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Showing posts from March, 2007

मुम्बई का सफ़र

नमस्कार दोस्तो , हम ४ दिन के लिए सपनों की नगरी मुम्बई गए थे । इससे पहले जब हम गए थे तब मुम्बई को बोम्बे कहा जाता था आज से करीब १० साल पहले । गोवा से मुम्बई का सफ़र हमने कार से तय किया जो कि बहुत ही रोमांचक और अच्छा रहा । बहुत सारे घाट पड़ते है जिनकी वजह से ही ड्राइव का मजा है । मुम्बई शहर कि भागदौड़ बिल्कुल पहले जैसी है हाँ अब गाड़ियों कि संख्या और इंसानों कि संख्या पहले से कई गुना ज्यादा हो गयी है । इतने सारे flyovers के बावजूद ट्राफिक रूक जाता है और इंच - इंच गाड़ी आगे बढती है वहां flyover पर रुके रुके हम ये भी सोच रहे थे कि जब अभी ये हाल है तो अगले १५ साल बाद मुम्बई का क्या हाल होगा ? शहर का तो कोई ओर छोर ही नही है जहाँ तक नजर जाती है या तो बड़ी - बड़ी इमारतें दिखायी देती है या फिर लोग । मुम्बई मे आटो चलाने वाले काफी शरीफ है दिल्ली के आटो चलाने वालों के मुक़ाबले मे। आटो चालकों का व्यवहार

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह-1

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आप् सोच रहे होंगे कि अचानक अंडमान कि बात कैसे शुरू हो गयी तो चलिये हम बता ही देते है, दरअसल गोवा आने से पहले हम अंडमान मे तीन साल रह चुके है और हम आप सबके साथ अपने वो अनुभव बाँटना चाहते है जिसमे अच्छे और बुरे दोनो अनुभव है। हम वहां जून २००३ से २००६ तक रहे थे। अंडमान और निकोबार को बहुत से लोग हिंदुस्तान के बाहर समझते है क्यूंकि वो जमीन से नही जुड़ा है। ये एक द्वीप है जो चारों ओर से समुद्र से घिरा हुआ है। कहते है कि निकोबार तो एक कटोरी कि तरह है । वहां पर करीब ५५० छोटे -छोटे द्वीप है पुरे अंडमान -निकोबार मे. आज भी कुछ ऐसे द्वीप है जहाँ कोई नही जा पाता है । अंडमान मे तो नही पर निकोबार मे जाने के लिए प्रशाशन से अनुमति लेनी पड़ती है, क्यूंकि निकोबार मे tribal रहते है और tribal एरिया को संरक्षित एरिया माना जाता है । विदेशी पर्यटकों को आम तौर से एक महिने ठहरने का परमिट दिया जाता है। अंडमान और निकोबार को कई भागों मे बाँटा गया है, जैसे साऊथ अंडमान (पोर्ट ब्लेयेर ) नॉर्थ अंडमान (दिगलीपुर ),मिडिल अंडमान (बारतांग ),लिटिल अंडमान (हट्बे ) और ठीक इसी तरह निकोबार भी बटा हुआ है कार- निकोबार ,लि

गोवा मे विदेशी

ये तो जग-जाहिर है गोवा मे जितने हिन्दुस्तानी घूमने आते है उससे कहीँ ज्यादा विदेशी लोग आते है।यूं तो सारे साल ही लोग आते है पर अक्तुबर से मार्च तक तो विदेशी पर्यटकों कि भरमार रहती है,चाहे आप beach पर जाये या किसी रेस्तौरा मे। वैसे यहां ब्रिटिश और रशियन ज्यादा आते है जिसके दो कारण है एक तो वहां ठंड बहुत पड़ती है और दुसरे गोवा कि मौज मस्ती और आराम। beach पर सुबह ये स्न्बाथ लेते हुए नजर आते है तो शाम को बाजार मे घुमते है पर एक बात कि तारीफ करनी पडेगी कि ये लोग ख़ूब पैदल चलते है। यहाँ पर ये लोग bikes या जीप किराए पर ले लेते है जो कि काफी सस्ती पड़ती है पर ये लोग काफी रैश चलाते है मानो इन्हें किसी का डर ही नही है। बस एक नक़्शा हाथ मे लिया और चल दिए। गोवा मे हर शनिवार इन्गोस night बाज़ार लगता है शाम ७ बजे से सुबह २-३-४ बजे तक, वहां जा कर ये लगता ही नही है कि आप हिंदुस्तान मे है ,चारों तरफ विदेशी और सिर्फ विदेशी ही दिखाई देते है। और ज़्यादातर दुकाने भी इन्ही विदेशी लोगो कि होती है। वैसे कुछ हिन्दुस्तानी दुकाने भी होती है। गोवा मे तो बहुत सारे विदेशियों ने घर बना लिए है और धड़ल्ले से प्

