चेन्नई से पांडेचेरी या पुदुचेरी १ (snake and crocodile farm )

पोर्ट ब्लेयर (अंडमान ) मे रहते हुए अक्सर चेन्नई से आना - जाना होता था और हर बार सोचते थे की चेन्नई से पांडेचेरी इतने पास है तो एक बार वहां जाया जाए पर हर बार बस सोचकर ही रह जाते थे । पर जब अंडमान से गोवा ट्रांसफर हुए तो चेन्नई से पांडेचेरी घूमने गए थे । :)

चेन्नई से पांडेचेरी की ड्राइव इतनी बढ़िया होगी ये पता नही था । चेन्नई से पांडेचेरी कार से जाने मे तकरीबन दो-ढाई घंटे का समय लगता है ।वैसे आपकी कार चलाने की स्पीड पर भी निर्भर करता है । चेन्नई से पांडेचेरी का रास्ता बहुत ही बढ़िया है । हाई वे पर बहुत ज्यादा आंधी -तूफ़ान टाइप ट्रैफिक कम रहता है और जो लोग बहुत तेज कार चलाते है वो पलक झपके ही आंखों से ओझल हो जाते है क्यूंकि सड़कें बहुत अच्छी है । वैसे चेन्नई से पांडेचेरी की ड्राइव मे मजा बहुत आता है ।क्यूंकि समुन्द्र और रास्ते की हरियाली देखते ही बनती है । और सड़क के दोनों और नमक के पहाड़ भी गजब लगते है नमक के पहाड़ तो हमने पहली बार वहीं देखे थे ।अब इसमे कोई चौंकने की जरुरत नही है अब दिल्ली मे हमेशा से रहने वाले के लिए तो नई बात ही है न ।

चेन्नई के मुख्य शहर से जब बाहर निकलते है तो ५-१० कि. मी.की दूरी तय करने के बाद ये snake and crocodile फार्म पड़ता है । इस फार्म का प्रवेश टिकट शायद ५य १० रूपये का था । ठीक से याद नही है क्यूंकि २००६ मे गए थे । :) अब टिकेट बढ़ गया हो तो नही कह सकते है । वैसे अगर गरमी के दिनों मे जाए तो इस फार्म के अन्दर जाकर बड़ी ठंडक अहसास होता है क्यों कि फार्म बिल्कुल घने पेडों के बीच है ।और बारिश के दिनों मे तो मौसम वैसे ही सुहाना रहता है ।


फार्म के अन्दर दाखिल होने के बाद जैसे ही बायीं ओर जाते है तो एक लाइन से बहुत सारे मटके रक्खे दिखाई देते है । इन मटकों का मुंह कपड़े से बंद किया होता है और वहां पर २-३ फार्म के कर्मचारी भी खड़े होते है । उन्ही मे से एक व्यक्ति बताता है कि इन मटकों मे अनेक विषैले सर्प है और विष है । इन्ही मटकों के आस-पास जमीन पर कुछ साँप हिस्स की आवाज करते हुए घूमते-टहलते भी नजर आते है और फार्म के कर्मचारी इन साँपों के बारे मे बताते है कि अगर उन्हें डिस्टर्ब न किया जाए तो वो काटते नही है । ऐसे ही एक साँप के बारे मे वो बता ही रहा था कि साँप ने उसे फन मारा और लकड़ी के बने एक बॉक्स मे चला गया । पर उस व्यक्ति को कुछ हुआ नही क्यूंकि उसका विष शायद निकाल रक्खा था ।और फ़िर वो व्यक्ति साँप का जहर कैसे निकालते है ये भी दिखाता है । वैसे क्या आप जानते है की साँप का विष बहुत ही महंगे दामों मे बेचा जाता है

साँपों को देखने के बाद जब आगे चलते है तो ढेर सारे मगरमच्छ बीच मे बने pond के किनारे सोते और आराम करते हुए नजर आते है । मानों दीन-दुनिया की उन्हें कोई फ़िक्र ही न हो ।पर अगर आप उन्हें आवाज लगाएं (आ-आ करके )तो उनमे हरकत होती है और एक झटके मे वो चलना शुरू कर देते है तो कुछ पानी मे गोता लगाने चले जाते है ।और ज्यादा तंग करने पर मुंह भी चिढाते है । हम लोग इन मगरमच्छों की फोटो खींच ही रहे थे की तभी फार्म का कर्मचारी उन्हें खाना खिलाने आ गया और जैसे ही उसने और जैसे ही उसने साथ लाई हुई बाल्टी को थोड़ा खड़काया और खाना डालना शुरू किया कि तभी अलसाए और सोते हुए मगरमच्छ धीरे-धीरे उठकर दीवार की तरफ़ आने लगे थे । अपने बड़े-बड़े मुंह खोलकर ऐसे आगे बढ़ रहे थे और उछल -उछल कर खा रहे थे और उन्हें देख कर लग रहा था कि जो अगर कही सबने ज्यादा जोश मे उछाल मारी तो ....... । :)

