भाभी आई -भाभी आई गीत मिल गया ...

बहुत दिन पहले रेडियोनामा पर अन्नपूर्णा जी ने इस गाने का जिक्र किया था । और कल esnip पर ढूँढने पर ये गाना मिल गया ।इस गाने को सुनते हुए उस ज़माने मे लौट जाइए जब छुक-छुक गाड़ी धुआं उड़ाती हुई चलती थी।और हम और आप कितनी ही बार खिड़की से बाहर झांकते थे और बाहर झाँकने पर आँख मे कोयला पड़ता था और तब हाथ से आँख मलते हुए सिर अन्दर करके कुछ देर बैठते थे और थोडी देर बाद फ़िर सिर बाहर । :)
(तब ज्यादातर ट्रेन की खिड़कियों मे लोहे की rod नही लगी होती थी ) फ़िल्म सुबह का तारा (१९५४) के इस गाने मे तो भाभी को ना जाने कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ा जरा सुनिए ।

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Comments

sanjay patel said…
मेरा परिवार बहुत सी बुआओं का परिवार रहा सो वे स्वाभाविक है कि वे मेरी माँ को भाभी संबोधन दिया करती थीं । नतीजा ये हुआ कि आपका ये भाई अपनी माँ को भाभी संबोधित करने लगा(और आज भी करता हूँ..मम्मी बोल ही नहीं पाता)जब विविध भारती से ये गाना पहली बार सुना तो माँ से चिल्ला कर कहा भाभी आपका गाना आ रहा है ! आपकी पोस्ट ने ममता दी उसी बचपन में लौटा दिया जो लौट कर अब कभी नहीं आएगा. विविध भारती इन चित्रपट गीतों के ज़रिये हमें जो देता है क्या वह इस दिन ब दिन तकनीकी होते समय में कोई और दे सकता है सिवा मेरी भाभी के ?
annapurna said…
यूरेका ! यूरेका !!

आख़िर मिल गया गाना।

वाह ! ममता जी मज़ा आ गया।
सैड, कमजोर इण्टरनेट कनेक्शन के चलते सुन नहीं पाया।
Udan Tashtari said…
घर जा कर सुनेंगे. गाना मिलने की बधाई. :)

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