२६ दिसम्बर की वो सुबह

भला कैसे भूल सकते है अंडमान की २६ दिसम्बर २००४ की वो सुबह जिसने बहुतों की जिंदगी बदल दी।और कुछ हद तक हमारी भी। उस २६ दिसम्बर को हम लोग निकोबार जाने का प्रोग्राम बना रहे थे क्यूंकि निकोबार मे क्रिसमस और नया साल काफी जोश से मनाया जाता था। अब अंडमान मे थे तो सोचा कि निकोबार का क्रिसमस भीदेख लेना चाहिऐ।पर कहते है ना कि जो होता है अच्छे के लिए ही होता हैइसीलिए उस साल हम लोग क्रिसमस के लिए निकोबार जाकर दो दिन के लिए एक दुसरे छोटे से द्वीप बाराटांग चले गए थेक्यूंकि बेटा अपनी क्लास छोड़ना नही चाहता थाइसलिए २५ को ही घर वापिस गए थे। चूँकि हमारे बेटा जो कि उस समय दसवीं मे था उसने जाने से मना कर दिया था कि एक हफ्ते के लिए वो नहीं जाएगा ,इसलिए हम लोग निकोबार ना जाकर पोर्ट ब्लेयर मे ही थे। उन दिनों हम लोग पोर्ट ब्लेयर के जंगली घाट मे रहते थे।आज भी वो सारा मंजर बिल्कुल आंखों मे बसा हुआ है ,इतने सालों बाद भी कुछ भी नही भूले है। यूं तो उस दिन भी हम लोग सुबह ४.३० बजे उठे थे क्यूंकि हमारे बेटे को ५ बजे टियुशन के लिए जाना होता था (अंडमान मे सुबह चार बजे से ही बच्चों की टियुशन क्लास शुरू हो जाती है। ) एक घंटे की क्लास के बाद बेटाछे बजे लौटा और बोला कि उसे दोबारा आठ बजे फिर से क्लास के लिए जाना है।और ये कहकर की पौने आठ बजे उसे उठा दे , वो फिर से सोने चला गया। चूँकि २६ को रविवार था और दसवीं के बोर्ड के इम्तिहान पास जो आ रहे थे इसलिए एक्स्ट्रा क्लास चल रही थी। । रोज का दिन होता तो शायद पतिदेव घर पर न होते क्यूंकि वो सुबह-सुबह जिम जाया करते थे। पर रविवार को जिम बंद रहता था।अंडमान मे हम लोगों का डुप्लेक्स घर था। और हम लोगों का बेडरूम ऊपर था।सुबह ६ बजे हमारे servant क्वाटर मे रहने वाली काम करने आ जाती थी।क्यूंकि अंडमान मे सवेरा बहुत जल्दी हो जाता है। सबसे पहले वो घर की साफ-सफाई करती थी।फिर नाश्ता बनाती थी। और रोज की तरह उस दिन भी वो सुबह -सुबह नीचे की मंजिल पर पोंछा लगा रही थी।



