां हैं। जिसके पास जो होगा वही तो अभिव्यक्त करेगा। परेशान मत हों! यह सब थमता-चलता रहेगा।
यह सब तो जीवन का हिस्सा है रहेगा, चलेगा।

इन सब पर न तो ध्यान देने की जरूरत है न ही आहत होने की, या समय व्यर्थ करने की, यह इन पर लिखने की।

आवश्यकता है, जरूरत है हिन्दी में अच्छे लेख और अच्छी सूचनाओं के उपलब्ध करवाने की।
Ek dosari par chhita kashi karna bloging ka udeshya kadapi nahi hona chahiye kintu kuch sarphiron ko kaun samjhayega....
Saartha chintansheel prastuti ke liye dhanyavaad.
ममता जी, कुछ लोग हैं जो सुर्खियों में रहने के लिये अचानक इस तरह की घटिया हरकतें कर रहे हैं।
ममता जी ,
ये सब ब्लोग्गिंग का ही एक अंग है , बस हिंदी ब्लोग्गिंग है तो थोडा ज्यादा दिखता है । मगर फ़िर भी ये संपूर्ण ब्लोग्गिंग न होकर बहुत कम अंश है , हमें अधिकांश बडे भाग की तरफ़ ध्यान देना चाहिए ।
यह भी एक यहाँ की परंपरा बन गई है .....
ममता जी बस ये गाना सुनिए...

खुली नज़र क्या खेल दिखेगा दुनिया का,
बंद आंख से देख तमाशा दुनिया का...

जय हिंद...
आपके विचार अच्छे लगे, धन्यवाद।
Kumar Jaljala said…
कौन है श्रेष्ठ ब्लागरिन
पुरूषों की कैटेगिरी में श्रेष्ठ ब्लागर का चयन हो चुका है। हालांकि अनूप शुक्ला पैनल यह मानने को तैयार ही नहीं था कि उनका सुपड़ा साफ हो चुका है लेकिन फिर भी देशभर के ब्लागरों ने एकमत से जिसे श्रेष्ठ ब्लागर घोषित किया है वह है- समीरलाल समीर। चुनाव अधिकारी थे ज्ञानदत्त पांडे। श्री पांडे पर काफी गंभीर आरोप लगे फलस्वरूप वे समीरलाल समीर को प्रमाण पत्र दिए बगैर अज्ञातवाश में चले गए हैं। अब श्रेष्ठ ब्लागरिन का चुनाव होना है। आपको पांच विकल्प दिए जा रहे हैं। कृपया अपनी पसन्द के हिसाब से इनका चयन करें। महिला वोटरों को सबसे पहले वोट डालने का अवसर मिलेगा। पुरूष वोटर भी अपने कीमती मत का उपयोग कर सकेंगे.
1-फिरदौस
2- रचना
3 वंदना
4. संगीता पुरी
5.अल्पना वर्मा
6 शैल मंजूषा
जहां चार बर्तन होंगे, वहाँ उठा पटक तो होगी ही।
कैसे लिखेगें प्रेमपत्र 72 साल के भूखे प्रहलाद जानी।
Udan Tashtari said…
विवाद से ब्लॉगिंग और ब्लॉगर दोनों का ही नुक्सान होता है।

-सत्य वचन!
ब्लागिंग समाज का ही एक प्रतिरूप है. सो, अच्छे बुरे लोग तो यहाँ भी मिलेंगें ही...
hem pandey said…
पूरे प्रकरण में ब्लॉग जगत की छीछालेदर ही हुई है.
सही कह रही हैं आप,सहमत.


शायद हाँ !
क्योंकि अभी तो हम बच्चे हैं जी !
और यहाँ तो बूढ़े तक इसका समर्थन करते हुये बरामद हुये हैं..
इनकी बानगी तो आपके टिप्पणी बक्सवे में हैं जी !

1.विवाद कहाँ नहीं
2.ये सब अभिव्यक्ति की सहज प्रवृत्तियां हैं
3.यह सब तो जीवन का हिस्सा है रहेगा, चलेगा।
4.ये सब ब्लोग्गिंग का ही एक अंग है ,
4.जहां चार बर्तन होंगे, वहाँ उठा पटक तो होगी ही।
5.ब्लागिंग समाज का ही एक प्रतिरूप है.
यानि कि यहाँ आने वाला बुद्धिजीवी वर्ग चार बरतन की हैसियत तो रखता ही है । और यह उनकी अभिव्यक्ति की सहज प्रवृत्तियां हैं। कुल मिला कर बेशर्मी ही हमारी तमीज़ है !
Arvind Mishra said…
आप ने उत्कृष्ट पोस्ट लिखी हैं ,लिखती ही हैं -यह तो जरूरी नहीं था !
जिस वक़्त हमने ब्लोगिंग शुरू की थी, उस वक़्त माहौल बहुत अच्छा था...

लेकिन, अफ़सोस है कि 'कुछ लोगों' ने ब्लॉग जगत रूपी पावन गंगा में 'गंदगी' घोल दी है...और यह दिनोदिन बढ़ रही है...

लोग ज़बरदस्ती अपने 'मज़हब' को दूसरों पर थोप देना चाहते हैं...

गाली-गलौच करते हैं... असभ्य और अश्लील भाषा का इस्तेमाल करते हैं...

किसी विशेष ब्लोगर कि निशाना बनाकर पोस्टें लिखी जाती हैं...

फ़र्ज़ी कमेंट्स किए जाते हैं...

दरअसल, 'इन लोगों' का लेखन से दूर-दूर तक का कोई रिश्ता नहीं है... जब ब्लॉग लेखन का पता चला तो सीख लिया और फिर उतर आए अपनी 'नीचता' पर... और करने लगे व्यक्तिगत 'छींटाकशी'...

'इन लोगों' की तरह हम 'असभ्य' लेखन नहीं कर सकते... क्योंकि यह हमारी फ़ितरत में शामिल नहीं है और हमारे संस्कार भी इसकी इजाज़त नहीं देते... एक बार समीर लाल जी ने कहा था... अगर सड़क पर गंदगी पड़ी हो तो उससे बचकर निकलना ही बेहतर होता है...

आज ब्लॉग जगत में जो हो रहा है, हमने सिर्फ़ वही कहा है...

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