वर्ल्ड कप कि हार

इंडिया कि शर्मनाक हार के बाद अब लगता है हमारे कुछ खिलाडियों को रिटाएर कर देना चाहिऐ क्योंकि सचिन,द्रविड़, सहवाग ,अगरकर ,और हरभजन मे अब वो बात नही है कि ये लोग कोई मैच अपनी काबलियत और अपने अच्छे खेल से जीत सके। ये तो सिर्फ बरमुडा जैसी टीम के ही साथ खेल कर जीत सकते है। अगरकर कि जगह पठान या श्रीसंत को खिलाते और मैच हारते तो कम से कम ये कह कर हर कोई संतोष कर लेता कि इन लोगो को अभी उतना अनुभव नही है। सचिन जैसे खिलाडी अगर रन नही बनाते है तो क्या उन्हें विज्ञापनो मे आने का कोई हक है? टीम इंडिया जिस पर सारे देश कि आंखें लगी हुई थी ,जिसके लिए सारा देश दुआये माँग रहा था , कोई सबसे बड़ा बैट बना रहा था तो कोई ये साबित करने मे लगा था कि वो ही टीम इंडिया का सबसे बड़ा फैन है। ऐसे खेल प्रेमियों को टीम इंडिया क्या जवाब देगी? द्रविड़ जो मिस्टर डिपेंडिब्ल के नाम से मशहूर है उनका कैप्टेन बनने के बाद जिस तरह से उनका प्रदर्शन बिगडा है उसे देख कर सचिन कि कप्तानी याद आती है,जो कैप्टेन बनने के बाद खेल ही नही पाते थे। हमारी टीम के ना तो शुरू के खिलाडी खेलते है और ना बाद के।इंडियन टीम हमेशा सिर्फ एक खिलाडी

एनीमल प्लेनेट

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एनीमल प्लेनेट पर दिखाए जाने वाले ज्यादतर कार्यक्रम यूं तो जानवरों से सम्बंधित है पर उनसे हमे बहुत कुछ जानने - सीखने को मिलता है और काफी रोचक भी होते है। उस चैनल पर फंनिएस्ट एनीमल के नाम से एक कार्यक्रम आता है जिसमे अलग -अलग जानवरों के विडियो दिखाते है ,जैसे कल के विडियो मे एक कुत्ता अपनी नाक पर फूटबाल उठा कर इधर -उधर दौड़ रहा था और जब बाल गिर जाती थी तो वो उसे दोबारा उठा लेता था और बाल को नाक पर घुमाते हुए दौड़ता रहा। एक बिल्ली को दिखाया जो शीशे कि खिड़की के अन्दर थी और बाहर एक गिलहरी दाना खा रही थी और बिल्ली उसे शीशे के अन्दर से झपट्टा मार रही थी। उसी मे एक और कुत्ते को दिखाया जो पानी मे गोल -गोल घूम कर बैठता था मानो वो डुबकी लगा रहा हो। अभी कुछ दिनों पहले जानवरों को कैसे स्वस्थ रक्खे इस पर एक कार्यक्रम आया था, जिसमे ये दिखाया था कि जिस तरह इन्सान को स्वस्थ रहने के लिए कसरत करना जरूरी है ठीक उसी तरह जानवरों को भी कसरत करना जरूरी है क्यूंकि मोटापा ना तो इंसानों के लिए अच्छा है ना जानवरों के लिए। उसी मे एक सील मछली दिखायी थी जो बहुत मोटी थी वो अपने ट्रेनेर के साथ

