कसाई है हम कसाई

इस शीर्षक से ये बिल्कुल भी मत समझिए कि हम कोई बकरा या मुर्गा काटने जा रहे है। ये तो हमारे गिटार सिखाने वाले मास्साब के शब्द है जो अब इस दुनिया मे नही है।दुलाल मजुमदार नाम था उनका ।मास्साब बंगाली थे। पर उनके इन्ही शब्दों ने हमे गिटार सीखने की प्रेरणा दी थी। यूं तो वो ज्यादा ग़ुस्सा नही करते थे पर अगर उनके कई बार समझाने पर भी कोई गलत बजाता था तो उन्हें बहुत ग़ुस्सा आ जाता था और तब वो जो डांटना शुरू करते थे तो वो बिल्कुल भी कुछ नही सोचते थे की सामने बैठा हुआ शिष्य रो रहा है या दुःखी हो रहा है।कई बार तो उनके डांटने पर आंटी (मास्साब की पत्नी)भी वहां आ जाती थी और कहती थी कि इतना मत डांटा करो। बच्चे है सीख जायेंगे। और इसी तरह जब कोई अच्छा बजाता था तो वो बड़ी जोर से बाह (वाह)कहते थे और पूरी क्लास मे क्या हर ग्रुप मे उसकी तारीफ भी ख़ूब करते थे। वैसे वो छोटे -छोटे ग्रुप मे क्लास लेते थे पर तब भी उनकी तारीफ और डांट की खबर हर क्लास मे पहुंच जाती थी।

ये बात तब की है जब हम नवीं क्लास मे पढते थे और हमने गिटार सीखने का मन बना लिया था।इन्ही मास्साब से हमारे भईया ने गिटार सीखा था और बाद मे हमारी बहन सीख रही थी। तो हमे भी लगा कि गिटार बजाना तो बहुत आसान है तो क्यों ना हम भी सीख लें ।अक्सर जब दीदी की क्लास ख़त्म होने वाली होती थी तो हम उन्हें लेने के लिए क्लास मे जाया करते थे । तो कई बार मास्साब हमसे पूछते भी थे की तुम नही सीखेगा।तो हम बस गरदन हिला कर मना कर देते थे। क्यूंकि हमे उनकी डांट से डर लगता था और आंसू बहाने मे तो हम तेज ही है।पर बाद मे दीदी को गाने बजाते सुनते -सुनते हमारा भी मन करने लगा सीखने का। तो बस जैसे ही गरमी की छुट्टियाँ आयी हमने ममी से कहा कि हमे भी गिटार सीखना है तो भला ममी को क्या ऐतराज हो सकता था उन्होंने अनुमति दे दी क्यूंकि हफ्ते मे तीन दिन ही क्लास होती थी। और हमने भी मास्साब की क्लास मे जाना शुरू कर दिया।

जब पहले दिन हम क्लास मे गए तो मास्साब ने हम सभी नए बच्चों को अपना -अपना परिचय देने को कहा । सभी ने डरते हुए अपना -अपना परिचय दिया। डरते हुए इसलिये क्यूंकि हम सभी के भैया या बहन मास्साब से या तो गिटार सीख चुके थे या सीख रहे थे और हम सब उनके ग़ुस्से से वाकिफ भी थे। खैर धीरे-धीरे वहां सीखते हुए हम लोगों को लगा की मास्साब तो बहुत अच्छे है और हम बच्चों को तो बिल्कुल भी नही डांटते थे। हमेशा और अच्छा बजाओ कह कर हम लोगों का हौसला बढ़ाते थे।

सब कुछ बढ़िया चल रहा था क्लास मे और हम भी खुश थे और मास्साब भी खुश थे क्यूंकि हमने बड़ी जल्दी सीख लिया था। क्लास से घर आकर भी हम प्रैक्टिस करते थे जिससे क्लास मे जो कुछ भी सिखाया गया होता वो अगली क्लास मे अच्छे से बजा सकें। पर एक दिन गड़बड़ हो ही गयी।उस समय हम याराना का गाना छूकर मेरे मन को सीख रहे थे । घर से ख़ूब प्रैक्टिस करके गए थे पर पता नही क्लास मे क्या हुआ कि जैसे ही बजाना शुरू किया तो मुखडा तो ठीक बजाया पर अंतरे मे अटक गए और जो अंतरे मे गलत बजाया तो पहले तो मास्साब ने कहा कोई बात नही फिर से बजाओ।और कहा कि रिदम पर ध्यान दो। हमने फिर से शुरू किया पर बार-बार एक ही जगह पर आकर गड़बड़ हो जाती थी और गिटार के तार की आवाज जोर से सुनाई देती । हमे भी पता था की हम गलत बजा रहे है क्यूंकि जब गिटार बजाते है तो उसके तार की खीच-खीच की आवाज नही आनी चाहिऐ।पर हमारे बजाने मे ये आवाज बार-बार आ जाती थी। बस हम डर गए कि अब तो पडी डांट और हुआ भी वही।


