कामाख्या मंदिर

अब जब से हम अरुणाचल आये है तो अरुणाचल आने के लिए हमेशा गुवाहाटी से ही आते है और कामख्या देवी का मंदिर गुवाहाटी मे स्थित है अरुणाचल आने के पहले ये जानते तो थे कि कामख्या मंदिर आसाम मे है पर देवी के दर्शन होंगे या नहीं ये पता नहीं था क्यूंकि आसाम की तरफ आना हुआ ही नहीं था और मंदिर गुवाहाटी मे है ये पता भी नहीं था पर वो कहते है ना की जब बुलावा आता है तो अपने आप सब कुछ हो जाता है और देखिये अब हम अरुणाचल ही गए :)तो कुछ दिन पहले जब हम गुवाहाटी गए तो कामाख्या मंदिर भी देखने गए हम लोगों के गेस्ट हाउस जो की एअरपोर्ट के पास है वहां से इस मंदिर की दूरी क़रीब १० की.मी. थी रात मे गेस्ट हाउस वाले ने बताया की मंदिर मे सुबह-सुबह बजे ही जाने से अच्छा होगा क्यूंकि बाद मे भीड़ बढ़ने लगती है और साढ़े आठ बजे मंदिर का द्वार खुल जाता है और फिर दर्शन करने मे काफी मुश्किल होती है खैर हम लोगों ने उसे बजे के लिए कहा तो वो तैयार हो गया की भी ठीक रहेगा और उसने ये भी कहा की वो वहां किसी पुजारी को जानता है उसकी वजह से दर्शन आराम से हो जाएगा और देवी माँ के सामने पूजा भी कर सकेंगे र्ना वहां मंदिर मे पंडित लोग कई बार बहुत ज्यादा पैसा ले लेते है दर्शन करवाने मे खैर अगली सुबह हम लोग तैयार होकर ठीक बजे मंदिर जाने के लिए निकल पड़े और आधे घंटे मे ही मंदिर पहुँच गए मंदिर काफी उंचाई पर कामागिरी हिल पर है (तकरीबन - की.मी. चढ़ाई है )और रास्ते मे कुछ लोग पैदल जाते हुए भी दिखे और जैसे ही कार से उतरे सामने मंदिर की ओर जाती हुई सीढियां दिखी तो हम लोग उधर चल पड़े तो दोनों तरफ बनी दुकानों से दुकानदार लोग चढ़ावे का सामान खरीदने के लिए आवाज लगाते हुए नजर आये थोडा और ऊपर जाने पर बहुत सारे पंडित लोग भी दिखाए दिए ( मंदिर मे प्रवेश करते ही चारोंओर लाल रंग के कपड़ों मे घुमते नजर आते है। )
,उनमे से कुछ ने पूछा कि माँ का दर्शन करना हो तो वो करवा सकते है हम लोगों के साथ गए हुए आदमी हम लोगों के लेकर अन्दर चल पड़े और सौभाग्य कुंड के पास हम लोगों को रुकने के लिए कह कर पंडित (उन्हें महाराज कहते है ) ढूँढने चले गए और कुछ ही मिनटों मे पंडित को लेकर गएतो पंडित जी ने हम लोगों को कुंड मे हाथ धोकर आने के लिए कहा क्यूंकि मंदिर मे जाने के पहले इस कुंड मे हाथ धोकर ही जाते हैऔर कुंड तक जाने के लिए १५ -२० सीढियां बनी है इस कुंड के पास ही गणेश जी की मूर्ति बनी है और इनके दर्शन करके ऊपर मंदिर के लिए जाते हैपंडित जी से ये पूछने पर कि पूजा की सामग्री कहाँ से लेंगे वो बोले आप बेफिक्र रहे हम सब कुछ ले आयेंगे और हम लोगों को एक द्वार (जिसे back door कहा जा सकता है ) के पास खड़ा कर के चले गए कि अभी थोड़ी देर मे द्वार खुलेगा लाईन मे खड़े-खड़े पता चला कि वो लाईन ५०० रूपये वाली है इसीलिए हां थोड़े से ही लोग थे जब पूछा की हम लोगों का टिकट कहाँ है तो पता चला की पंडित जी टिकट लेकर आयेंगे।और कुछ ही मिनट मे पंडित जी ५०० रूपये वाले टिकट लेकर गए लाईन मे खड़े-खड़े ही दूर की एक लाईन पर नजर पड़ी तो पता चला कि वो कुछ कम रूपये वाली लाईन है इसलिए वहां ज्यादा भीड़ थी (वैसे ऐसा हर मंदिर मे होता है )
क़रीब बजे मंदिर के द्वार खुले तो सभी पंडित अपने-अपने दर्शनार्थी को लेकर चले और गेट पर खड़े एक गार्ड से टिकट चेक करवा कर आगे चले मंदिर मे अन्दर प्रवेश करते ही जरा दूर चलने पर पतली और संकरी सी सीढियां मिली जिनमे बमुश्किल एक या दो लोग खड़े हो सकते थे और वहां थोडा अँधेरा सा भी था खैर लाईन मे लगे रहे - परिवारों के बाद हम लोगों का नंबर गया और देवी माँ के पास जाने वाली सीढ़ी बहुत ही संकरी थी पर जहाँ माँ कि ज्योति जल रही थी वो जगह थोड़ी बड़ी थीऔर वहां पर पानी भी था जिसे पंडित कह रहे थे कि वो कुदरती है हम लोगों को पंडित ने बैठने को कहा और सबसे पहले जल को को छूकर सिर पर लगाने को कहा और हम लोगों के लिए पूजा शुरू की (बस एक मिनट की पूजा ) और जब हमने रूपये चढ़ाए तो वहां बैठे दूसरे पंडित बार-बार ये कहने लगे कि आप कम से कम १००० रूपये और डालिए तो आप के नाम से माँ की आरती की जायेगी और हमारे ये कहने पर कि हमने रूपये चढ़ा दिए है वो इसी बात पर अड़े रहे ,और यहां तक कि जो नारियल हमने चढ़ाया था उसे देने के पहले भी यही कहते रहे तो हमने एक १०० रूपये और माँ के चरणों मे चढ़ाया और सब कुछ इतनी जल्दी -जल्दी होता है कि बस
वहां से निकलने पर पंडित ने कह की अब आप कहीं और ना तो रुकिए और ना ही कुछ ढ़ाईए तो पहले लगा की ये कैसे पंडित है पर वहां से आगे चलते ही हर कदम पर पंडित लोग रूपये चढाने के लिए कहते नजर आये और हम ने पंडित की बात अनसुनी करके कुछ जगहों पर रूपये भी चढ़ाए फिर पंडित वहां ले गए जहाँ भोग की सामग्री रक्खी थी