नया ऑफिस -ऑफिस

स्टार वन पर आने वाला ये सीरियल जो पहले सब टी.वी.पर ऑफिस -ऑफिस नाम से आया करता था वो ही अब नया ऑफिस -ऑफिस नाम से आ रहा है। इस मे मुसद्दी लाल के किरदार मे पंकज कपूर बहुत अच्छी एक्टिंग कर रहे है। हर बार ये लोग एक नए विभाग पर व्यंग करते है और बहुत हद तक सही भी दिखाते है। जिस तरह शुक्लाजी पान खाते रहते है आम तौर पर हर ऑफिस मे इस तरह के लोग नजर आ जाते है,हां ये जरूर है कि हर आदमी शुक्ला कि तरह पान ऑफिस मे ही पान नही थूकता है। पांडेजी का और ऊषाजी का तो जवाब ही नही। पर पटेल के किरदार मे देवेंन ज्यादा ठीक लगते थे और उनका दो बाते कहने का स्टाइल भी बहुत अच्छा था। भाटिया जी को तो खाने से ही फुर्सत नही मिलती है। कॉमेडी सीरियल से एक और सीरियल येस-बॉस जो सब टी.वी.पर आता है उसने शुरू से लेकर अभी तक अपना अंदाज नही बदला है। मोहनजी और वर्माजी दोनो ही काफी मजेदार लगते है ,हां मीराजी जरूर कुछ ज्यादा ही मोटी हो गयी है पर चुंकि ये कॉमेडी सीरियल है इसलिये उनका मोटापा उतना बुरा नही लगता है। हालांकि आज कल बहुत से नए लोग (किरदार )भी इसमे आ रहे है पर फिर भी इसको देखने मे मज़ा आता है,कई बार अगर मूड खराब है तो

जीते है जिसके लिए

सोनी टी.वी.पर जीते है .... ये सीरियल अभी हाल ही मे शुरू हुआ है पर अच्छा चल रहा है अभी तक तो कहानी ने मजबूत पकड़ बना रख्खी है और एक्टिंग भी सभी अच्छी कर रहे है अब देखना ये है कि ये आगे कैसा मोड़ लेता है। आज कल बेटियों का जमाना चल रहा है हर चैनल पर बेटी प्रधान सीरियल आ रहे है देख कर अच्छा लगता है ,हांलाकि ज़ि के बेटियां घर कि लक्ष्मि और स्टार वन के बेटियां अपनी या पराया धन दोनो सीरियल मे पिता अपनी बेटियों के साथ काफी कडा व्यवहार करते है और दोनो सीरियल मे बेटे अपनी मनमानी करते है जिसे वो अनदेखा करते रहते है।यूं तो आज ज़माना काफी आगे बढ़ गया है पर अभी भी हमारे भारत मे बेटी को अभिशाप माना जाता है जब कि अगर देखा जाये तो आज हर ऊंचे पद पर महिलाये है.पर हमारे समाज मे आज भी बेटे को ही अहमियत दी जाती है भले वो नालायक ही क्यूं ना हो ।हम ४ बहने है और एक भाई पर हमारे घर मे इस तरह का व्यवहार हमारे पापा ने कभी नही किया। हमारे पापा तो हम लोगो को उस ज़माने मे यानी आज से ३० -४० साल पहले पिक्चर दिखने ले जाते थे जिस समय ये सब लड़कियों के लिए बुरा माना जाता था। उन्हों ने कभी भी हम चारो बेटियों से इतनी दूरी