और जब बेटा सोने गया तो हम लोग भी दुबारा सोने की कोशिश करने लगेपर तभी अचानक ऐसा महसूस हुआ कि बिस्तर हिल रहा हैपहले तो कुछ समझ मे नही आया फिर कुछ हिलने की आवाज सी आई तो आँख खोलकर देखने की कोशिश की तो देखा कि कमरे का दरवाजा ,टी.वी.,अलमारी का दरवाजा हिल रहा हैये देख कर तो होश ही उड़ गए जल्दी से बिस्तर से उठे और बेटे को आवाज लगाई जल्दी उठो बाहर भागो भूकंप आया हैचूँकि बेटा हलकी नींद मे था इसलिए उसे तुरंत समझ मे नही आया उसने बिस्तर पर से ही कहा की मैं तो अभी ही सोया हूँ। तो बड़ी जोर से हमने चिल्ला कर कहा कि बाहर भागो भूकंप है। जल्दी जल्दी हम लोग सीढ़ी उतरने लगे । सीढ़ी क्या थी मानो राजधानी एक्सप्रेस मे जैसे एक डिब्बे से दुसरे डिब्बे मे जाने के लिए बीच का रास्ता जोर-जोर से हिलता है बिल्कुल उसी तरह जोर-जोर से हिल रही थी। अगर सीढ़ी पकड़ के ना उतरे तो गिर ही जाये। नीचे उतरते हुए हम बेटे से कह रहे थे की ध्यान से उतरना नीचे इन्द्रा ने पोंछा लगाया है।बेटा तो उतर गया पर जैसे ही हमनेऔर जब बेटा सोने गया तो हम लोग भी दुबारा सोने की कोशिश करने लगे।पर तभी अचानक ऐसा महसूस हुआ कि बिस्तर हिल रहा है । पहले तो कुछ समझ मे नही आया फिर कुछ हिलने की आवाज सी आई तो आँख खोलकर देखने की कोशिश की तो देखा कि कमरे का दरवाजा ,टी.वी.,अलमारी का दरवाजा हिल रहा है । ये देख कर तो होश ही उड़ गए जल्दी से बिस्तर से उठे और बेटे को आवाज लगाई जल्दी उठो बाहर भागो भूकंप आया है। चूँकि बेटा आख़िरी सीढ़ी से अपना पैर नीचे रखा और सीढ़ी की रेलिंग छोडी कि हम अपने को संभल ही नही पाए और फिसल गए पतिदेव ने उठाया और फिर से हम बाहर भागे। बाहर हम पतिदेव और बेटे एक दुसरे का हाथ जोर से थामे घर को हिलता हुआ देखते रहे । घर तो ऐसे हिल रहा था मानो झूला हिल रहा हो। हम लोगों के घर के पीछे लकडी के घर थे जहाँ से सामान धड़ -धड़ करके गिर रहे थे।आम के पेड़ से आम झर रहे थे।बस गनीमत ये थी कि नारियल टूट-टूट कर नही गिरे । और जमीन इतनी जोर से हिल रही थी कि जमीन पर खड़े -खड़े सोच रहे थे कि अगर जमीन फट गयी तो हम लोगों का क्या होगा। ये सब कुछ तीन मिनट तक होता रहा और और उसके बाद धीरे-धीरे शांति सी हो गयी। सभी लोग अपने-अपने घरों मे वापिस जाने लगे भूकंप से हुए नुकसान को देखने के लिए। हम लोग भी डरते हुए घर के अन्दर गए तो देखा कि कुछ चींजें जमीन पर गिर कर टूट गयी थी।घर की दीवारों मे दरारें जरुर पड़ी थी पर हमारे घर नही गिरे थे।जैसा की आप इस फोटो मे देख रहे है। लकडी वाले घरों मे ज्यादा नुकसान हुआ था।

(वैसे पी.डब्लू.डी.की तारीफ करनी होगी कि उसने बहुत मजबूत घर बनाए है)अभी घर मे देख ही रहे थे कि बाहर से कुछ आवाजें सुनाई दी बाहर आकर देखा तो सामने की jetty टूट कर आधी पानी मे डूब गयी थी और बहुत सारे लोग वहां इकठ्ठा हो गए थे। हम लोगों के घर के गेट की जमीन क्रैक कर गयी थी और भूकंप ख़त्म होने के बाद भी धीरे-धीरे हिल रही थी।और टूटी आधी डूबी jetty देख कर उसकी फोटो लेने की सोची और फोटो खींची भी। हम लोग भी और सभी लोगों की तरह वहां इंतजार करने लगे की कब jetty पानी मे जायेगी । और जब पानी उछलेगा तो हम उसकी फोटो लेंगे। पोर्ट ब्लेयर मे भूकंप और सुनामी के बीच कुछ मिनटों का अंतर था शायद १५ मिनट का ।