यहाँ से आगे बढ़ने पर एक काउंटर पड़ता है जहाँ शायद ३०-३५ रूपये देकर आप एक छोटे से मगरमच्छ (बच्चा ) को हाथ मे उठाकर फोटो खिंचा सकते है । उस काउंटर पर खड़ा व्यक्ति बताता है कि किस तरह से मगर के बच्चे को हाथ मे उठाना है मतलब एक हाथ उसके जबड़े के नीचे और दूसरा उसके धड के नीचे और इस तरह से पकड़ना होता है कि उसका मुंह खुल न जाए वरना तो क्या होगा ये तो हम सब जानते ही है । अब चूँकि हमें इन से बहुत डर लगता है सो हमने इसे हाथ मे नही उठाया

फार्म घूमते हुए और कुछ अलग-अलग pond मे मगरमच्छों को देखते हुए जब फार्म के आखिर मे पहुँचते है तो वहां शीशे के बने हुए बाड़े मे कुछ बहुत ही विशालकाय अजगर देखने को मिलते है । जो अपनी ही मस्ती मे उस बाड़े के अन्दर बने पेड़ों पर लिपटे और और चढ़ते -उतरते नजर आते है ।
इस तरह साँपों और मगरमच्छों को देखने के बाद हम लोग पांडेचेरी के लिए गए थे ।

Comments

Anil Pusadkar said…
चेन्नई तो जा चुका हूं मगर,मगर का फ़ार्म नही देख पाया।यंहा छत्तीसगढ मे एक गांव मे तालाबो मे ढेरो मगर है जो खुले आम घूमते हैं।सरकार ने यहां मगर फ़ार्म बनाने की घोषणा भी कर रखी है मगर वो सरकारी है।कभी फ़ुर्सत से लिखूंगा उस गांव के बारे में।
annapurna said…
मगरमच्छ के बच्चे के साथ आपकी फोटो नज़र नहीं आ रही।
अजगर ,सांप ,मगरमच्छ..पढ़ना ही रोमांचकारी लग रहा है ...सामने देखना कितना बढ़िया होगा...अच्छा यात्रा विवरण लगा यह
mamta said…
annapurna जी हमने इतनी हिम्मत नही की कि मगरमच्छ के बच्चे के साथ फोटो खिचाते । :)
क्रॉकडाइल फार्म के बारे में जानकारी अच्छी थी वहीं एक सुंदर बीच रिज़ॉर्ट भी है. आयेज तो महाबलीपुरम भी आया होगा या बाईपास कर गये. सुंदर विवरण. आभार.
Udan Tashtari said…
क्रॉकडाइल फार्म के बारे में जानना रोचक रहा. आशा है आगे की यात्रा वृतांत और पांडेचेरी के बारे में शीघ्र आपकी कलम चलेगी.
mamta said…
सुब्रमनियम जी हम महाबलीपुरम भी गए थे जिसके बारे मे आगे लिखेंगे ।
Manish Kumar said…
हाल ही में उड़ीसा मे इस तरह कर क्रोकोडाइल फार्म में जाना हुआ था। वहाँ वैसी ही तसवीरें खिंचवाई थी जिनका जिक्र अन्नपूर्णा जी ने किया है फर्क सिर्फ इतना था कि रखवाले ने बच्चे को हाथ से पकड़ रखा थ और हम ऊपर से छू छा कर रहे थे :)
Abhishek Ojha said…
हमें तो फोटो देख के ही डर लग रहा है :-)
ममता जी आज तो बडी डरावनी पोस्ट लिख दी आपने ..
जेम्स बोन्ड का मगरमच्छोँ के फार्म पर जाने का द्रश्य याद आ गया ..
यहाँ फ्लोरीडा मेँ भी
कई दफे,
घरोँ से , बाथ रुम से और रास्तोँ पे से क्रोकोडाईल पकडे जाते हँ ..
हमेँ महाबली पुरम और पोँडीचेरी घुमाइये
इँतज़ार है :)
- लावण्या
बहुत सुंदर लगा, ओर दिल भी किया कि हम भी देख कर आये, वेसे यहां तो बहुत बार देखा है,
चलिये कभी इस तरफ़ आना हुआ तो जरुर देखेगे.
धन्यवाद

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