बरमूडा पर जीत

भारत ने बरमूडा को २५७ रनों से हराकर वर्ल्ड रेकॉर्ड तो बना लिया पर क्या इस जीत को जीत माना जाना चाहिऐ .बरमूडा जिसका नाम इससे पहले ज्यादा लोग नहीं जानते थे उसके लिए तो भारत के साथ खेलना ही बहुत बड़ा अचिएवेमेंट है.चलिये सहवाग जो अभी तक खेल नही पा रहे थे उन्होने शतक तो बनाया ,और अपनी माँ कि बात रख ली जिन्होंने बांग्लादेश से हारने के बाद अपने नजफगढ़ के घर पर प्रदेर्शन करने वालों से कहा था कि मेरे बेटे पर विश्वास रक्खो और अगले ५-७ मैच के लिए अपनी जगह बना ली.अरे वीरू भाई अब ऐसे ही आगे भी खेलना ,माना हर बार शतक तो नही बना सकते पर कम से कम ५०-६० रन तो बना लेना। वैसे मैच देखने मे यूं तो एक तरफ़ा ही था पर बरमूडा के खिलाड़ियों के हँसते-मुस्कुराते चहरे और उनकी १५७ रनों कि पारी देखने मे मज़ा आया। हम हिन्दुस्तानी लोग हर जीत पर खुश होते है अब देखना ये है कि क्या ये ख़ुशी बरकरार रहती है या नही,क्यूंकि अभी श्रीलंका जैसी वर्ल्ड क्लास टीम से खेलना बाक़ी है और उसे हराना ही इंडियन टीम का लक्ष्य होना चाहिऐ। वैसे भी ये आर या पार वाली स्थिति है। इस बार के वर्ल्ड कप मे जो कुछ हो रह है वैसा पहले कभी नही हु

अन्ताक्षरी

लीजिये हम फिर हाजिर है आप से गप -शप करने के लिए.आज कल ज़ि टी .वी.और स्टार वन पर अन्ताक्षरी दिखाई जा रही है .ज़ि टी.वी.पर जो अन्ताक्षरी पहले आया करती थी जिसे देखने मे मजा आता था इस वाली अन्ताक्षरी मे वो बात नहीं है.हिमानी को देख कर ऐसा लगता है मानो वो गाने से ज्यादा ध्यान डान्स पर देती है,वैसे जब वो सा,रे,गा,म ,प मे आई थी तो अच्छा खासा गाती थी ,पर अन्ताक्षरी मे अक्सर उनके सुर बिगड़ जाते है .और स्टार वन कि जूही के बारे मे क्या कहे ,वो तो रखी ही गयी है डान्स करने के लिए.अन्नू कपूर और जूही तो प्रतियोगियों को सही गाना ना गाने पर इतनी बुरी तरह से डांटते है मानो उनसे कोई गुनाह हो गया हो.इस अन्ताक्षरी को देख कर लगता है मानो गजेन्द्र सिंह जो इसके निर्माता है कि अब वो भी ग्लैमर के बिना नही चल सकते। पहले तो अन्नू कपूर और उनकी को -होस्ट जैसे दुर्गा जसराज या रेणुका शाहाने हो या फिर ऋचा शर्मा हो कुछ अच्छे गाने सुनने को मिल जाते थे । अरे अन्नुजी ये अन्ताक्षरी का खेल है कोई वर्ल्ड कप तो नहीं, जहाँ चाहे जितना भी बुरा खेलो कोई कुछ नहीं कहता है .अपनी इंडियन टीम जो कल बांगलादेश जैसी टीम से हार गई है ,उसक

बालाजी के .......

एकता कपूर के सीरियल क्यूंकि सास ......मे बा तो जैसे अमृत पीकर आई है वैसे हमे बा के किरदार से कोई परेशानी नहीं है पर घर मे उनके साथ जैसा व्यवहार होता है वो ठीक नही है.यूं तो उनके घर मैं सभ्यता और संस्कृति पर काफी जोर दिया जाता है पर ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता है.तुलसी को कितनी पुश्ते बेइज्जत करेंगी ,तुलसी के पोते -पोतियाँ तो मानो उसे सिर्फ और सिर्फ जलील ही करने के लिए है.अरे एकता कम से कम तुलसी कि उम्र का तो ख़्याल करो अब तो वो भी सत्तर -अस्सी साल कि हो रही है।तुलसी के खानदान मे हादसे भी पुश्त दर पुश्त एक ही तरह के होते है जो कुछ नंदिनी और अंश के साथ हुआ वही भूमि के साथ होना ।हां एक बात जो अब तक नही बदली वो है तुलसी कि सहनशक्ति । सहनशक्ति से ज़ि टी .वी के क़सम से कि बानी याद आ गयी जो त्याग और बलिदान कि मूर्ति है बस उन्हें मौका मिलना चाहिऐ और ऐसे मौक़े तो एकता उन्हें देती ही रहती है.कोई भी समस्या हो बानी उसे हल कर देती है चाहे वो बिजनेस हो या घर ,जय वालिया जो इतने बडे बिजनेस के मालिक है वो सिर्फ बानी कि हां मे हां ही मिलाते है.अब राशी कि अन्तिम इच्छा पुरी करने का काम हो या कोई बिजनेस कि प
सोनी के सीरियल एक लडकी अनजानी सी मे कहानी को इतना ज्यादा खींचा जा रहा है कि ऐसा लगता है कि मानो इसमे कुछ दिखाने के लिए बचा ही ना हो.सीरियल के नायक निखिल को सारे लोग अपनी मर्जी के मुताबिक चलाने कि कोशिश मे लगे रहते है चाहे वो आयशा हो या अनुराधा .सीरियल जब शुरू हुआ था तो अनन्या हर मुसीबत का सामना अपनी अक्ल से करती थी और सफल भी होती थी पर ये वाली अनंया तो निरीह ,लाचार है जो सिर्फ रोने के और कुछ नहीं करती है.शक्ल कि प्लास्टिक सर्जरी हुई है या अक्ल कि भी.