हम लोग ये सब देख ही रहे थे की पतिदेव बोले भूकंप के पहले झटके के बाद अक्सर ऐसा होता है की एक-दो झटके और आते है।(गुजरात के भूकंप की याद आ गयी थी ) इसलिए कुछ जरुरी सामान एक बैग मे रख लिया जाये जिससे अगर घर गिर जाये तो कम से कम गाड़ी मे रह सकें।यही सोच कर हम ने सबसे पहले अपना नाईट गाउन बदल कर सलवार सूट पहना और फिर ऊपर बेडरूम मे जाकर तीनों के दो-दो जोड़ी कपडे और कुछ पैसे और जो थोडे बहुत जेवर थे उन्हें एक बैग मे रखना शुरू किया ।नीचे पतिदेव ने गेट खोल कर गाड़ी (कवालिस) मे चाभी लगा रखी थी कि अगर कहीं फिर से भूकंप आया तो इस बार हम लोग घर लगा कि कुछ ख़तरे वाली बात है। फटाफट बैग उठाकर हम लोग बाहर की तरह भागे। और जल्दी से गाड़ी मे बैठ गए । जब गाड़ी स्टार्ट करके गेट से बाहर निकल रहे थे कि सामने देखा तो लगा कि अब तो गए क्यूंकि समुन्दर का पानी पार्क की दीवार लाँघ कर बड़ी तेजी से सड़क पर आ गया था और हम लोगों के घरों की तरफ बढ़ रहा था। हम लोगों को कुछ समझ नही आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है।पलक झपकते ही पानी हम लोगों की गाड़ी के बोनट तक आ गया था और हम लोगों की इतनी हिम्मत नही हो रही थी की अपने साइड मे देखें बस हम तीनों की नजर छोड़कर भाग जायेंगे। हमने बेटे को भी आवाज लगाई की वो आकर हमारी मदद करें क्यूंकि अन्दर से हम डर और दहशत महसूस कर रहे थे की पता नही अब जब भूकंप आएगा तो हम लोगों का क्या होगा ? अभी हम बेटे को आवाज लगा ही रहे थे कि बेटा आकर बोला क्या mom आप इतना क्यों डर रही है। कुछ नही होगा । हमने सामान रखते हुए कहा कि तुम नीचे क्या कर रहे थे तो वो बोला कि सब लोग पार्क के पास खड़े होकर देख रहे थे कि पानी कहाँ चला गया। उसके ये कहने पर आश्चर्य के साथ हम लोग अपनी बालकोनी मे बाहर आये और देखा कि सामने समुन्दर का पानी कहीं दिखाई ही नही दे रहा था ।हम लोग बात कर ही रहे थे कि तभी अचानक दूर से बड़ी ही तेजी से पानी आता दिखाई दिया तब हम लोगों कोें सामने थी जहाँ पानी ही पानी दिख रहा था। और उस पानी मे हमारे पतिदेव ने बिना रोके गाड़ी चलाई और जो १०० मीटर की दूरी सेकेंड्स मे पूरी होती थी उसे पार करने मे लग रहा था कि रास्ता ख़त्म ही नही हो रहा है। माने हमारी गाड़ी कछुए की रफ़्तार से चल रही थी । वो तो भगवान ने बचाया वरना अगर कहीं गाड़ी पानी मे रूक जाती तब तो .... ।


आज के लिए इतना ही बाक़ी कल लिखेंगे क्यूंकि ये सब लिखते-लिखते कुछ अजीब सा महसूस हो रहा है।



ये फोटो एक हफ्ते बाद लिए थे। इसके दो कारण थे एक तो हमारा कैमरा पानी मे रह गया था और दूसरे शुरू मे घर जाने मे डर लगता था क्यों पानी का लेवल ऊपर हो गया था।इस फोटो मे शहीद पार्क की जाली दिख रही है।

Comments

बहुत अच्छा , रोमांचक वर्णन। तीन साल पुरानी यादें ताजा हो गई।
रो्मांचक!!

आज़ादी एक्स्प्रेस देखी या नही आपने?
अभूतपूर्व विवरण। अब तक आपने नहीं लिखा यह। फ़र्स्ट हैण्ड अनुभव तो बहुमूल्य है।

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