पांच-सात मिनट तक तो मास्साब ने कुछ नही कहा पर फिर वो बड़ी जोर से चिल्लाये तुम्हे पता नही है हम कसाई है कसाई।
उनका इतना कहना था कि हम जो सही बजा रहे थे वो भी गलत बजाने लगे।
तो उन्हें और ग़ुस्सा आ गया और ग़ुस्से मे वो बोले आज जब तक तुम सही नही बजाओगी हम तुम्हे घर नही जाने देंगे।
बस इतना सुनकर तो हमारे आंसू झरने लगे । और गिटार बजाते-बजाते हमने मन ही मन सोचा कि बस अब आज के बाद गिटार सीखना तो दूर हम गिटार को भी हाथ नही लगाएंगे। और उसी ग़ुस्से मे मास्साब ने अपने गिटार पर अंतरा बजाकर दिखाया और कहा कि ऐसे बजाओ। फिर बोले कि नही हमारे साथ-साथ बजाओ। और हमने रोते-रोते जब सही अंतरा बजाया तो उन्होने जोर से बाह (वाह)कहा जिसका मतलब कि वो खुश है।


अगले दिन हर क्लास मे यही चर्चा कि ममता को मास्साब ने बहुत डांटा। पर उसी दिन हमने भी निश्च्च्य किया कि अब हम ख़ूब प्रैक्टिस करेंगे और मास्साब को कभी भी ये मौका नही देंगे कि वो हमे फिर से इस तरह डांट सके। बस फिर क्या था कुछ दिन बाद हम मास्साब के चहेते शिष्यों मे से हो गए।और हमने एक साल गाने सीखने के बाद शास्त्रीय संगीत का छे साल का कोर्स किया। शादी के बाद भी हम जब भी इलाहाबाद जाते थे तो मास्साब और आंटी से मिलने जरुर जाते थे । आज मास्साब इस दुनिया मे नही है और आंटी भी अब इलाहाबाद मे नही रहती है। मास्साब का बड़ा बेटा गौरव जो उस समय वायलिन बजाता था अब सितार बजाता है और देश-विदेश मे अपने प्रोग्राम करता है।

आज यूं ही मास्साब की डांट याद आ गयी और हमे ये सोचकर ख़ुशी हो रही है कि अच्छा हुआ हो जो उस समय डांट के डर से हमने गिटार बजाना नही छोड़ा क्यूंकि अगर उस समय डांट के डर से हमने गिटार बजाना छोड़ दिया होता तो हम एक बहुत ही मधुर वाद्य को बजाने की कला को सीखने से वंचित रह जाते।

Comments

dpkraj said…
बहुत अच्छा!
दीपक भारतदीप
इसे ही कहते है ना कि कोशिश करने वालों की हार नही होती!!
चलिए ये तो मालूम चला कि आप न केवल गिटार बजा लेती हैं बल्कि संगीत मर्मज्ञ भी हैं
ghughutibasuti said…
बढ़िया !
घुघूती बासूती
आप गिटार बजा लेतीँ हैँ ये तो बडी अच्छी बात सुनाई आपने !
आपके मास्सा'ब के बारे मेँ पढकर फिर विश्वास द्रढ हुआ कि कोशिश करते रहना कितना जुरुरी है

स्नेह -
-- लावण्या
"आज यूं ही मास्साब की डांट याद आ गयी... "

यह ब्लॉगरी है ही इसके लिये. कुछ याद आ जाये तो लिख मारिये - अपने/औरों/भविष्य की सनद के लिये!
Manish Kumar said…
डाँट का भी अपना अलग असर होता है। कई बार भय हमें कोताही बरतने की स्वाभाविक चाहत से दूर भगाता है। अच्छा लगा आपका ये संस्मरण !
कभी अपना बजाया गिटार भी सुनवायें। इसी बहाने आप पॉडकास्ट करना भी सीख जायंगी।
बहुत बढ़िया
आप गिटार बजाती भी है और शास्त्रीय संगीत भी जानती है तो क्यों ना एकाद अच्छा सा राग बजा कर हमें सुनाया जाये, भैरवी, मालकौंस कुछ भी चलेगा।
mamta said…
आप सभी का धन्यवाद।
अभी छे महीने मे तो हमनेथोडा -थोडा कंप्यूटर चलाना सीखा है ।
और जैसा उन्मुक्त जी ने कहा है पॉडकास्ट के लिए तो हमे उसे सीखने मे कम से कम छे महीना और लगेगा। तब शायद हम आप लोगों को अपना बजाया हुआ गिटार सुना पायेंगे।
वैसे अब तो काफी समय हो गया हमे गिटार बजाये हुए ।
ePandit said…
आपके संस्मरण हमेशा मजेदार होते हैं।

पॉडकास्टिंग पर हमने कुछ क्लासें लगाई थी, उन्हें अटेंड करिए। :)

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