बंद और चक्का जाम

चाहे कोई राजनैतिक पार्टी हो या कोई आन्दोलन कारी हो जिस किसी को भी आपना आक्रोश दिखाना होता है वो बंद , और चक्का जाम का सहारा लेता है। पिछले १४-१५ दिनों से आरक्षण के लिए राजस्थान मे गुज्जर आन्दोलन के चलते सारे रेलवे ट्रैक को गुज्जर आन्दोलन कारियों ने जाम कर रक्खा है। कितनी ही ट्रेन रद्द कर दी गई और कितनी ही ट्रेनों के रास्ते बदल दिए गए। और जब ये आन्दोलन और बढ़ा तो इसने दूसरे राज्यों मे भी अपना रूप दिखाया जैसे दिल्ली ,यू,पी,वगैरा मे जब ये आन्दोलन बढ़ा तो ना केवल रेलवे ट्रैक बल्कि सड़कों को भी बंद किया गया और चक्का जाम किया गया।

अभी गुज्जरों का आन्दोलन चल ही रहा था कि केन्द्र सरकार द्वारा की गई पेट्रोल ,डीजल ,और एल,पी,जी,गैस के दामों मे हुई बढोत्तरी और महंगाई को लेकर लेफ्ट ने आन्दोलन का एलान कर दिया। लेफ्ट पार्टी यू.पी.ए.सरकार मे पहले दिन से ही उनकी नीतियों के ख़िलाफ़ जब-तब रुठती रहती है और समर्थन वापसी की धमकी भी देती रहती है पर बस जनता के लिए ही वो सरकार का साथ दे रही है। इस तरह से धमकियाँ देते हुए लेफ्ट ने साल तो निकाल ही दिए है पर अब पेट्रोल के दामों के बढ़ने पर एक बार फ़िर लेफ्ट ने समर्थन वापसी की धमकी दे दी है। और सरकार को अपना आक्रोश दिखाने के लिए बंद का एलान कर दिया। २ दिन के इस बंद ने कोलकत्ता मे जन -जीवन को बिल्कुल ठप्प कर दिया था । अब जब लेफ्ट सरकार मे होते हुए सरकार के ख़िलाफ़ बंद का एलान करेगी तो बी.जे.पी.तो विपक्ष की पार्टी है उसने भी बंद का एलान कर दिया है

क्या आन्दोलन करने वाले ये नही सोचते है कि उनके इस आन्दोलन और बंद से जनता को कितनी परेशानी होती हैउन्होंने तो बंद का एलान किया और जो कोई सड़क पर निकला उसकी गाड़ी को तोड़ दियाराज्य की बसों को तोड़ना आग लगाना, ये कैसा आन्दोलन है जिसमे जनता को परेशानी और मुसीबत के सिवा कुछ नही मिलता हैकिसी का इम्तिहान होता है तो बंद के चलते वो समय पर इम्तिहान देने नही जा पाते क्यूंकि रास्ते बंद होते है । जब ट्रेन कैंसिल होती या या कोई फ्लाईट कैंसिल होती है तो उससे यात्रा करने वालों को कितनी मुसीबत होती है। महीनों पहले कराया गया रिजर्वेशन बेकार हो जाता है। जहाँ गंतव्य पर पहुँचना है वहां पहुँच नही सकते है। ट्रेन को रोक कर वो किसका भला करते है क्या कभी रोकी गई ट्रेन के यात्रियों से इन्होने पूछा है कि उन्हें इस तरह घंटों तक रोके जाने पर कैसा लग रहा है।

ट्रेन हो या सड़क जब भी चक्का जाम या रास्ता रोको होता है तो ना तो किसी सरकार को और ना ही आन्दोलन कारियों को कोई तकलीफ होती है अगर किसी को तकलीफ होती है या परेशानी होती है तो वो है आम आदमी जो हम और आप है।

Comments

Suresh Gupta said…
बंद, चक्काजाम, हड़ताल, घेराव, यह सब समाज और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियाँ हैं. करोड़ों रुपए की संपत्ति की हानि होती है. कितने निर्दोष नागरिक मारे जाते हैं. नागरिकों को न जाने कितनी परेशानिओं का सामना करना पड़ता है. कितने कार्य-दिवस बेकार चले जाते हैं. ऐसा ही कुछ आतंकवादी हमले में होता है. इन दोनों में कोई फर्क नहीं है. दोनों देश के दुश्मन हैं. दोनों को एक जैसी सजा मिलनी चाहिए.
कुश said…
अगर इतना सब सोचते तो ये बंद ही क्यू होते..
जी हां, इन आंदोलनों की वजह से आम आदमी को तो बेहद दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। आपने जितनी बातों की तरफ भी ध्यान दिलाया है, वे सब बहुत मुनासिब हैं। लेकिन पता नहीं क्यों इस तरह की मूवमैंट्स आज कल कुछ ज़्यादा ही होने लगी हैं।
ये लोग हड़ताल करके अपने कर्तव्य कि ईती श्री कर लेते है.
और सम्झ्तें है कि जनता को धोका देने मे कामयाब हो जायेंगे.
देश का दुर्भाग्य!
ये सही समझते हैं और कामयाब भी हो जाते हैं.
Udan Tashtari said…
सब अपना उल्लु सीधा करते हैं. बहुत अफसोसजनक.

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