palacio do deao ( गोअन हेरिटेज हाउस )



गोवा मे beaches के अलावा भी इतनी सारी जगहें है देखने के लिए की अगर हर हफ्ते भी घूमने जाए तो कम पड़ जाए।हमने अपनी पोस्ट मे कहा भी था कि
यहां पर कुछ हेरिटेज हाउस है जिन्हें देखना भी अपने आप मे एक अनुभव ही है हेरिटेज हाउस की शुरुआत तो हम कर ही चुके है तो ऐसे ही एक और हेरिटेज हाउस को देखने के लिए हम लोग गए। पंजिम से करीब ४०-५० कि.मी दूर quepem ( quepem को केपे कहा जाता है। ) पर मडगाँव से बस १५ कि.मी.दूर यह हेरिटेज हाउस है, ये २०० साल पुराना है।यहां पर पहुँच कर एक बार को लगता है कि शायद ग़लत जगह आ गए है।क्यूंकि ये देखने मे museum जैसा कम बल्कि किसी का घर ज्यादा लगता है।और इस doggi को देख कर भी क्यूंकि किसी भी museum मे doggi स्वागत नही करता हैयहां पर दो गेट है पहले गेट के अन्दर दाखिल होते ही दाई तरफ़ जोस पाउलो की मूर्ति और बाई तरफ़ कुआँ दिखाई देता है । । यहां के हर घर मे कुआँ जरुर होता हैऔर जैसे ही दूसरे गेट से अन्दर दाखिल होते है कि एक छोटा सा प्यारा सा doggi भौंक-भौंक कर स्वागत करता है।पर और कोई भी कहीं दिखाई नही देता है। और जब इस हाउस की सीढियों को चढ़ कर ऊपर जाते है तब भी कोई नजर नही आता है पर सारा घर खुला रहता है। चारों और हरियाली और शान्ति और दरवाजे मे टंगे हुए सफ़ेद परदे हवा मे उड़ते हुए कुछ-कुछ घोस्टी हाउस जैसी फीलिंग भी देते है। अरे डरिये नही ऐसा कुछ नही है। :)

जैसे ही सीढ़ी से ऊपर जाते है की दाहिनी ओर इस घर का नक्शा बना है और इसके इतिहास के बारे मे लिखा है। ये घर कुशावती नदी के किनारे 1787 मे एक पुर्तगाली जोस पाउलो (jose paulo) ने जो की उस समय चर्च के dean और केपे शहर के founder थे ने बनाया थाये घर ११ हजार स्क्वायर फीट एरिया मे बना है जिसमे से एकड़ मे गार्डन हैचारों ओर खूबसूरत बगीचे और हरियाली देख कर मन खुश हो जाता है जब jose paulo ओल्ड गोवा से केपे रहने के लिए आए उस समय केपे मे जंगल था तो jose ने यहां रहने वाले लोगों को वहां पर चावल,नारियल और दूसरे फलों के पेड़ लगाने को कहा jose ने यहां पर रहने वाले के लिए एक बाजार ,हॉस्पिटल और ऐसी ही अन्य सुविधाएं बनाई थी।


इस हाउस को फ़िर से restore करने मे तीन साल का वक्त लगा .( २००२ से २००५ ) और अब ये एक museumहै ।और अब इस घर रुपी museum की देख भाल एक मैकेनिकल इन्जीनिर और उनका परिवार करता है । यहां प्रवेश पर कोई भी शुल्क नही देना पड़ता है। पर हाँ अगर आप कुछ दान करना चाहे तो कर सकते है।इस हाउस मे पुर्तगाली के साथ-साथ हिंदू संस्कृति की भी झलक मिलती हैघर मे जैसे ही प्रवेश करते है की ईसा मसीह की छोटी सी मूर्ति टंगी दिखती है बड़े-बड़े कमरे और हर कमरे का इतिहास कमरे की दीवार पर लिखा हुआ हैजिसे आराम से समय देकर पढ़ा जा सकता है. यहां पर एंटीक फर्निचर ,फोटो,सिक्के,स्टैंप ,किताबें वगैरा देखने को मिलते हैइस घर के ठीक सामने चर्च बना हुआ है और घर के बरामदे से चर्च देखा जा सकता है

यहां पर खिड़की शीशे या लकड़ी की नही बल्कि shell की बनी होती हैपुराने गोअन घरों मे खिड़की shell की बनी होती हैवैसे आम तौर पर कहीं भी आते-जाते ऐसी खिड़की देखी जा सकती हैऔर इस फोटो मे भी shell वाली खिड़की दिख रही हैजो की बहुत ख़ास बात है।अधिकांश museum मे चीजों को छूना मना होता है पर यहां के फर्निचर को छू सकते है पर हाँ थोडी सावधानी बरतनी पड़ती है कि कहीं कुछ टूट-फुट ना जाए। :)

इस museum की एक और खास बात है की यहां पर आपको बिल्कुल पारंपरिक गोअन खाना मिलता है पर उसके लिए पहले से बताना पड़ता है।वैसे आधे घंटे मे वो खाना खिला देते है पर हमने सिर्फ़ कॉफी पी थी क्यूंकि हम लोग सुबह गए थे और तब खाने का समय नही हुआ था। इस लिए हम लोगों ने कॉफी पी थी। पर कॉफी का स्वाद भी जरा हट के था।हल्का सा कडुवा या स्ट्रोंग भी कह सकते है






Comments

Yunus Khan said…
ये भी खूब रही । आज सबेरे ही हमने गोआइन संगीत का लुत्‍फ उठाना शुरू किया और रेडियोवाणी पर गोआ की तरंग गूंजने भी लगी हैं ।
Rajesh Roshan said…
यह जानकारी साझा करने के लिए धन्यवाद. वैसे मैं गोवा के दो फेमस बीच बागा और कल्न्गुत ही गया हू
रोचक जानकारी और रोचक अन्दाज में। पढ़ कर बहुत अच्छा लगा।
मैं फिर कहूंगा - आप पोस्टों पर पर्याप्त मेहनत कर रही हैं।
बहुत रोचक ढंग से आप लिख रही गोवा को .. पढ़ते पढ़ते लगता है वही है :) और इंतज़ार रहेगा आगे भी
Abhishek Ojha said…
बिलुल ऐसे ही सैर कराते रहिये हम भी साथ चल रहे हैं.
mamta said…
आप सभी का शुक्रिया।
ज्ञान जी शुक्रिया ।
ये सब आप लोगों की हौसला अफजाई करने वाली टिप्पणियां का ही नतीजा है।
Udan Tashtari said…
बहुत आभार इस रोचक जानकारी के लिए. घूमते रहिये, लिखते रहिये. शुभकामनाऐं.
Manish Kumar said…
बढ़िया विवरण रहा ये भी ! चित्र मीडियम आकार के लगाएँ तो बेहतर रहेगा।
ममता जी.आभार गोवा के दर्शनीय स्थलोँ के बारे मेँ बतलाने के लिये .कुशावती नदी का नाम ना जाने पह्ले कहाँ सुना है ?
और सीपी से बनी खिडकियाँ मुझे कविता की दुनिया मेँ खीँच ले जा रही हैँ ..और लिखिये .
स्नेह,
- लावण्या

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