इतने असंवेदनशील कैसे हो रहे है हम . ...

आज सुबह से एक न्यूज़ आ रही थी जिसमे एक लड़की ने किसी राम कुमार पर रेप का आरोप लगाया । लड़की को सभी न्यूज़ चैनल पर दिखाया जा रहा था जिसमे उस लड़की की दो औरतें चप्पल से पिटाई कर रही थी। और कुछ उसी गली-मोहल्ले के लड़के हंस रहे थे ,ताली बजा रहे थे और यहां तक की नाच भी रहे थे। और इतने पर ही वे लड़कों शांत नही हुए बल्कि उन लड़कों मे से एक लड़के ने तो उस लड़की को पीछे से लात भी मारी ।और ये भी न्यूज़ मे बताया गया की उस लड़की की पिटाई पुलिस के सामने हो रही थी। पर पुलिस ने ना तो इस मार-पीट को रोकने की कोशिश की और ना ही उस लड़की को बचाने की।


आज कल हम इतने असम्वेदन शील कैसे होते जा रहे है ?
तकरीबन हर रोज इस तरह की कोई ना कोई घटना देखने को मिल जाती है।
पहले तो नही पर दोपहर बाद पुलिस ने उन लोगों के ख़िलाफ़ केस रजिस्टर कर लिया है।

Comments

PD said…
वे पत्रकार क्या कर रहे थे?? अपनी TRP के पीछे थे क्या?
nadeem said…
mamtaji
jin logon ne ye reprt dikhayi wo kitne sanvedansheel hain ki unhone use bachane ki bajaye use shoot karna shuru kar diya...
ममता जी ,
सुबह से देख रही हूँ मैं भी ।
आपकी चिंता समझ रही हूँ ।एक बात पुरानी नही होती दूसरी सामने आ जाती है ।
mehek said…
ye to hadd ho gayi besharmi ki,these eporters r shooting instead of saving that girl,and police tamasha dekh rahi thi.
दुखद है यह सम्वेदनहीनता।
हम अपनी संवेदनाओं को धीरे-धीरे खोते जा रहे है, जो हमारे समाज के लिए शुभ शुचक नही है .
बैशक हम 21 सदी में जी रहे है पर मानसिकता अभी भी वही पुरानी है।
आभा said…
डरपोक मौका मिलने पर ऐसा ही करते है ,पर सजा मिल जाए तो अत्मा को शान्ती मिले ,रोज ही कुछ न कुछ दिखता है -मन दुखी होता है,गजब तेरी दुनियाँ मालिक......
सब से पहले पत्रकारो को सजा दे, उन्हे किसने बताया यहां यह सब होने वाला हे फ़िर जो पुलिस वाले, उन्हे पकडे,ओर फ़िर वो हिजडे जो तालिया मार रहे थे ओर टांगे मार रहे थे, यह सब सजा के हक दार हे.
Divine India said…
असंवेदनशीलता तो आज हमारे अंश जैसा हो गया है… लोग आज दृश्य देखना चाहते हैं… Reality Show का जो जमाना है…।
अफसोसजनक ....घोर खेदपूर्ण।
आए दिन होती इन्ही घटनाओं के कारण विदेशों मे रह रहे बच्चे चाह कर भी अपने देश आगे की पढ़ाई के लिए आने को डरते हैं. कुछ ही हिम्मत कर पाते हैं.
आज नोएडा में हुए कत्लेआम की चर्चा है .
ममता जी
आप हिन्दी फिल्में देखना बंद कर दें तो सच कहता हूँ कि डर काम हो जायेगा. सच तो यह है कि यह समाज पहले इतना डरपोक नहीं था फिल्मों को देखकर ऐसा हो गया है. आप देखिये फिल्मों में जो ऐसे किसी महिला के बचाव में आता है उसे फिर जो परेशानियाँ होतीं हैं वह सब आप देखतीं हैं उसके बाद क्या किसी में यह साहस रह जाता है किसी की मदद करे. सच तो यह है कि फिल्मों ने लोगों को डरपोक बनाया ताकि अपराधी मजे से अपना काम कर सकें. आप देखिये फिल्मों को पैसा कहाँ से मिलता है और वह क्या चाहेंगे कि यहाँ की कॉम बहादुर बने.
मै दीपक भारतदीप जी से सहमत हूं पीक्चर मे ही ऎसे फील्म दीखा दीखा कर डराते हैं। अब समाज एक डरपोक बन गया है और कीसी की भी मदद तभी करेगा जब उसे पूरा वीशवाश हो जाए की उसे कोई खतरा नही है।

ईन सब की एक ही सजा होनी चाहीये "फांसी"

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