सलोनी का सफ़र

ज़ी टी .वी .की सलोनी जितना विश्वास नील पर करती है उतना ही वो उन्हें धोखा दे रहा है.चलो माना की सलोनी तो परेशां है पर उनके घरवालों को तो जैसे कुछ समझ ही नही आता है सिवाय कावेरी के जिसे हर बात की खबर रहती है.शुब्रा का अपने पति को सबक सिखाने का तरीका बिल्कुल सही है,ऐसे लोगो के साथ ऐसा ही करना चाहिऐ .शुब्रा की सास अपने बेटे के साथ जो कुछ कर रही है उसे देख कर लगता है कि क्या एक माँ अपनी बहु से बदला लेने के लिए इतना नीचे गिर सकती है.पहले तो जबर्दुस्ती शादी की फिर ये सब करना क्या अच्चा लगता है.पर भाई अगर ये सब ज्यादती ना दिखाए तो उनकी टी .र.प.कैसे बढ़ेगी .

लालू यादव या चिदाम्बरम

चिदाम्बरम जी जो हमारे वित्त मंत्री हैं और लालू यादव जो रेलवे मंत्री है दोनों ने अपना -अपना बजट संसद मे पेश किया.रेलवे मंत्री के बजट ने जहाँ सब आम और खास को खुशी दी वही वित्त मंत्री जी ने सबके दिल पर चोट पहुचाई.उन्होने लोगो की बचत की सीमा मात्र १० हजार बढा कर ऐसे दिखा रहे ह मानो ५० हजार किया हो.मेरे ख्याल से लालु यादव जी को वित्त मन्त्री बना देना चाहिये क्योकि जिस रेलवे को जबर्द्स्त घाटा हो रहा था अगर उसमे २०हजार करोड का मुनाफा हो सकता है तो शायद उनके वित्त मन्त्री बनने से भी जनता का भला हो जाये.

गोवा का शिगमोत्सव

गोवा अपने बीचेज यानि समुद्रि तटॉ र्के लिये जाना जाता है,कारनिवाल के लिये गोवा सारे देश मै मशहुर है पर बहुत कम लोग शिगमोत्सव के बारे मे जानते है.कार्निवाल की तरह इसमे भी फ्लोट निकालते है.इसमे धार्मिक फ्लोट होती है.इसमे औरते और बच्चे गोवा के पारम्परिक डान्स करते है.इसमे विष्णु भगवान के अलग - अलग अवतार जैसे नरसिह रुप,राम और क्रिशन के रुप दिखाये जाते है.साथ ही साथ अन्य भगवानो हनुमानजी, दुर्गाजी, काली मा के भी फ्लोट देखने को मिलते है.गोवा वासियो का जोश देखने लायक होता है.ये यात्रा शाम ६ बजे शुरु होति है और करीब ११बजे रात तक चलती है .ये उत्स्व होली के एक दिन बाद शुरु होता है और १० दिन तक चलता है.ना केवल पनजिम ब्ल्की ये गोवा के अलग -अलग ताल्लुको जैसे वास्को,मारगाव,मापुसा,कनकोनाआदि मेअलग -अलग दिन मनाया जाता है.