ये पंडित जी है वैसे इन्होने पूजा अच्छे तरीके से करवाई थी

मंदिर के अंदर नारियल नहीं तोड़ते है इसलिए वहां से बाहर आकर पंडित जी ने पतिदेव को नारियल तोड़कर पानी को चढाने के लिए कहा । और वहीँ खड़े -खड़े हमारी नजर इन दो बकरी के बच्चों पर पड़ी जिन्हें बलि के लिए वहां बाँधा गया था।तो दूसरी तरफ लोग दिए जलाते हुए दिखाई पड़े कामख्या मंदिर मे लोग घंटी बाँध कर मन्नत मांगते है और मन्नत पूरी होने पर घंटी उतारने आते हैऔर कबूतर,बकरी वगैरा दान भी करते है और बलि भी चढाते हैवहां चारों ओर बकरी और कबूतर हाथ मे लिए लोग दिखाई देते रहते है
दर्शन के बाद हम लोगों ने कामख्या स्वीट्स मे पूड़ी और आलू की सब्जी खाई और वापिस चल पड़े अरे भाई दर्शन तो बिना खाए -पिए ही करते है ना :)

Comments

कुछ साल गुवाहाटी में गुजारे हैं, तो कमख्या मन्दीर बहुत बार जाना हुआ है. अमुमन पैदल ही चल पड़ते थे. यादें ताजा हो गई.
मन्दीर से ऊपर पहाटी पर गए कि नहीं? बहुत सुन्दर नजारा दिखता है.
Abhishek Ojha said…
ये तो अपना भी देखा हुआ है :)
बहुत बढियां जानकारी,आपका धन्यवाद.
Manish Kumar said…
ऐसे मंदिरों में जहाँ हर कदम पर पैसा लेना ही मूल ध्येय होता है मन की शांति केसे हो पाती होगी ये सोचनीय है।
राम नवमी पर देवी कामाख्या के मंदिर की यात्रा आपने करवादी ममता जी - मूर्ति कैसी थी ?
लिखिएगा ...
स्नेह,
- लावण्या
mamta said…
संजय जी ऊपर पहाड़ी पर भी गए थे पर उस दिन बादल थे इस वजह से वो सुन्दर नजारा नहीं देख पाए थे।

लावण्या जी इस बार बहुत ज्यादा अच्छे से नहीं देख पाए थे। वैसे शायद वहां मूर्ति नहीं है । ऐसा पंडित जी कह रहे थे।
भारत के लगभग सभी बड़े मन्दिरों में इसी प्रकार की लूट मची हुई है।
इतने छोटे मेमनों की बलि! ये कैसा रिवाज है? लोगों का कलेजा कैसे चलता होगा इतने मासूम और प्यारे बच्चों पर छुरी चलाते हुए? एक बार उसी छुरी से अपने बच्चों को एक छोटा सा चीरा लगा कर तो देखे।
और तो और माँ अपनी ही बनाई सृष्टि के बच्चों की बलि कैसे स्वीकार करती है? ये कैसी माँ है?
मन खट्टा हो गया।
neelima garg said…
good information on ur blog...
neelima ji ye shristi ki banai hui leela hain in bachcho ki bali iss lie dee jati hai ki unke karno ke aadhar per mukti ka marg hai hum jo bhi karm karte hain unka nirnay is janma main sambhav nai ho pata hai to kal ke hisab se unke karmo ka nirnay hota hai aur eise lie yeh bali memno ke hoti hai, bali main kuch to mukt ho jate aur dusra janam nahi lete hain aur kuch jinke karm jydaa kharb hote hain ya jinhone jyda katl ye kisi lady ko shoshan kiya hain to use bar-bar janam lena hota uar bali hot hai tab jakar mukti hoti hai. jaisa ki maa ne bataya - ratan verma Allahabad
Nina said…
कामाख्या मंदिर के शुरुआती वर्षों के बारे में बहुत कम जानकारी है और इसका पहला उल्लेख 9th सदी में तेजपुर में मिले म्लेच्छ वंश के शिलालेखों में मिलता है। जबकि मंदिर लगभग निश्चित रूप से उस समय से पहले अस्तित्व में था, संभवतः कामरूप साम्राज्य के वर्मन काल (350-650 AD) के दौरान, हमारे पास इन शताब्दियों के बहुत कम विवरण हैं। यह क्षेत्र उस समय हिंदू था और ब्राह्मणवादी पुरोहितवाद ने कामाख्या की देवी की पूजा को शर्मनाक और मूर्तिपूजक माना होगा।

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