फ़ेसबुक और वहाटसऐप का कमाल
कभी कभी क्या अकसर ही हम सब ज़िन्दगी की भागदौड़ और घर परिवार में इतने व्यस्त हो जाते है कि बहुत कुछ पीछे छूट जाता है और समय आगे निकल जाता है। और अपने दोस्तों ,रिश्तेदारों से सम्पर्क ना के बराबर हो जाता है।
हमने तो कभी सोचा भी नहीं था कि हम अपने स्कूल की दोस्तों से दुबारा कभी मिल या जुड़ पायेंगे क्योंकि शादी के बाद सभी लोग अलग अलग शहर में तो कुछ उसी शहर में रहते हुए भी नहीं मिल पाते थे क्योंकि तब मोबाइल फ़ोन ,फ़ेसबुक ,वहाटसऐप ,ट्विटर वग़ैरह नहीं थे (ऑरकुट जैसी साइट थी ) पर हाँ साधारण फ़ोन की सुविधा ज़रूर होती थी। पर एस. टी .डी. या ट्रंक कॉल मिलाना इतना आसान नहीं होता था। और इसी वजह से धीरे धीरे सबसे दूर होते जाते थे।
बेटों के कहने पर बहुत पहले ही हमने भी अपना फ़ेसबुक अकाउंट बना लिया था पर हमें अपने स्कूल या यूनिवर्सिटी का कोई भी ढूँढे से भी नहीं मिला था । क्योंकि ज़्यादातर लोगों के सरनेम बदल चुके थे।
ख़ैर २०१० की बात है उस समय हम लोग अरूनाचल प्रदेश में थे कि एक दिन हमारी स्कूल की एक दोस्त जो नेपाल में रहती थी ( आजकल अमेरिका में है ) उसने हमें फ़ोन किया ( मोबाइल का ज़माना आ चुका था…
हमने तो कभी सोचा भी नहीं था कि हम अपने स्कूल की दोस्तों से दुबारा कभी मिल या जुड़ पायेंगे क्योंकि शादी के बाद सभी लोग अलग अलग शहर में तो कुछ उसी शहर में रहते हुए भी नहीं मिल पाते थे क्योंकि तब मोबाइल फ़ोन ,फ़ेसबुक ,वहाटसऐप ,ट्विटर वग़ैरह नहीं थे (ऑरकुट जैसी साइट थी ) पर हाँ साधारण फ़ोन की सुविधा ज़रूर होती थी। पर एस. टी .डी. या ट्रंक कॉल मिलाना इतना आसान नहीं होता था। और इसी वजह से धीरे धीरे सबसे दूर होते जाते थे।
बेटों के कहने पर बहुत पहले ही हमने भी अपना फ़ेसबुक अकाउंट बना लिया था पर हमें अपने स्कूल या यूनिवर्सिटी का कोई भी ढूँढे से भी नहीं मिला था । क्योंकि ज़्यादातर लोगों के सरनेम बदल चुके थे।
ख़ैर २०१० की बात है उस समय हम लोग अरूनाचल प्रदेश में थे कि एक दिन हमारी स्कूल की एक दोस्त जो नेपाल में रहती थी ( आजकल अमेरिका में है ) उसने हमें फ़ोन किया ( मोबाइल का ज़माना आ चुका था…