हमार बियाह तो रेडियो से हुआ है ना

ओह हो शीर्षक देख कर चौंकिए मत। यहां हम अपनी बात नही कर रहे है बल्कि अपने पापा-मम्मी के बारे मे बात कर रहे है। दरअसल मे कल हमारी पापा से फ़ोन पर बात हो रही थी और बातों ही बातों मे हमने उनसे पूछा कि आप ने किताब के लिए कुछ लिखना शुरू किया या नही

तो इस पर पापा बोले कि उन्होंने मम्मी के साथ हुए एक वाक़ये को कुछ लिखा तो है पर फ़िर आगे लिखने का मन नही हुआ
हमारे कहने पर कि आप थोड़ा -थोड़ा ही लिखिए पर लिखिए जरुरइसपर पापा ने हमे बताया कि उन्होंने क्या लिखा था

ये किस्सा उस समय का है जब पापा-मम्मी की नई-नई शादी हुई थी उस समय पापा यूनिवर्सिटी मे पढ़ते थे और होस्टल मे रहते थेऔर चूँकि उस ज़माने मे पढ़ते हुए शादी हो जाती थी इसलिए मम्मी अपनी ससुराल मे रहती थीससुराल मे बाबूजी,दादा(जेठ )बड़ी अम्मा (जेठानी) रहते थे

उस ज़माने मे ससुर जी और जेठ से बहुत ज्यादा बात करने का रिवाज नही था हालांकि बाबूजी हमेशा मम्मी से बात करते थे क्यूंकि हमारी दादी नही थीपापा हॉस्टल चले जाते और शनिवार और रविवार की छुट्टी मे घर आते थे और सोमवार को वापिस अपने हॉस्टल चले जाते थेबाबूजी और दादा अपने-अपने office चले जाते थे और बड़ी अम्मा का अपना मिलने-जुलने का कार्यक्रम रहता था और चूँकि मम्मी नई-नई थी इसलिए वो हर जगह नही जाती थी और घर मे रहती थी और घर मे उनका साथी रेडियो होता थामम्मी को संगीत का बहुत शौक था और वैसे भी अकेले मे रेडियो से अच्छा साथी तो कोई हो ही नही सकता था।(बड़ा सा भूरा और पीले रंग का। )

ऐसे ही एक शनिवार जब पापा हॉस्टल से घर आए तो मम्मी ने उन्हें बताया की रेडियो ख़राब हो गया है इसे बनवा दीजिये
पापा के पास रविवार का दिन था और रविवार को दूकान बंद रहती थी इसलिए पापा ने मम्मी से कहा की बाबूजी या दादा से वो कह देंगे रेडियो बनवाने के लिए
और पापा सोमवार को अपने हॉस्टल चले गए पर ना तो बाबूजी और ना ही दादा के पास इतना समय था की वो रेडियो बनवाते और ना ही बीच मे मम्मी ने बाबूजी या दादा से रेडियो बनवाने के लिए कहालिहाजा रेडियो जस का तस ख़राब ही पड़ा रहा और पूरा हफ्ता बीत गया अगले हफ्ते जब पापा फ़िर घर आए तो मम्मी ने उन्हें रेडियो बनवाने के लिए कहा

तो पापा ने कहा की अगले हफ्ते बनवा देंगे पापा का इतना कहना था कि मम्मी ने नाराज होकर कहा की हमार बियाह तो रेडियो से ही हुआ है ना और इस रेडियो बिना हमारा गुजारा नही है

मम्मी के ऐसा कहने पर पापा पहले तो खूब हँसे और फ़िर बाद मे उसी दिन रेडियो भी बनवाया

Comments

हाहाााहााहाा मजेदार.........
annapurna said…
लगता है आज ब्लागिंग में रेडियो परिवारों की धूम है। पहले रेडियोनामा पर पढा पंकज जी को और अब आप…
Pankaj Oudhia said…
रेडियोनामा मे भी इस लेख को प्रकाशित करियेगा। आपकी लेख्ननी मे फ्लो है अत: आपको जल्दी-जल्दी लिखना चाहिये।

बहुत दिनो से साँपो पर पोस्ट नही दिखी। मुझे लगता है आपको साँपो पर अपने अनुभवो पर एक अलग ब्लाग बनाना चाहिये। चाहे तो क्म्यूनिटी ब्लाग बनाये जिससे सब मिलकर लिख सके।
Abhishek Ojha said…
ये आलम तो हमारे घर में भी है, बस हमारे यहाँ माँ की जगह पापा हैं.
mamta said…
आप सभी का शुक्रिया ।
अनुपमा जी बाद मे पंकज जी की पोस्ट पढ़कर हमे भी यही ख्याल आया था।
पंकज जी ना केवल साँप बल्कि हम तो एक pet ब्लॉग बनाने की सोच रहे है।
Yunus Khan said…
बहुत नाइंसाफी है ममता जी । रेडियोनामा का हक़ था इस पोस्‍ट पर । हे हे हे
ओह क्या दिन थे वे! समय मेँ कितना अंतर आ गया है।
आभा said…
मजेदार हम भी मस्त हुए ।
बहुत खुब ममता जी , वेसे बताये दिवाने तो हम भी थे रेडियो के, हमारा रेडियो जब पापा घर नही होते थे,पुरा मोहल्ला सुनता था,यानि पुरी आवाज मे.
दिल को छू लेने वाला संस्मरण
दीपक भारतदीप

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